बिहार की विलुप्त होती मलिक जाती – सैयद से तेली क्यूँ बने?

बिहार के मलिक बिरादरी को बिहार सरकार के अन्य पिछड़ी जातियों की सूचियों शामिल क्यूँ किया गया? जबकि यह बिरादरी के लोग सैयद नस्ल से हैं।

बिहार के मलिक बिरादरी को बिहार सरकार के अन्य पिछड़ी जातियों की सूचियों शामिल क्यूँ किया गया? जबकि यह बिरादरी के लोग सैयद नस्ल से हैं।

बिहार में मलिक भी बिहार सरकार के अन्य पिछड़ी जातियों की सूचियों शामिल किया जा चुका है।

एस. ज़ेड. मलिक (स्वतंत्र-पत्रकार)

इस मे मुस्लिम समुदायें के किसी जाती को शक नहीं होना चाहिये कि बिहार में भी मलिक एक  जाती है जो अन्य जातियों की तरह अब पिछड़ा वर्ग में आता है। दरअसल मलिक जाति का इत्तिहास 1000 साल पुराना है इस जाती का इत्तिहास साहसी और वीरतापूर्ण, गौरवशाली रहा इस जाती का स्वाभाव – सन्त-सुभाव का रहा – एवं शालीनतापूर्ण रहनसहन – सुफियान ए नफासत, से भरा है। इस जाती का इत्तिहास तो बहुत लंबा है परंतु इसका संक्षेपत विवरण ज़रूर देना चाहूंगा ।

बिहार में इस जाति का जन्म लग भग 753 ई0, के दरमियान राजा तुग़लक़ के दौर में हुआ। कहा जाता है कि सैयद इब्राहिम मलिक बया एक महान सूफी संत-योद्धा बादशाह तुग़लक़ के यहां एक मामूली सिपाह सालार थे, जो 14वीं शताब्दी में दक्षिण बिहार पहुंचे और स्थानीय मुसलमानों पर अत्याचार करने वाले आदिवासी कोल सरदारों को हराया। उन्होंने राजा बिरथल जिसे राजा बिट्ठल भी कहा जाता था उसको भी हराया और बिहार के पहले मुस्लिम विजेता और राज्यपाल बने। ससैयद इब्राहिम मलिक बाया की शादी राजा विष्णु गौड़ तीसरी बेटी से हुई इस पर पर्दा डाला हुआ है वह ब्राह्मण थे। उन्होंने ईमान लाया फिर निकाह हुआ, और उनकी ज़ौज़ियत में दिया गया, और बिहार उन्हें इनाम में दिया गया। यह सब सुल्तान की निगरानी में हुआ, उनसे 7 बच्चे भी हुए 2 बेटी और 5 बेटा, काफी दिनों तक हुकूमत की उसके बाद उनकी हत्याहुये और उनका मकबरा आज भी बिहार के नालंदा ज़िला के बिहारशरीफ पहाड़ी पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के तहत संरक्षित है और आज बिहारशरीफ में वह स्थान एक पर्यटन स्थल के रूप में देखा जाता है। 

  परंतु सवाल है कि जिस जाती का इत्तिहास इतना साहसी और गौरवपूर्ण रहा है, मलिक तो मात्र एक टाइटल है असल मे तो यह सैयद की नस्ल हैं। और यह नस्ल हमेशा ज़मींदार रही,  उस मलिक जाती को आज आरक्षण की आवश्यकता क्यूँ पड़ी और वह कौन हैं जिन्हें आरक्षण की आवश्यकता महसूस हुई और मालिक जाती को तेली साबित कर आरक्षण दिलवाने के लिये 15 वर्षों तक बिरादरी में ज़मीनी संघर्ष करने बाद अंततः झारखंड और बिहार सरकार के पिछड़ी जाति के सूची में शामिल कराने में कामयाब रहे। वह कौन हैं उनका एक संक्षेपत परिचय कराना जरूरी समझता हूं। 

इनका नाम शमशाद ज़फर फ़िज़िक्स के नाम से सम्पूर्ण झारखंड में प्रसिद्ध है, झारखंड के रांची में इनका संस्था चलाते हैं , पहले तो यह फ़िज़िक्स के बहुत ही विद्वान शिक्षक के रूप में जाने जाते थे अब इन्होंने अपने संस्था विस्तार कर लिया और वह अपने क्षात्रों को आईएस और आईपीएस की तैयारी भी कराते हैं।  दरसल यह भी बिहार के नालंदा ज़िला के बिरनावां गाँव से सम्बन्ध रखते हैं। मलिकों में रिश्तेदारी यानी सम्बन्ध जंगली की लत के समान है , सभी कहीं से न कहीं से सभी एक दूसरे से सम्बन्ध निकल ही जायेगा और वही असली मलिक कहलायेगा।

