प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन की बात स्टार्ट-अप की दुनिया नए भारत की भावना को रिफ्लेक्ट कर रही है
स्टार्ट-अप की दुनिया नए भारत की भावना को रिफ्लेक्ट कर रही है ।
स्टार्ट-अप की दुनिया नए भारत की भावना को रिफ्लेक्ट कर रही है-यूनिकॉर्न की सेंचुरी: क्रिकेट के मैदान की तरह ही भारत ने एक और मैदान में सेंचुरी लगाई है, जो विशेष है।
मन की बात
प्रधानमंत्री के स्टार्ट-अप की दुनियाँ – नये भारत की भावना को रिफ्लेक्ट कर रहा है।
भारत के सामर्थ्य को बीते 8 वर्षों में एक नई उड़ान मिली है। स्टार्टअप अब यूनिकॉर्न बन रहे हैं। ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ की भावना लोगों को स्वयं से अलग होकर समाज के प्रति समर्पण का भाव पैदा कर रही है। कर्तव्य पथ पर चल रहा भारत नई गाथा लिख रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरकार के 8 वर्ष पूरे होने से ठीक एक दिन पहले अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में इन विषयों पर अपने विचार साझा किए। साथ ही, अंतरराष्ट्रीय योग दिवस, चार धाम की तीर्थ यात्रा में स्वच्छता को तीर्थ सेवा बनाने का मंत्र दिया। पेश है ‘मन की बात’ के अंश:
यूनिकॉर्न की सेंचुरी: क्रिकेट के मैदान की तरह ही भारत ने एक और मैदान में सेंचुरी लगाई है, जो विशेष है। इस महीने भारत में यूनिकॉर्न की संख्या 100 के आंकड़े तक पहुंच चुकी है। इन यूनिकॉर्न का कुल वैल्युएशन 25 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा है। एक यूनिकॉर्न यानी, कम-से-कम साढ़े सात हजार करोड़ रुपये का स्टार्टअप। पिछले साल 44 यूनिकॉर्न सामने आए और इस साल पिछले 3-4 महीनों में 14 और बने। भारतीय यूनिकॉर्न की औसत वार्षिक वृद्धि दर अमेरिका, ब्रिटेन और कई अन्य देशों की तुलना में अधिक है। स्टार्टअप की दुनिया नए भारत की भावना को प्रदर्शित कर रही है।
स्टार्टअप को सही मार्गदर्शन: एक अच्छा मेंटर यानी सही मार्गदर्शन स्टार्टअप को नई उंचाईयों पर ले जा सकता है। पद्म पुरस्कार से सम्मानित श्रीधर वेम्बू ग्रामीण क्षेत्रों में उद्यमियों को तैयार कर रहे हैं। मदन पडाकी ने वन-ब्रिज बनाया जिसने भारत के 75 जिलों में 9 हजार से अधिक ग्रामीण उद्यमियों की मदद की है।
महिला सशक्तीकरण: तंजावुर गुड़िया महिला सशक्तीकरण की दिशा में एक नया अध्याय लिख रही है। तंजावुर में महिला स्वयं सहायता समूह स्टोर और कियोस्क खुल रहे हैं। इस पहल से 22 स्वयं सहायता समूह जुड़े हुए हैं। आत्मनिर्भर भारत अभियान को बढ़ावा देने हेतु अपने क्षेत्र में स्वयं सहायता समूह द्वारा बनाए गए उत्पादों के उपयोग को प्रोत्साहित करें।
कर्तव्य पथ: कर्तव्य के मार्ग पर चलकर ही हम समाज व देश को सशक्त बना सकते हैं। आंध्र प्रदेश के राम भूपाल रेड्डी ने गांव की लड़कियों की शिक्षा हेतु अपनी पूरी पेंशन सुकन्या समृद्धि योजना में दान कर दी। यूपी के श्याम सिंह ने अपने गांव में स्वच्छ पानी की पाइप लाइन डालने के लिए अपनी पूरी पेंशन दान कर दी।
