शिक्षक ही समाज का आईना होता है।

शिक्षक शिष्य के लिए तपने का संकल्प लेता है, उसे अपना ज्ञान देता है, शिष्य को प्रतिनिधि एवं अपने को प्रतिकृति के रूप में देखता है, तब वह शिक्षक कहलाता है।

शिक्षक शिष्य के लिए तपने का संकल्प लेता है, उसे अपना ज्ञान देता है, शिष्य को प्रतिनिधि एवं अपने को प्रतिकृति के रूप में देखता है, तब वह शिक्षक कहलाता है।

शिक्षक ही समाज का आईना होता है

श्रीमती हरवंश डांगे,रिटायर्ड प्रिंसिपल

भारत की रतन प्रसूता माटी ने अनेक रत्नों को जन्म दिया, उनमें से एक अनमोल रत्न सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी थे। वे स्वयं शिक्षक रहे उन्होंने स्वयं शिक्षण की गरिमा का बखान करते हुए कहा, “जिस व्यक्ति की आत्मा से दूसरी आत्मा में शक्ति का संचार होता है वह शिक्षक कहलाता है”। शिक्षक सम्मान का अधिकारी है। राधाकृष्णन 1962 में भारत के राष्ट्रपति बने, उनके मित्रों एवं पूर्व छात्रों ने उनसे अनुरोध किया कि वह उन्हें अपना जन्मदिन जो 5 सितंबर को पड़ता है मनाने दे। डॉक्टर राधाकृष्णन ने कहा कि यह उनके लिए सम्मान की बात है कि 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए। राधा कृष्ण जी एक महान विद्वान, शिक्षाविद, लेखक एवं तत्व ज्ञानी थे। शिक्षक दिवस का अर्थ है शिष्य शिक्षक दिवस यदि शिक्षक शिष्य के लिए तपने का संकल्प लेता है, उसे अपना ज्ञान देता है, शिष्य को प्रतिनिधि एवं अपने को प्रतिकृति के रूप में देखता है, तब वह शिक्षक कहलाता है। अंधकार रूपी अज्ञान को ज्ञान लोक में परिवर्तित कर गुरु समूचे विश्व में आलोक बिखरने में सक्षम है। गुरु का अनादर विकास की उपेक्षा है। कबीरा ते न अंध हैं गुरु को कहते और हरि रूठे गुरु ठौर है गुरु रूठे नहीं ठौर। शिक्षक का अर्थ है (शि +क्ष+क) शिक्षता क्षमा एवं कर्म।शिक्षक में तीन गुण होने चाहिए, विद्यार्थी से प्रेम, शिक्षक का सदा विद्यार्थी बने रहना, वात्सल्य अनुराग ज्ञान पर विश्वास।
मैंने अपने शिक्षण एवं अध्यापन कार्य में जो अनुभव किया है वह मैं सम्मानीय शिक्षिकाओं एवं शिक्षकों से कहना चाहती हूं कि, विद्यार्थियों को कोर्स की किताबें और परीक्षा के अंकों के सीमित दायरे तक मत रखिए, वरना वह बाहरी दुनिया का ज्ञान अर्जित नहीं कर पाएंगे। छात्रों की रचनात्मकता को पहचानें । तथा “teach less learn more” के सिद्धांत पर शिक्षण कार्य करवाएं। अच्छा शिक्षक वही है जो छात्रों में विषय के प्रति रुचि पैदा करें। ट्यूशन के चक्कर में पड़कर शिक्षक शिक्षण कार्य को आजीविका का साधन न समझे। ट्यूशन से प्रतिभा दबती है। जो शिक्षक अपने शिक्षण कार्य को पूजा नहीं समझता, विद्यार्थियों से स्नेह नहीं करता, मूल्यांकन कार्य में सजग और निष्पक्ष नहीं रहता, वह कितना भी ज्ञानी, ध्यानी एवं विषय विशेषज्ञ क्यों ना हो वह शिक्षक बने एवं शिक्षक कहलाने के योग्य नहीं है। ज्ञान से बढ़कर कोई दान नहीं, शिक्षक से बढ़कर कोई महान नहीं हैं । मैं विद्यार्थियों से भी इतना कहना चाहूंगी कि, यदि विद्यार्थी को शिक्षक का स्नेह, ज्ञान, विद्या पाना है और अर्जुन और आरुणि जैसा शिष्य बनना है तो उसे नम्र, जिज्ञासु, परिश्रमी, सेवा भावी एवं श्रद्धावान होना चाहिए। क्योंकि श्रद्धावान लबते ज्ञानम। विद्यार्थी राष्ट्र की अमूल निधि है एवं भावी कर्णधार हैं। देश की आशा इन्हीं पर टिकी है। विद्यार्थी अनुशासित होंगे तो देश भी अनुशासित होगा। विद्यार्थियों को अपनी शक्ति सामर्थ्य एवं बौद्धिक बल का प्रयोग दुर्गंधी पूर्ण दलगत राजनीति में नहीं बल्कि अपनी शिक्षा अपने भविष्य, देश सेवा एवं देश की प्रगति के लिए करना चाहिए ताकि उन्हें बीते वक्त का पछतावा पश्चाताप ना हो। नीति विषार्दो की सूक्ति है, “सुखार्थी वा तजेत विद्याम, विद्यार्थी वा तजेत सुखम, सुखारथिन: कुतो विद्या विद्यार्थीन : कुतो सुखम”।

