निर्भय निष्पक्ष उर्दू पत्रकारिता का एक मज़बूत पाया पत्रकार आमिर सलीम खान संसार को अलविदा कह गया।

उर्दू पत्रकारिता में एक सुन्न को शायेद कभी बाआ भरा जाएगा आमिर सलीम पत्रकार ही नही बल्कि समाज के एक युवा मार्गदर्शक भी थे निर्भय निष्पक्ष उर्दू पत्रकारिता का एक मज़बूत पाया थे।

उर्दू पत्रकारिता में एक सुन्न को शायेद कभी बाआ भरा जाएगा आमिर सलीम पत्रकार ही नही बल्कि समाज के एक युवा मार्गदर्शक भी थे वह निर्भय निष्पक्ष उर्दू पत्रकारिता का एक मज़बूत पाया थे।

  निर्भय निष्पक्ष उर्दू पत्रकारिता का एक मज़बूत पाया पत्रकार आमिर सलीम खान संसार को अलविदा कह गया।
 एस. ज़ेड. मलिक 
नई दिल्ली। जितना भी अफसोस करेंगे कम होगा जितनी प्रसंशा की जाए कम होगी, दयालु, कृपालु सृदृढ़ विचारवान समाज को गहराइयों से समझने वाला बड़े छोटों को आदर सम्मान करने वाला युवा उर्दू पत्रकारिता के क्षेत्र का एक चर्चित मुस्कुराता चेहरा व वरिष्ठ पत्रकार, दैनिक ‘हमारा समाज’, दिल्ली के संपादक, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के सदस्य आमिर सलीम खान का 48 वर्ष की आयु में सोमवार दोपहर 1 बजे हृदय गति रुकने से निधन हो गया (इन्ना लिल्लाहे व इन्ना अलैहे राजेऊन) अर्थात हर जीव को अल्लाह अर्थात ईश्वर ने बनाया है पैदा किया और फिर वापस उसी के पास जाना है, अल्लाह हम सभी को सही और सीधा रस्ते पर चलने हिदायत दे और उनके दुनियाँ किये हुए सारे छोटे बड़े जाने अनजाने किये गए गुनाहों को माफ फ़रमाये, आमीन। वे लंबे समय तक पत्रकारिता से जुड़े रहे।  और पिछले 13 साल से दैनिक हमारा समाज से जुड़े हुए थे। कुछ महीने पहले हमारा समाज ने यू-ट्यूब चैनल बनाकर वीडियो कार्यक्रमों की शृंखला शुरू की थी, जो काफी सफल रही। उन्होंने दैनिक हिन्दुस्तान एक्सप्रेस, उर्दू में दैनिक राष्ट्रीय सहारा में पत्रकारिता सेवाएं भी की हैं।  “आमिर सलीम खान साहब एक मिलनसार, रचनात्मक और वाक्पटु पत्रकार और नई पीढ़ी के लिए एक आदर्श थे। वे एक जिज्ञासु पत्रकार थे और समाचारों में तथ्यों को साहसपूर्वक रखते थे। उनके निधन से उर्दू पत्रकारिता में जो जगह खाली हुई है वह शायेद खाली ही पड़ा रहेगा सदियों उन्हें याद रखा जाएगा। मैं इसमें शामिल हूं। बेशक आमिर सलीम की त्रासदी हमारे समाज के लिए बहुत बड़ी क्षति है। हम दुआ करते हैं कि अल्लाह ताला हमारे समाज को अपना इनाम दे और मृतक को दया की धारा में जगह दे। उनका दिल्ली के जीबी पंत अस्पताल में इलाज चल रहा था। चार दिन पहले उन्हें दिल का दौरा पड़ा था। 11 दिसंबर को उनका स्वास्थ्य कुछ हद तक ठीक हो गया था, लेकिन 12 दिसंबर को उन्हें फिर से दौरा पड़ा। उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था, लेकिन उन्हें लाख प्रयत्नों के बावजूद उन्हें बचाया नहीं जा सका और लगभग एक बजे उनका निधन हो गया। ‘घड़ी। उनके व्यक्तित्व का एक विशेष पहलू यह है कि वह मुख्य रूप से एक धार्मिक विद्वान थे। इनके मैयत को दिल्ली के मेहंदीयान कब्रिस्तान में ख़ाके सुपुर्द किया गया था। अल्लाह उन्हें जन्नत अल-फिरदौस में सर्वोच्च स्थान प्रदान करे और उनके परिवार और रिश्तेदारों को धैर्य प्रदान करे।
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