शिक्षित भारत में समस्याओं से घिरी शिक्षा को कब समाधान मिलेगा ??
इस दुनिया में प्रत्येक बच्चें का Iq लेवल अलग-अलग होता है
इस दुनिया में प्रत्येक बच्चें का Iq लेवल अलग-अलग होता है
शिक्षित भारत में समस्याओं से घिरी शिक्षा को कब समाधान मिलेगा ?? (भाग-4)
लेखिका सुनीता कुमारी
पूर्णियाँ बिहार ।
इस दुनिया में प्रत्येक बच्चें का Iq लेवल अलग-अलग होता है ,Iq लेवल के हिसाब से बच्चे उच्च बुध्दि(प्रतिभाशाली )सामान्य बुद्धि या औसत बुद्धि और निम्न बुद्धि के बच्चे होते है।
प्रत्येक बच्चें में व्यक्तिगत विभिन्नता होती है,किसी बच्चें को कला में किसी बच्चें को खेल में,किसी बच्चें को संगीत में तो,किसी बच्चें को विज्ञान
में रूचि होती है।इसी तहर हर बच्चेकीक्षमताअलग-अलग होती है।
प्रत्येक बच्चें में अलग-अलग कौशल और अलग-अलग गुण होते हैं हर बच्चाकिसी न किसी कला में अवश्य ही दक्ष होता है ।निश्चित ही कोई ना कोई काम हुआ वह बहुत ही अच्छे ढंग से करता है और उसमें अपना भविष्य अच्छे से अच्छा बना सकता है।
जरूरत सिर्फ इतनी होती है कि ,बच्चें को उसकी दक्षता को निखार कर उसे आकार प्रदान किया जाय ताकि, वह उस काम को अच्छे से अच्छा कर सके और अपने जीवन में आगे बढ़ सके ।
अनेकों उदाहरण हमारे देश में मौजूद है सचिन तेंदुलकर ने अपनी कला को पहचाना और वे क्रिकेट के भगवान बन गए, उन्हें खेलने में रूचि थी। इसी तरह जयशंकर प्रसाद जी कि, लिखने में रूचि थी हिंदी साहित्य के जाने-माने पुरोधा वे किसी शैक्षणिक डिग्री के मोहताज नहीं रहे और उन्होंने एक से एक साहित्यिक रचनाएं कि ।उन्होंने माध्यमिक तक की भी शिक्षा हासिल नहीं की थी । “प्रतिभा किसी डिग्री की मोहताज नही होती ,न ही वे किसी परिस्थित से ठरती है।”
हमारे देश में अनेकों उदाहरण ऐसे मौजूद है अनेकों कौशल ऐसे मौजूद है जो किसी डिग्री या शिक्षा के मोहताज नहीं रहे हैं और उन्होंने पूरे विश्व भर में अपनी प्रतिष्ठा का लोहा मनवाया है अपने कौशल का लोहा मनवाया है।
यदि ये लोग भी अपने कौशल को दरकिनार कर भारत में विधिवत शिक्षा प्रदान करने वाली व्यवस्था, के तहत शिक्षा ग्रहण करते तो एवं उम्मीद करते की वे सफल हो जाएंगे तो,निश्चित ही उनका भविष्य में गर्दिश में रहता। परंतु इन्होंने और इनके माता-पिता ने इनका साथ दिया इनके कौशल को पहुंचाया। इन को आगे बढ़ने में मदद की जिससे उन्होंने सफलता का शिखर छू लिया।
हमारे देश में भी प्रत्येक माता-पिता यही चाहते हैं कि, उनका बच्चा अच्छा से अच्छा करें ,देश में नाम करें सफलता के शिखर को छुए,यही सोच कर यह बच्चों को शिक्षा अर्जन के लिए स्कूल भेजते हैं। बच्चों के दिमाग में यह बात भरते हैं कि,उन्हे पढ़-लिखकर डाक्टर, इंजिनियर बनना है या कोई अच्छी सरकारी नौकरी करनाहै।
शिक्षा अर्जन से ही उनका भविष्य बन सकता है और यह सही भी है परंतु ,प्रत्येक माता-पिता एवं बच्चे यह भूल जाते हैं कि, प्रत्येक बच्चे में अलग-अलग कौशल और अलग-अलग दिमागी क्षमता होती है। किसी बच्चे को कोई बात आसानी से समझ आ जाती है वही, उसी बात को कोई बच्चा कई प्रयासों के बाद भी नहीं समझ पाता है। क्योंकि उसकी उसकी रूचि उसकी कैपेसिटी कहीं और होती है ।
हमारे देश में अबतक जो शिक्षा व्यवस्था रही है उनमें बच्चें की कौशल, बौद्धिक क्षमता ,रूचि के अनुसार न होकर सभी बच्चों के लिए एक जैसी शिक्षा की ही व्यवस्था रही है ।सरकार की भी नीति रही की बच्चें को सरकारी नौकरी देनी है ,और प्रत्येक बच्चें के माता पिता की भी यही कोशिश रही की बच्चें को पढ़-लिख कर करे।
न तो शिक्षा व्यवस्था, न ही सरकार, न ही बच्चें के माता पिता ने सोचा की बच्चा स्वरोजगार करे या अपना कोई व्यवसाय करे?