चाणक्य के अनुसार शिक्षक कभी साधारण नहीं होता, प्रलय एवं निर्माण उसकी गोद में खेलते हैं।

विंस्टन चर्चिल के अनुसार शिक्षकों के हाथों में वह शक्तियां हैं जो, अभी तक प्रधानमंत्रियों
को भी कभी नहीं मिल पाई। 15 अगस्त 2003 राष्ट्रपति अब्दुल कलाम जी ने देश के 57वे स्वतंत्रता दिवस पर कहा था, यदि राष्ट्र को भ्रष्टाचार मुक्त, संस्कारिता युक्त एवं सुंदर बनाना है, तो शिक्षक, छात्र एवं सरकार इसमें परिवर्तन ला सकते है। हमारे महान देश की महान शिक्षा ही है जिसके चलते आज दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों को भारतीय ही चला रहे हैं। यहां के शिक्षण में इतने गुण है के हमारी प्रतिभाएं विदेश में देश का नाम रोशन कर रही है।
शिक्षक ही समाज का आईना होता है। जो अपने ज्ञान के प्रकाश से किसी भी देश या राष्ट्र के भविष्य का निर्माण करता है। जिसका सबसे बड़ा उदाहरण हमे चाणक्य का मिलता है।
लेकिन आधुनिक काल मे जहां शिक्षक का सम्मान कम होता जा रहा आज क्योंकि आज के समय में शिक्षक और छात्र दोनो ही बदल गये है। आज बहुत कम द्रोणाचार्य जैसे शिक्षक और अर्जुन जैसे शिष्य देखने को मिलते है।
पहले के समय में शिक्षण एक पेशा ना होकर एक उत्साह तथा एक शौक का कार्य था, पर आज के इस भौतिक दुनिया मे अब यह मात्र एक आजीविका चलाने का साधन बनकर रह गया है। आज शिक्षक को अपनी और अपने परिवार की मूलभूत आवश्यकता को भी पूरा करने में जद्दोजहद करनी पड़ती है जिसके कारण शिक्षक प्राइवेट ट्यूशन और कोचिंग में ज्यादा सक्रिय हो रहे है। शिक्षा के क्षेत्र में पदौन्नन्ति का विकल्प भी न के बराबर होता है। जो एक शिक्षक की मानसिक तनाव का कारण भी बनता है।
यदि शिक्षक दिवस को सही रूप से मनाना है तो सरकार को शिक्षकों की समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए, शिक्षकों के वेतन भत्ते एवं पेंशन की समस्याओं के लिए अलग से प्रावधान किए जाने की जरूरत है। शिक्षको का सर्वोपरि कार्य शिक्षा देना होना चाहिए, उसमें भी सरकार कभी प्रशिक्षण कभी जनसंख्या कभी इलेक्शन में ड्यूटी लगाती है, जिससे उसका शिक्षणपन खो जाता है। शिक्षक को मशीन नहीं मानव रहने दिया जाना चाहिए। देश को यदि फिर से सोने की चिड़िया बनाना है तो शिक्षा ही आधार होना चाहिए। शिक्षक संकल्पित होगा तो छात्र भी अध्यापक का सपना होना चाहिए, कि देश महान बने। दोनों मिलकर ज्ञान पर पड़े आवरण को दूर कर यथार्थ को समझ कर जीने का अभ्यास करें। भक्त है तो भगवान है, शिष्य है तो शिक्षक का महत्व है। कहा जाता है की की कठिन है पिता के ऋण से मुक्त होना, कठिन है मां के ऋण से मुक्त होना लेकिन संभव नहीं गुरु के ऋण से मुक्त होना। गुरु के ऋण से मुक्त होने का उपाय भी नहीं है क्योंकि जो अनुभव गुरु के माध्यम से उपलब्ध होता है उसे अनुभव का मूल्य तो चुकाया ही नहीं जा सकता। उसे हम कुछ नहीं दे सकते सिर्फ नमन कर सकते हैं। वे तो शिष्य को संसार के पार ले जाता है उसे संसार के पार ले जाने वाले अनुभव के लिए संसार को कुछ भी दे, पूरा संसार दे तो भी बेमानी है। सिर्फ एक अनुग्रह का भाव रह जाता है। उसे विराट के सब सामने हमारे पास नमन करने के सिवाय और कुछ भी नहीं है। यदि कोई विद्यार्थी डॉक्टर या इंजीनियर बन गया तो इसका मतलब यह नहीं की शिक्षक से बड़ा हो गया शिक्षक का स्थान कल भी प्रथम था आज भी प्रथम है और कल भी प्रथम रहेगा। महाकवि कालिदास के अनुसार, जो शिक्षक नौकरी पा लेने के बाद श्रम से जी चुराता है केवल अपने पेट पालने के लिए पड़ता है, ऐसा व्यक्ति शिक्षक नहीं ज्ञान बेचने वाला बनिया कहलाता है। ज्ञान के बल पर ही चलता यह संसार है, इस मिट्टी पर सबसे पहले शिक्षक का अधिकार है।

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