भास्कर एक्सप्लेनर द्वारा पहले नेहरू को मिली थी यह सेंगोल,
नेहरू जी का भूत - मोदी जी का पीछा नही छोड़ रहा है - मोदी जी अपने नये इत्तिहास में भी नेहरू जी का सिंगरौल अपने नये सांसद भवन में लाना पड़ा।
नेहरू जी का भूत – मोदी जी का पीछा नही छोड़ रहा है – मोदी जी अपने नये इत्तिहास में भी नेहरू जी का सिंगरौल अपने नये सांसद भवन में लाना पड़ा।
नेहरू जी का भूत – मोदी जी का पीछा नही छोड़ रहा है – मोदी जी अपने नये इत्तिहास में भी नेहरू जी का सिंगरौल अपने नये सांसद भवन में लाना पड़ा।
भास्कर एक्सप्लेनर द्वारा पहले नेहरू को मिली थी यह सेंगोल,
7 ऐतिहासिक दस्तावेजों से जानिए सेंगोल सेरेमनी की पूरी सच्चाई।
सबसे पहले कांग्रेस नेता जयराम रमेश का सेंगोल से जुड़ा ये बयान पढ़िए…
‘माउंटबेटन, राजाजी और नेहरू से जुड़ा कोई ऐसा दस्तावेज नहीं, जो प्रमाणित करे कि यह राजदंड अंग्रेजों से भारत को सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल हुआ था।’
इस पर गृहमंत्री अमित शाह ने पलटवार किया…
‘कांग्रेस पार्टी भारतीय परंपराओं और संस्कृति से इतनी नफरत क्यों करती है? भारत की स्वतंत्रता के प्रतीक के रूप में तमिलनाडु के एक पवित्र शैव मठ ने पंडित नेहरू को एक पवित्र सेंगोल दिया था, लेकिन इसे ‘चलने की छड़ी’ समझकर एक संग्रहालय में भेज दिया गया।’
दोनों नेताओं की बातें पढ़कर आपके मन में भी सवाल उठ रहे होंगे कि आखिर सच्चाई क्या है? इसके लिए हमने अंबेडकर के आर्टिकल से लेकर लैरी-डोमिनिक की किताब और टाइम मैगजीन की कवरेज तक 7 दस्तावेज खंगाले हैं। जहां नेहरू की सेंगोल सेरेमनी के बारे में लिखा है। उम्मीद है इन्हें पढ़ने के बाद कंफ्यूजन की गुंजाइश नहीं बचेगी।
1. टाइम मैगजीन के 25 अगस्त 1947 के अंक में लिखा था…
25 अगस्त 1947 की टाइम मैगजीन का वो पन्ना, जहां सेंगोल से जुड़ी खबर है। – Dainik Bhaskar
25 अगस्त 1947 की टाइम मैगजीन का वो पन्ना, जहां सेंगोल से जुड़ी खबर है।
‘जवाहरलाल नेहरू जैसे तर्कवादी भी, भारत के पहले प्रधानमंत्री बनने की पूर्व संध्या पर धार्मिक भावना से भर गए। दक्षिण भारत के तंजौर से एक हिंदू मठ के प्रमुख श्री अंबलावना देसीगर के दो दूत आए। श्री अंबलावना ने सोचा कि नेहरू, वास्तव में भारतीय सरकार के पहले भारतीय प्रमुख के रूप में सत्ता संभाल रहे हैं। उन्हें प्राचीन हिंदू राजाओं की तरह, हिंदू संतों से शक्ति और अधिकार का प्रतीक प्राप्त करना चाहिए।
दोनों दूतों ने अपने लंबे बालों को अच्छी तरह से गूंथ रखा था। उनकी छाती पर कोई कपड़ा नहीं था और माथे पर श्री अबलावना के आशीर्वाद वाली पवित्र भस्म लगी हुई थी। वे नेहरू के घर में पूरी गरिमा से दाखिल हुए। दो लड़के हिरण के बाल से बने पंखे से हवा दे रहे थे। एक सन्यासी के हाथ में पांच फुट लम्बा और दो इंच मोटा सोने का राजदंड था। उन्होंने तंजौर से लाया पवित्र जल नेहरू पर छिड़का और माथे पर पवित्र राख की लकीर खींच दी। फिर उन्होंने नेहरू को पीतांबरम पहनाया और उन्हें सुनहरा राजदंड सौंप दिया।’
2. जाने-माने पत्रकार डीएफ कराका ने 1950 में प्रकाशित अपनी किताब में पेज 39-39 में सेंगोल सेरेमनी का जिक्र किया…
‘पंडित नेहरू, जो आमतौर पर मंदिर या धार्मिक समारोह में न जाने के लिए जाने जाते थे, उन्होंने भी धार्मिक पंडितों का आशीर्वाद लेने की सहमति दी। तंजौर से सन्यासियों के मुख्य पुजारी के दूत आए। प्राचीन भारत में पवित्र पुरुषों से शक्ति और अधिकार पाने की परंपरा थी। पंडित नेहरू इन सभी धार्मिक समारोह के आगे झुक गए, क्योंकि भारत में कहा जाता है कि ये पुराने राजाओं के लिए सत्ता संभालने का पारंपरिक तरीका था। नई दिल्ली का मिजाज लगभग अंधविश्वासी हो गया था।
शाम को पुजारी इन धार्मिक जुलूसों के आगे-आगे चले। वे तंजौर से राजदंड और पवित्र जल साथ लाए थे। उन्होंने अपना उपहार प्रधानमंत्री के चरणों में रखा। पंडित नेहरू के माथे पर पवित्र विभूति लगाई और अपना आशीर्वाद दिया।’
