लोकतंत्र के सफल संचालन के लिए देश में अंधतंत्र का सफाया करना होगा।
हमारे देश स्थिति इस समय ठीक नही-जानता ने अपने थोड़े स्वार्थ की खातिर अपना सुध-बुध खो दिया है - जनता वोट देने से पहले देश के विकास से ज्यादा धर्म और जाति को ध्यान रखकर वोट देती है
हमारे देश स्थिति इस समय ठीक नही-जानता ने अपने थोड़े स्वार्थ की खातिर अपना सुध-बुध खो दिया है – जनता वोट देने से पहले देश के विकास से ज्यादा धर्म और जाति को ध्यान रखकर वोट देती है ।
आलेख –
लोकतंत्र के सफल संचालन के लिए देश में अंधतंत्र का सफाया करना होगा।
लेखिका -सुनीता कुमारी – बिहार
‘लोकतंत्र’ लोक शासन है जिसमें देश की पूरी जनता शामिल होती है। देश का प्रत्येक व्यक्ति शासन में भागीदार होता है। फिर हमारे देश की शासन व्यवस्था में इतनी खामियां क्यों है? देश में उचित संसाधन होते हुए भी देश की आर्थिक स्थिति संतोषजनक नही है? समाजिक, नैतिक, सांस्कृतिक,धार्मिक सभी क्षेत्रो में ह्रास देखा जा रहा है? जनता वोट देने से पहले देश के विकास से ज्यादा धर्म और जाति को ध्यान रखकर वोट देती है क्यो?क्या हमारा लोकतंत्र राजतंत्र का ही दूसरा नाम है? अगर नही तो लोकतंत्र में देश की ऐसी स्थिति क्यों।ऐसा लगता है जैसे हमारे देश में लोकतंत्र की जगह अंधतंत्र का राज हो?
आजादी के बाद हमारे देश के समाजवाद की कल्पना की गई, जिसके तहत देश में समानता की भावना के साथ लोकतंत्र की स्थापना हुई। यह सही है कि, हमारे देश में लोकतंत्र की स्थापना हुई परंतु हमारे देश के लोकतंत्र को चलाने के लिए जिन राजनीतिक पार्टियो की स्थापना देश की शासन व्यवस्था को चलाने के लिए हुई उन पार्टियों ने देश हित से ज्यादा पार्टी हित पर ध्यान दिया?नेता राजनेता,मंत्री बनने की होड़ ने पार्टियों ने देश हित को पीछे छोड़ दिया,इसका ज्वलंत प्रमाण मध्यावती चुनाव, आपातकाल एवं एक ही चुनावी सत्र में एक से अधिक प्रधानमंत्री का बदला जाना है। ये तो पुरानी बाते है अभी हाल ही में बिहार की राजनीतिक की राजनीतिक में जो भी हुआ उसने लोकतंत्र के सारे नियम और उसूलों की स्वच्छ तस्वीर सबके सबके सामने रखी?बिहार की राजनीतिक ने यह साबित कर दिया कि,राजनीतिक में न देश, न जनता का जनादेश, और न ही पार्टी के कायदे कानून नेताओ के लिए इनसब का औचित्य व्यक्तिगत स्वार्थ के बाद है।
हमारे देश में आजादी से लेकर लेकर अबतक की राजनीतिक स्थिति को देखकर ऐसा लगता है जैसे राजनीतिक दलो का गठन आपस में विवाद करने के लिए हुआ है ,सत्ता में में बने रहने के लिए अनैतिक तरीके अपनाकर धनार्जन लिए हुआ है।ऐसी स्थिति देखकर लगता है जैसे हमारे देश में दो बड़े बड़े राजनीतिक पार्टी नही दो बड़े बड़े राजतंत्र है ,जो सत्ता हथियाने के लिए आपस में झगड़ते है एवं इनका साथ छोटे छोटे अन्य पार्टियों के राजा देते है।
राजतंत्र में अनेक खामियां थी शासन की बागडोर राजा के हाथ में होती थी।राजा की व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर देश का विकास या देश का ह्रास होता था।परंतु लोकतंत्र में पक्ष और विपक्ष दोनों ने मिलकर राजतंत्र से भी बुरा हाल कर रखा है। हमारे देश में जिस समय राजतंत्र हुआ करती थी मुगलों के आने से पहले कम से कम भारत आर्थिक मामले में संपन्न था ,भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था अकूत संपत्ति धन्य धान्य से भारत परिपूर्ण था ,किंतु विदेशी आक्रमण और विदेशी शासन ने भारत के लोगों पर भी विदेशी सोच का जामा चढ़ा गया है। चाहे नेता हो यह आम जनता दोनों देशहित से ज्यादा स्व हित पर ध्यान देते है । स्थिति दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है ?देश का पैसा आज से ही नहीं आज देश की आजादी के बाद से ही विदेशी बैंकों में जमा हो रहा हैं?
जो नेतागण वास्तव में देश की स्थिति सुधारना चाहते हैं उन्हें या तो अन्य नेता आगे बढ़ने नहीं दे रहे हैं या फिर जनता उनका साथ नहीं देती है।
लोकतंत्र आम जनता का शासन है, फिर इसमें पार्टी की क्या आवश्यकता पक्ष या विपक्ष की क्या आवश्यकता? चुनाव आयोग द्वारा स्वतंत्र रूप से नेता का चुनाव किया जाता एवं प्रधानमंत्री एवं राष्ट्रपति से लेकर विधायक तक की निगरानी के लिए विपक्ष की जगह निगरानी आयोग का गठन किया जाता। सरकार के कार्य का लेखा-जोखा रखती एवं जो नेता दागी होता है या गलत पाया जाता उसे अपदस्थ करने की व्यवस्था होती ।
निगरानी टीम द्वारा सरकार के कार्यों का लेखा-जोखा रखा जाता तो कहीं ज्यादा अच्छा होता। इस तरह पार्टीवाद की राजनीति से देश को मुक्ति मिलती।
परिवारवाद के नाम पर छोटे छोटे राजतंत्र भारत में खड़े न न होते । परिवारवाद एक तरह से राजतंत्र का ही हिस्सा है जिसने देश के विकास में बाधा डाल रखा है।
देश में हर क्षेत्र में भ्रष्टाचार है परंतु राजनीतिक में भष्टाचार सबसे अधिक है।राजनीतिक पार्टियां पार्टी संचालन के लिए,चुनाव लड़ने के लिए, कालाबाजारी ,धोखाधड़ी,अनैतिक कामों में लिप्त लोगो को चिन्हित कर मोटा पैसा वसूल करती है जो इस तरह के गैरकानूनी कामों को बढ़ावा देना है,भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है।ऐसे लोग सिर्फ और सिर्फ देश का अहित करते है।
हमारे देश की राजनीतिक में अपराधी छवि वाले नेताओ की भरमार है जो सारे अनैतिक गैरकानूनी काम करने वाले लोगो को संरक्षण देती है ।इन अपराधी छवि वाले नेताओ के कारण ईमानदार और कर्मठ लोग राजनीतिक में आने से कतराते है।
ऐसी स्थिति में सबसे बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि, क्या हमारे देश का लोकतंत्र सफल है?
नही, यदि सफल होता तो हमारे देश की तस्वीर ही अलग होती।
लोकतंत्र के सफल संचालन के लिए दुबारा शासन व्यवस्था पर चिंतन मनन करना होगा । शुरू से अंत तक सारे काम और सारे फैसले देश हित में लेने होगे।व्यक्तिगत हित से ज्यादा देश हित को महत्व देना होगा ।लोकतंत्र में अंधतंत्र को दूर भगाना होगा