स्वच्छता और सेवा की साधना: इस समय हमारे देश में उत्तराखण्ड के ‘चार-धाम’ की पवित्र यात्रा चल रही है। लोग अपनी ‘चार-धाम यात्रा’ के सुखद अनुभव साझा कर रहे हैं। लेकिन श्रद्धालु केदारनाथ में कुछ यात्रियों द्वारा फैलाई जा रही गंदगी से दुखी भी हैं। पवित्र यात्रा में गंदगी का ढेर हो, ये ठीक नहीं। इन शिकायतों के बीच कई अच्छी तस्वीरें भी देखने को मिल रही हैं जिसमें यात्रा मार्ग से कूड़ा-कचरा साफ करते लोग शामिल हैं। स्वच्छ भारत की अभियान टीम के साथ मिलकर कई संस्थाएं और स्वयंसेवी संगठन भी वहां काम कर रहे हैं। तीर्थ-सेवा के बिना, तीर्थ-यात्रा भी अधूरी है।
जापान में भारत की संस्कृति: जापान में भारत के लिए अद्भूत लगाव और प्रेम है। हिरोशी कोइके ने स्थानीय प्रतिभाओं का उपयोग करते हुए 9 अलग-अलग देशों में महाभारत का निर्देशन किया है। उनके द्वारा निर्देशित प्रत्येक कहानी देश की स्थानीय कला विविधता के साथ जुड़ती है। अत्सुशी मात्सुओ और केंजी योशी ने रामायण पर आधारित एक जापानी एनिमेशन फिल्म का निर्माण किया है। फिल्म को 4K में फिर से बनाया जा रहा है।
देश में बढ़ा मान, दुनिया में सम्मान
”वसुधैव कुटुंबकम” की सोच के साथ आज भारत अपनी बढ़ती ताकत का दुनिया को करा रहा है अहसास।
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गोवा की आजादी का पहला सत्याग्रह
गोवा क्रांति दिवस पर अमृत महोत्सव की श्रृंखला में इस बार पढ़िए, उन क्रांतिवीरों की कहानी जिन्होंने गोवा की मुक्ति के लिए किया जोरदार संघर्ष।
…ताकि फिर कभी न हो ऐसे आपातकाल की पुनरावृत्ति
47 वर्ष पहले हुई घटना ने देश को अहसास कराया था कि लोकतंत्र का महत्व क्या है। यह घटना लोकतंत्र के प्रति समर्पण, संकल्प को मजबूत करने की सीख देती है ।
समाचार सार। 4-5
जो दौड़ते नहीं, उड़ते थे
कहानी आजाद भारत के पहले स्पोर्ट्स स्टार मिल्खा सिंह की| 6
8वां अंतरराष्ट्रीय योग दिवस
भारत के वरदान योग को आगे बढ़ाने का संकल्प| 7-10
योग के जरिए वैलनेस में विश्व का नेतृत्व कर रहा भारत
आयुष मंत्री सर्बानंद सोणोवाल का विशेष आलेख| 11-12
साथ औैर विश्वास से भरा एक प्रयास
पीएम केयर फॉर चिल्ड्रन से बच्चों को मिल रहा संरक्षण 13-14
कोविड से जंग में भारत की मजबूत ”आशा ”
डब्ल्यूएचओ ने 10 लाख आशा कार्यकर्ताओं को किया सम्मानित।
तकनीक के साथ विकास की संभावनाओं के नए द्वार
5जी और ड्रोन सेक्टर में आत्मनिर्भरता की ओर भारत के बढ़ते कदम।
राष्ट्रीय जैव-ईंधन नीति में संशोधन
कैबिनेट की बैठक में महत्वपूर्ण फैसले। पेज 35
100 % लाभ-लाभार्थी तक पहुंचाने का लक्ष्य
सेवा, सुशासन और गरीब कल्याण से विकास यात्रा को मिल रही गति| 36-39
‘सहकार से समृद्धि’ के साथ ‘गरीब कल्याण’ का लक्ष्य
अब सहकारिता से आगे बढ़ेगा देश।
इंफ्रास्ट्रक्चर सिर्फ आंकड़े नहीं, देश के विकास का आधार।
तमिलनाडु को प्रधानमंत्री मोदी ने दी सौगात।
खेलों के विश्व पटल पर भारत का जूनून
डेफ ओलंपिक और थॉमस कप विजेता खिलाड़ियों से पीएम का संवाद|44-45
सस्ते लोन से तय करें स्वाभिमान की यात्रा
फ्लैगशिप योजना में इस बार पढ़िए पीएम स्वनिधि के बारे में| 46-48