बहरहाल ब्रिटिशकाल में मलिकों की ज़मींदारी छिनाने के बाद यानी 1942 से स्थिति गिरने लगी मलिकों के पास जब तक ज़मीने रहीं उसे बेच बेच के ऐश करते रहे कोई होशियार रहे तो उन्होंने अपने बच्चों को सशिक्षित कराने का काम किया और अपने धंधे में लगा कर उस धन का सही उपयोग किया और जिन्हें ऐश करने की आदत लग चुकी थी उन्होंने अपने धन को बर्बाद कर दिया । बहुत ऐसे लोग रहे जिन्हों ने अपने घमण्ड में अपने माँ बाप के कुछ कहने पर  अपना घर-बार ही छोड़ कर दुसरीं जगह जा कर बस गए तो फिर दुबारा अपने गाँव जीते जी नहीं गए और न अपने बच्चों को जाने दिया।   

वैसे परिवार की दिन ब दिन स्थिति दयनीय होती गयी और उनके बच्चे भीख मांगने के कगार पर आ गये। ऐसे लोगों की संख्या इस जाती के ए आबादी के एतबार से काफी बड़ी है।

हिंदुओं की पिछड़ी जाति पिछड़ी एवं आदिवासीन को तो संविधान से आरक्षण मिल गया लेकिन मुसलमानों को संविधान की धारा 341 के तहत जो आरक्षण दिया गया था उसे 1952 में हटा दिया गया। फिर 1976 कांग्रेस की सरकार गिरा दी गई और 1980 में जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद हिंदुओ में आरक्षण मामला उठना आरम्भ हुआ जिसमे क्रीमिलियार और यादवों, जाटों, गूजरों एक, तथा मुसलमानों में अंसारियों तथा अन्य मुस्लिम के पिछड़ी जितिन को भी अन्य पिछड़ी जाति में शामिल किया गया तक बिहार के मालिक उच्च जाति के सामान्य वर्गों में गिने जाते थे। परन्तु 1980 के दशक से इनकी स्थिति इतनी खराब हो गई कि यह मलिक बिरादरी मज़दूरी करने पर मजबूर हो गई। कोई बीड़ी मज़दूर बनगया तो कोई शिप पर मज़दूरी करने चला गया तो कोई ट्रकों पर खलासी का काम करने लगा तो कोई राज-मज़दूर बन गया। इस बिरादरी में 1990 के बाद कुछ बदलाव आने लगा जब सऊदी ने अपने यहां मज़दूरों के लिय काम करने के लिये वीजा की छूट दे दी और बिरादरी के लोग सऊदी जाने लगे और पराये को बुलाने लगे तो वहां की कमाई लोगों के परिवार वालों को महीने में बंधी हुए एक मोटी रकम के तौर पर मिलने लगा   तब इस बिरादरी के लोग की स्थिति बदलने लगी।

परन्तु इस बीच  रांची के शमशाद ज़फर ने आरक्षण की आवश्यकता महसूस हुई और मालिक जाती को आरक्षण दिलवाने के लिये 15 वर्षों तक बिरादरी में ज़मीनी  संघर्ष करने बाद अंततः झारखंड और बिहार सरकार के पिछड़ी जाति के सूची में शामिल कराने में कामयाब रहे। बहरहाल 26 मई 2008 को मलिक मुस्लिम जाति को भारत के संविधान में एक जाति के रूप में दर्जा दिया गया। 26 नवंबर 1949 से में जब भारत Gear कानून बना तो उस समय मलिक जाती ना तो ऊंची जाति के सूची में शामिल थी और ना पिछले जाति की सूची में शामिल थी मतलब आजादी के समय से 2008 तक मलिक किसी भी सूची में शामिल नहीं थी ना तो ऊंची जाति की सूची में और ना पिछड़ी जाति की सूची में.. आज 26 मई 2008 को बिहार सरकार के द्वारा मलिक मुस्लिम जाति को राज्य में अन्य पिछड़ी जाति BC 2 का दर्जा दिया गया। केस नो. 02/2003/132- बनाम बिहार सरकार के संदर्भ में मुस्लिम समुदायें में मलिक को एक जाती के रूप चिन्हित कर अन्य द्वित्य पिछड़ी जाती का दर्जा दिया गया। केस नो. 54/2002 मो. शमशाद ज़फर मलिक बनाम झारखंड सरकार के संदर्भ में मलिक को अन्य पिछड़ी जाती का दर्जा दिया गया। उसी प्रकार केस नो. 35/2001 – मो. शमशाद ज़फर मलिक बनाम भारत सरकार में जाती सूची में संग्लन कराया। तथ इस प्रकार बड़े ही संघर्षों के पश्चात मलिक मुस्लिम जाति को राज्य सरकार के शैक्षणिक संस्थानों में एवं सरकारी नौकरियों में BC 2 का उपयोग कीजिए एवं भारत सरकार की नौकरी एवं भारत सरकार के शैक्षणिक संस्थानों में EWS सर्टिफिकेट बनाकर उपयोग का अधिकार दिया गया।