हमारे समाज में भी गलत अवधारणा बनी हुई है,सरकारी नौकरी नही मिलने की दशा में बच्चें स्वरोजगार या व्यवसाय की तरफ झुकते है तो समाज इन्हे हीन दृष्टी से देखता रहा,उनकी प्रतिभा को कमजोर समझता है ।
आज समाज की नजर में वही बच्चा परफेक्ट है जो सरकारी नौकरी कर रहा है।
जो बच्चा पढ़ाई कर सफलता हासिल कर सरकारी नौकरी कर लेता है,उसका तथा उसके माता पिता का सम्मान समाज में बढ़ जाता हैं साथ ही शादी विवाह के लिए भी उसकी मांग बढ़ जाती है ,यही हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था की बिडम्बना है,
मगर जो बच्चा सफलता हासिल नहीं कर पाता है,उसका मनोबल बहुत ज्यादा टुट जाता है ऐसे बहुत सारे उदाहरण है हमारे समाज में है कि, अच्छा एजुकेशन प्राप्त करने के बाद भी बच्चा सफल नहीं हो पाते है और असफलता की बोझ में दबकर अवसाद का शिकार हो जाते है?
वही बहुत बच्चे माता पिता एवं समाज के दबाव में रूचि के विपरीत करने का प्रयास करते है ,एवं असफ़लता मिलने पर आत्महत्या तक कर लेते है?
हमारे आजादी के बाद हमारे देश बच्चों को बचपन से ही यही जाता हैं कि, पढ़ाई कर डॉक्टर बने ,इंजीनियर बने ?
पर यह नहीं सिखाते कि, जो बच्चे जो कौशल कूट कूट कर भरा है उस काम को वह बहुत अच्छे से करसकता है वह करे??।
डॉक्टर इंजीनियर की दौड़ में जो बच्चा दक्ष होता हैं वह तो आगे निकल जाता है मगर बाकी बच्चे अवसाद का शिकार होकर निराश होते जाते हैं जिस कारण समाज में बहुत सारी विकृति भी आ रही है ।सही दिशा नही मिलने के कारण बच्चे रास्ता भटक रहे है।
हमारे समाज में हमारे आसपास सौ बच्चे डॉक्टर की तैयारी करते हैं तो, उसमें दो, चार बच्चें सरकारी मेडिकल कॉलेज के लिए चुने जाते हैं, बाकी पनचानवें बच्चों की एनर्जी बेकार चली जाती है इसमें कहीं ना कहीं गलती माता-पिता की भी होती है और हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था की तो कहने ही क्या??
प्रत्येक बच्चे को एक ही मॉडल पर शिक्षा दी जाती है। बच्चे चाहे अलग-अलग कौशल में दक्ष क्यों ना हो। इस कौशल तो हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था में कोई महत्व नहीं है ।बच्चे को उनके कौशल और उनके अनुसार शिक्षा अर्जन करने की जगह सरकार के रूल रेगुलेशन के द्वारा शिक्षा ग्रहण करनी पड़ती है। जिसका कोई निर्धारित भविष्य ही नही होता है ।यही कारण है कि,हमारे देश में निम्न वर्ग के माता पिता बच्चों को पढ़ाने में कोई रूचि ही नही लेते है।आठ साल दस साल की उम्र में ही कही न कही किसी न किसी काम पर लगा देते हैं ,क्योंकि वे जानते है कि,उनके बच्चें उच्च शिक्षा प्राप्त नही कर सकेगे ,और कम शिक्षा प्राप्त कर कोई नौकरी मिलने से रही।
प्रत्येक व्यक्ति अपना भविष्य सुरक्षित चाहता है यही कारण है कि,लोग सरकारी नौकरी को महत्व देते है,वे नही चाहते की उन्हें आए दिन ,उन्हे नौकरी से निकाला जाए ।प्रत्येक व्यक्ति को जीवन में रोजमर्रा की जरूरत को पूरा करने के लिए स्थाई आय की जरूरत होती है ताकि, वह रोजमर्रा की जरूरत को आसानी से पूरा कर सकें ।
हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था में एक सुरक्षित मार्ग मात्र सरकारी नौकरी ही है जिसमें हर किसी को अपना भविष्य सुरक्षित दिखता है ।
जबकि स्वरोजगार व व्यवसाय भी एक ऐसा अर्थ अर्जुन का साधन है जिसमें अच्छे से अच्छा भविष्य बनाया जा सकताहै मगर ,हमारी शिक्षा व्यवस्था में स्वरोजगार को बढ़ावा देने वाला कोई विकल्प ही नहीं। इस कारण बेरोजगारों की भीड़ दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। यदि हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था में बदलाव किया जाए तो निश्चय ही बेहतर परिणाम मिलेंगे। कौशल आधारित शिक्षा व्यवस्था लागू करने से स्वरोजगार को बढ़ावा मिलेगा ।
प्रत्येक बच्चा अपनी इच्छा अनुसार कार्य कर जीवन में आगे बढ़ेगा और सफलता प्राप्त करने का मौका मिलेगा । बेरोजगारी की समस्या कम होगी।
हमारे बच्चों को बचपन से ही यही सिखाते हैं कि पढ़ाई कर डॉक्टर बनना है ,इंजीनियर बनना है, पर यह नहीं सिखाते की जो बच्चा में कूट कूट कर भरा है ,उस काम को वह बहुत अच्छे से कर सकता है और जीवन में आगे बढ़ सकता है ।
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