भारत आज दुनिया की ‘नई उम्मीद’
श्री स्वामी नारायण मंदिर के कार्यक्रम में प्रधानमंत्री का संबोधन 49
संपादक की कलम से…
सादर नमस्कार।
वसुधैव कुटुंबकम।
अर्थात् पूरा विश्व एक परिवार। इसी सोच के साथ भारत सरकार ने विदेश नीति को विशेष महत्व दिया है। परंपरागत रिश्तों में नए प्राण भरना, सामरिक संबंधों को पुन: स्थापित करना और विदेश में रहने वाले भारतीयों तथा भारतीय मूल के लोगों तक पहुंचना भारत के प्रयासों में प्रमुख है।
देश-दुनिया में भारत का मान और सम्मान बढ़ा है और उसके ब्रांड एंबेसडर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं, जिन्होंने अपने विदेश दौरों में राष्ट्रनीति के साथ ‘भारत प्रथम’ की सोच को प्राथमिकता दी है। दुनिया के सभी देशों के साथ संबंधों को मजबूत करने की दिशा में कदम तो उठाए ही, साथ ही, दुनिया में बसे भारतीयों को अपनी माटी से जोड़ने के लिए भी अभूतपूर्व प्रयास किए हैं। आज अगर दुनिया में बसे भारतीयों को इस महान देश का नागरिक होने पर गौरव की अनुभूति हो रही है तो उसमें प्रधानमंत्री का ‘कम्युनिटी कनेक्ट’ महत्वपूर्ण कदम है। मैडिसन स्क्वायर से हाउडी मोदी, आस्ट्रेलिया, जर्मनी-डेनमार्क और हाल ही में जापान की यात्रा में भारतीय जन समुदाय से सीधे संवाद ने भारतवंशियों को अपनी जड़ों से फिर जुड़ने के नए अवसर व गौरव दिए हैं। आज भारत के विकास के संकल्पों को दुनिया अपने लक्ष्यों की प्राप्ति का माध्यम मान रही है। वैश्विक शांति हो या वैश्विक चुनौतियों से जुड़े समाधान, दुनिया भारत की तरफ उम्मीद से देख रही है। यही इस बार की आवरण कथा बनी है।
अंत्योदय की सोच को समाज के अंतिम व्यक्ति तक केंद्र सरकार की योजनाओं का लाभ पहुंचाने की तत्परता के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गुजरात, तमिलनाडु और हिमाचल प्रदेश के कार्यक्रम इस अंक का हिस्सा हैं। भविष्य के भारत की बुनियाद रखने वाली 5जी और ड्रोन निर्माण तकनीक पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विजन और इस दिशा में केंद्र सरकार के प्रयास भी आपको इस अंक में पढ़ने को मिलेंगे। साथ ही, कोविड काल के मुश्किल समय में अपनों को खोने वाले बच्चों के भविष्य को संवारने की दिशा में ‘पीएम केयर्स फॉर चिल्ड्रन’ योजना किस तरह योगदान दे रही हैं, यह भी आप इस अंक में पढ़ सकते हैं।
आप और हम जानते हैं कि भारत की सभ्यता और संस्कृति में योग का बेहद महत्वपूर्ण स्थान है। आठवें अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर 2014 से अब तक योग की यात्रा भी इस अंक का हिस्सा है। इसके साथ की अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर केंद्रीय आयुष मंत्री सर्बानंद सोणोवाल का आलेख भी आपको इसमें पढ़ने को मिलेगा।
आप अपने सुझाव हमें भेजते रहें।
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https://newindiasamachar.pib.gov.in/news.aspx
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आपकी बात…
प्रति जिला 75 तालाबों के उद्धार के बारे में सुनकर जगी आशा