3. डोमिनिक लैपियर और लैरी कॉलिन्स की चर्चित किताब ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ के चैप्टर ‘जब दुनिया सो रही थी’ में सेंगोल सेरेमनी का जिक्र किया गया है…
डोमिनिक लैपियर और लैरी कॉलिन्स की चर्चित किताब ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ का कवर पेज। – Dainik Bhaskar
डोमिनिक लैपियर और लैरी कॉलिन्स की चर्चित किताब ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ का कवर पेज।
‘मद्रास के नटराज मंदिर से पीताम्बर और अन्य पवित्र वस्तुएं लेकर जो साधु दिल्ली आए थे, उनका भव्य जुलूस यार्क रोड के 17 नंबर बंगले की ओर बढ़ रहा था, ताकि उस व्यक्ति को ईश्वर का आशीर्वाद दिया जा सके, जिसे ईश्वर पर विश्वास नहीं था और जो कुछ ही घंटों बाद इस देश का कर्णधार बनने जा रहा था।
उन दोनों में से एक के हाथ में एक विशाल चांदी का थाल था, जिस पर सोने की धारियों वाली सफेद रेशम की पट्टी यानी पातम्बर रखा हुआ था। दूसरे के हाथ में पांच फुट का राजदंड, तंजौर के पवित्र जल का पात्र, पवित्र राख का एक थैला और उबले हुए चावल रखे थे, जो भोर में नाचते हुए भगवान नटराज के चरणों में उनके मंदिर में चढ़ाया गया था।
जैसे हिंदू संतों ने प्राचीन भारत के राजाओं को अपनी शक्ति का प्रतीक प्रदान किया था, वैसे ही ये संन्यासी एक आधुनिक भारतीय राष्ट्र का नेतृत्व संभालने वाले व्यक्ति को अपने प्राचीन अधिकार के प्रतीक प्रदान करने के लिए यॉर्क रोड आए थे। उन्होंने जवाहरलाल नेहरू पर पवित्र जल छिड़का, उनके माथे पर पवित्र राख मली, उनके हाथों पर अपना सेंगोल रखा और उन्हें पीतंबर में लपेट दिया।’
4. भीमराव अंबेडकर के लेखन और भाषणों पर महाराष्ट्र शिक्षा विभाग ने 1979 में एक किताब प्रकाशित की। इसके अध्याय 5 के पेज 149 में सेंगोल का जिक्र है…
’15 अगस्त, 1947 को एक ब्राह्मण के भारत का प्रधानमंत्री बनने के उपलक्ष्य में बनारस के ब्राह्मणों ने यज्ञ किया। क्या नेहरू उस यज्ञ में नहीं बैठे, ब्राह्मणों का दिया राजदंड नहीं लिया और उनके लिए लाया गया गंगाजल नहीं पिया?’
5. 11 अगस्त 1947 को द हिंदू के मद्रास अंक में लिखा है…
‘स्वतंत्रता दिवस समारोह के संबंध में, तिरुवदुतुरई के परम पावन श्री-ला-श्री अंबलावन ने शिव की विशेष पूजा करने और पंडित जवाहरलाल नेहरू को भगवान का आशीर्वाद प्रदान करने की व्यवस्था की है। रात 11 बजे पंडित नेहरू को नई दिल्ली स्थित उनके आवास पर पूजा का प्रसाद और सोने से बना सेंगोल भेंट किया जाएगा। शहर के वुम्मिदी बंगारू चेट्टी एंड संस ज्वेलर्स ने ये सोने का सेंगोल बनाया है।’
6. 13 अगस्त 1947 को इंडियन एक्सप्रेस के मद्रास एडिशन में लिखा है…
– Dainik Bhaskar
‘आधिकारिक घोषणा की गई है कि तंजौर जिले के थिरुवदुथुराई अधीनम परम पावन श्री ला श्री अंबलावन देसिका ने भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को 15 हजार रुपयों से बनी स्वर्ण सेंगोल भेंट करने का फैसला किया है। पंडित नेहरू इसे 14 अगस्त की रात 11 बजे स्वीकार करेंगे।
समारोह में परम पावन का प्रतिनिधित्व करने के लिए थिरुवथिगल के श्री-ला-श्री कुमारस्वामी थम्बिरन और श्री आर. रामलिंगम पिल्लई कल नई दिल्ली के लिए रवाना हुए।’
7. 15 अगस्त 1947 को द स्टेट्समैन ने अपनी न्यूज रिपोर्ट में लिखा…
– Dainik Bhaskar
‘तिरुवदुथुराई अधिनाम (तंजौर) के पंडारसन्धि के प्रतिनिधियों ने गुरुवार की रात पंडित नेहरू को उनके आवास पर एक सुनहरा सेंगोल भेंट किया। बड़ी संख्या में दक्षिण भारतीयों ने समारोह देखा।’
इन सभी ऐतिहासिक संदर्भों से साफ है कि भारत के पहले प्रधानमंत्री नेहरू को सेंगोल दिया गया था। हालांकि ज्यादातर संदर्भ इशारा कर रहे हैं कि ये उनके दिल्ली स्थित आवास पर हुई एक धार्मिक सेरेमनी थी। इन संदर्भों में न तो माउंटबेटेन को सेंगोल देने और उसे वापस लेकर जल से पवित्र करने का जिक्र है और न ही इसे अंग्रेजों से सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में देने पर साफ-तौर पर कुछ लिखा है।
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