ज्ञात हो कि जिसकी इनकम आठ लाख से ऊपर है वह क्रीमिलियार में आते हैं, उनके लिये यह आरक्षण क़तई नहीं है और सामान्य वर्ग में उच्च जाति के लिये भी जिनकी इनकम 8 लाख से नीचे है उन्हें ही EWS देने का प्रवधान है।

जबकि मलिक कोई जाति नहीं है बल्कि एक पद है वह तो सैयद की नस्ल हैं – मलिक तो एक टाइटल है फिर भी तेली बना दिया🤔🤔 🤭🤭 अब सवाल यह है कि इस बिरादरी के कितने लोग इस आरक्षण का लाभ ले रहे हैं – और जो इसका लाभ ले रहे हैं उनकी हैसियत क्या है?  कितने लोग अबतक इस आरक्षण के तहत आईएएस और आपीएस बने या बिरादरी के कितने लोग शैक्षणिक संस्थानों में नामांकन में लाभ उठा रहे हैं ? 

मैं समझता हूं कि बिहार के में 7 लाख मलिकों की आबादी का शायद अब तक 1 प्रतिशत ने भी लाभ नही उठाया होगा। बिहार के मलिकों को अपनी जनसंख्या का भी पता नहीं है। मैने जो संख्या का आंकड़ा दिया है वह 1980 से अब तक बिहार से सम्बंधित भारत एवं भारत से बाहर विदेशों जा कर बस गये हैं अब मलिकों की जनसंख्या कम हो गई है 2001 से अब तक 5 से साढ़े 5 लाख मलिकों की आबादी बिहार में होगी।

अब मलिक बिरादरी को चाहिय की हर वर्ष 26 मई को मलिक दिवस मनाए और शमशाद ज़फर को एक उस्ताद के रूप में सम्मानित करें। और 

बहरहाल – मलिक की असल कहानी दौरे राजा तुग़लक़ से आरम्भ होती है।

सैयद इब्राहिम मल्लिक बया रह0
इब्राहिम बया का मकबरा 22.jpg

बिहारशरीफ में सैयद इब्राहिम मल्लिक बया रह0 का मकबरा
जन्मगजनी , अफगानिस्तान
मृत20 जनवरी 1353 सीई (13 वीं दुल हज 753 एएच)
रोहतासगढ़ , रोहतास जिला , बिहार
वंशमलिक
पेशासैन्य जनरल, राज्यपाल