मैं एक साधारण सा व्यक्ति हूं जो गांव में रहता हूं। बहुत सुंदर उपवन, जल संरक्षण और सरोवर बनाने का 20 वर्षों का व्यवसायिक अभ्यास है। गांवों में पूर्वजों द्वारा बनवाए गए सुंदर तगाड़ों और तालाबों का विभिन्न कारणों से ह्रास या फिर पूर्ण नाश देख कर दिल दुखी होता है। प्रधानमंत्री का प्रति जिला 75 तालाबों का उद्धार और जल संरक्षण योजना सुनकर बहुत आशा जगी है। अब मैं तालाबों के गंदे जल को स्वच्छ करने और नालियों के बहुत गंदे पानी को भी साफ करने और सर्वप्रथम वर्षा जल संचयन के अपने अनुभवों को हर गांव की व्यक्तिगत आवश्यकता अनुसार जोड़ सकूंगा।
agopal.g@gmail.com
परीक्षाओं की तैयारी में सहायक है ‘न्यू इंडिया समाचार’ पत्रिका
न्यू इंडिया समाचार में दी गई जानकारी परीक्षाओं की तैयारी में काफी सहायक साबित हो रही है। इसमें विद्यार्थियों और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वालों के लिए बहुत अच्छी सामग्री रहती है। मोदी सरकार के आठ साल पूरा होने के अवसर पर नए अंक ने हमारी जानकारी को अपडेट किया।
रिंपी सिंह
rimpeesingh05@gmail.com
पत्रिका में जानकारी रोचक एवं तथ्यपरक
न्यू इंडिया समाचार का 16 से 31 मई का अंक मिला। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 8 साल के कार्यकाल के बारे में दी गई जानकारी रोचक एवं तथ्यपरक है। किसानों का आय बढ़ाने और महिला सशक्तिकरण पर लिखा गया आलेख भी शानदार है। इसके अलावा राजा राममोहन राय के बारे में दी गई जानकारी भी अच्छी लगी।
अभय चौधरी
abhaychaudhary.clinic@gmail.com
देवी अहिल्या बाई होल्कर के बारे में मिली नई जानकारी
न्यू इंडिया समाचार का नया अंक प्राप्त हुआ। देवी अहिल्या बाई होल्कर के बारे में लिखा गया आलेख रोचक लगा और उनके बारे में नई जानकारी प्राप्त हुई। अमृत महोत्सव में पत्रकारिता से जुड़े लोगों के बारे में दी गई जानकारी पढ़ने में भी अच्छी लगी। साथ ही आवरण कथा का प्रस्तुतीकरण भी शानदार लगा।
सुरभि स्नेहा snehasurabhi5@gmail.com
‘न्यू इंडिया समाचार पत्रिका’ में महत्वपूर्ण जानकारी
न्यू इंडिया समाचार पत्रिका का 21वां अंक प्राप्त हुआ। अंक बहुत ही सुंदर है। आपने अपने संपादकीय में विद्या से संबंधित विषय पर अच्छा प्रकाश डाला है, वहीं सरकार की नवीन योजनाओं के संबंध में और विदेशों से जुड़े रिश्तों के संबंध में बड़ी महत्वपूर्ण जानकारी दी है। साथ ही आजादी का अमृत महोत्सव से संबंधित छापामार युद्ध के महानायक तात्या टोपे के साथ-साथ उषा देवी, नीलांबर पीतांबर, योद्धा पयाली बरुआ जैसे गुमनाम वीरों पर अच्छा प्रकाश डाला गया है। पत्रिका के शुरुआत में ही एक आलेख है जो डॉक्टर पांडुरंग वामन काणे से संबंधित है, उनके जीवन पर आधारित यह लेख बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी दे रहा है। सुंदर पत्रिका के लिए बहुत-बहुत शुभकामनाएं।
मुकेश कुमार ऋषि वर्मा mukesh123idea@gmail.com
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सार समाचार
हवाईअड्डों पर दिखेगी भारतीय कारीगरों के हुनर की झलक