सैयद इब्राहिम मल्लिक बेया, सुहरावर्दीया संप्रदाय से संबंधित हैं। वह सुल्तान मुहम्मद तुगलक के समय भारत आये और 725 हिजरी (1324 ई.) में सेनापति बनाये गये। बायू’ शब्द फ़ारसी शब्द ‘बेया’ से बना है जिसका अर्थ है “आओ।’ सैयद इब्राहिम, बिहार पर अपनी पहली जीत के बाद, सुल्तान मुहम्मद तुगलक को मामले की जानकारी देने गए, जिन्होंने अपनी उल्लेखनीय जीत से प्रसन्न होकर कहा “मलिक बिया बेनशीं” (ओ प्रमुख आओ और बैठो)। मलिक उल्लेखनीय कार्य के लिए महत्वपूर्ण व्यक्तियों को प्रदान की जाने वाली उपाधि थी। सैयद इब्राहिम को भी यह खिताब मिला है। समय बीतने के साथ बेया शब्द मुड़ गया और बायू बन गया।
 सुल्तान तुगलक (1290 AD-1351 AD) के समय, भले ही बिहार राज्य दिल्ली के नियंत्रण में था, सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए, इसके शासक स्वायत्त थे। सुल्तान को बिहार के गवर्नर (सूबेदार) राजा बिठल के खिलाफ कई शिकायतें मिलीं, जो न केवल अत्याचारी थे बल्कि दिल्ली के सुल्तान के खिलाफ विद्रोही भी थे। राजा बिठल को दंडित करने के लिए सुल्तान ने अपने सेनापति सैयद इब्राहिम मलिक को भेजा। एक भयंकर युद्ध के बाद, राजा मारा गया और उसकी सेना हार गई। बिहार की विजय एक उल्लेखनीय उपलब्धि थी, और इस अवसर पर, सुल्तान ने सैयद इब्राहिम मल्लिक को “मदरुल मुल्क” अर्थात मल्लिक या सैफ-ओ-दौलत (प्रशासक और तलवार और धन का राजा) की उपाधि से सम्मानित किया। यह दर्ज किया गया है कि सुल्तान इस जीत से इतना खुश था, कि अपने दरबार में वह खुद सैयद इब्राहिम मल्लिक को प्राप्त करने और बधाई देने के लिए आया था। अभिवादन के आदान-प्रदान के बाद, सुल्तान मोहम्मद बिन तुगलक ने फ़ारसी में सैयद इब्राहिम मलिक से कहा (उस समय की आधिकारिक भाषा) “मल्लिक्स बया, बे-नशीन” जिसका अर्थ है “हे राजा आओ और मेरे बगल में बैठो”। यह कह कर सुल्तान ने उन्हें यह महान सम्मान प्रदान किया। उसके बाद उन्हें “मल्लिक बया” कहा जाता था। सुल्तान ने सैयद इब्राहिम मलिक को बिहार राज्य का राज्यपाल नियुक्त किया। उन्होंने अपने परिवार और रिश्तेदारों के साथ में बसना चुना बिहारशरीफबिहार में , सैयद इब्राहिम मल्लिक ने कई अभियानों जैसे देवड़ा और खटंगी आदि का नेतृत्व किया, और राजा बैथल को हराया और सुल्तान मोहम्मद बिन तुगलक द्वारा बिहार का राज्यपाल नियुक्त किया गया। सैयद इब्राहिम मल्लिक ने सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक के चचेरे भाई सुल्तान फिरोज शाह तुगलक के शासनकाल के दौरान 1351 से 1353 AD/751-753 AH तक कुछ वर्षों के लिए बिहार के राज्यपाल और जनरल के रूप में भी कार्य किया । अपने शासनकाल के दौरान, उन्होंने राजा हंस कुमार के साथ अपनी आखिरी लड़ाई लड़ी और रोहतासगढ़ किले को जीत लिया ।
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हत्या

जब लड़ाई अंत में बंद हो गई, सैयद इब्राहिम मलिक ने क्षेत्र में कानून और व्यवस्था स्थापित की। शांति स्थापित होने के बाद, एक रात सैयद इब्राहिम मल्लिक बया ने किले को छोड़ दिया, जब दुश्मन सैनिकों के एक समूह ने किले के बाहर अंधेरे में छिपे हुए, पीछे से इस जनरल पर चुपके से हमला किया और उसे मार डाला। सैयद इब्राहिम मल्लिक की मृत्यु रविवार, 13वीं दुल हज्ज 753 हिजरी 20 जनवरी 1353 ई. को हुई। उनके पार्थिव शरीर को दफनाने के लिए बिहारशरीफ लाया गया था , जहां उन्होंने अपना लगभग पूरा जीवन अपने परिवार, रिश्तेदारों और रिश्तेदारों के साथ गुजारा था।

विरासत

इब्राहिम बया  और अन्य कब्रों का मकबरा

सैयद इब्राहिम मल्लिक बया के आठ बच्चों के वंशज 600 वर्षों में गुणा हो गए और बिहार में मुस्लिम समुदाय का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए। कहा जाता है कि इस मकबरे का निर्माण संत के सात पुत्रों में सबसे बड़े सैयद दाउद मल्लिक ने करवाया था, जिन्हें भी मकबरे के अंदर ही दफनाया गया है। सैयद इब्राहिम मल्लिक का मकबरा बिहारशरीफ में स्थित है , जो शहर के एक मील पश्चिम में बुद्धा पहाड़ी की पहाड़ी पर स्थित है। सैयद इब्राहिम के मकबरे की आधारशिला मखदूम जहां बिहारी, मुखदूम अहमद चिरामपुश और मखदूम शाह अहमद सिस्तानी ने रखी थी। मकबरा एक दुर्लभ गुणवत्ता वाली ईंटों की एक असाधारण संरचना है, जो पिछले 600 वर्षों से समय की तबाही और मौसम की अविश्वसनीय तबाही का सामना कर रही है।

600 वर्षों के बाद, संरचना इस तरह खड़ी है जैसे कि इसे हाल के दिनों में बनाया गया हो।

 

और डिटेल्स में जानकारी प्राप्त करना है तो हमारे मोबाइल नंबर शमशाद जफर मलिक के नंबर पर प्रत्येक संडे को सुबह 10:00 से 12:00 बजे कांटेक्ट किया जा सकता है। मैं उन तमाम लोगों का शुक्रिया अदा करना चाहता हूं जिन लोगों ने 12 साल तक की इस लड़ाई में हमारा साथ दिया।

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