अवसर ने खोले रास्ते
‘आत्मनिर्भर भारत’ के साथ देशवासियों की आय में वृद्धि के लिए केंद्र सरकार की ओर से लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। देश में ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए जहां एक ओर स्वयं सहायता समूह के जरिए उन्हें रोजगार उपलब्ध कराया जा रहा है तो वहीं, अब उनके सामान को बेचने के लिए मंच और बाजार भी मुहैया कराया जा रहा है। इसी कड़ी में केंद्र सरकार ने ग्रामीण क्षेत्र के कारीगरों और महिलाओं को एक बड़ा उपहार दिया है। राष्ट्रीय आजीविका मिशन के स्वयं सहायता समूह से जुड़ कर गांव की महिलाओं द्वारा घर-घर में तैयार किए जाने वाले उत्पादों को राष्ट्रीय पहचान दिलाने के लिए सरकार ने बड़ी पहल करते हुए “अवसर” योजना की शुरुआत की है। इसके अंतर्गत देश के हवाई अड्डों पर ग्रामीण महिलाओं द्वारा तैयार उत्पाद का रिटेल आउटलेट होगा, इससे ग्लोबल लेवल पर ग्रामीण उत्पाद की ब्रांडिंग और बिक्री हो सकेगी। इन स्टोर पर पैकेज्ड पापड़, अचार, बांस आधारित लेडीज बैग, बोतल, लैंप सेट, कलाकृति, पारंपरिक शिल्प, प्राकृतिक रंग, कढ़ाई वाले उत्पाद के साथ-साथ अन्य उत्पाद उपलब्ध होंगे। अभियान के पहले चरण में चेन्नई हवाई अड्डे पर देश का पहला आउटलेट शुरू हो गया है। अगरतला, देहरादून, कुशीनगर, उदयपुर, अमृतसर, रांची, इंदौर, सूरत, मदुरई, भोपाल एवं बेलगावि हवाई अड्डे पर कार्य प्रगति पर है।
‘जनता के पद्म’ पुरस्कारों के लिए आवेदन शुरू, 15 सितंबर तक करें आवेदन
कभी केवल अभिजात्य वर्ग के दायरे तक सीमित रहने वाले पद्म पुरस्कार, 2014 के बाद कैसे आम इंसान के पद्म पुरस्कार में बदला यह हम सबने देखा है। राष्ट्रपति भवन के रेड कारपेट पर पद्म पुरस्कार लेते असाधारण कार्य करने वाले साधारण लोगाें की तस्वीरों की चर्चा आज सबके बीच है, क्यांेकि देश की कमान संभालते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पद्म पुरस्कारों के नामांकन की पूरी प्रक्रिया बदल दी। अब कोई भी व्यक्ति स्वयं या किसी और को इन पुरस्कारों के लिए नामांकित कर सकता है। अब बारी है अगले वर्ष गणतंत्र दिवस के अवसर पर घोषित किए जाने वाले पद्म पुरस्कारों के नामांकन की। इसकी प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और 15 सितंबर 2022 तक इसके लिए राष्ट्रीय पुरस्कार पोर्टल https://awards.gov.in ऑनलाइन नामांकन किया जा सकता है।
‘प्रगति’ की बैठक में प्रधानमंत्री मोदी का समन्वय पर जोर
14 राज्यों में करीब 60 हजार करोड़ रुपये की 8 परियोजनाओं की समीक्षा
2014 में देश की कमान संभालने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अनोखी पहल से देश के विभिन्न राज्यों में करोड़ों रुपये की अटकी-भटकी और लटकी परियोजनाएं एक के बाद एक तेजी से पूरी हो रही हैं। यह क्रांतिकारी बदलाव संभव हुआ है, प्रगति यानी प्रो-एक्टिव गवर्नेंस एंड टाइमली इम्प्लीमेंटेशन (PRAGATI) प्लेटफॉर्म की मदद से। इस पर विकास परियोजनाओं की निगरानी प्रधानंमत्री मोदी स्वयं करते हैं। 25 मई को प्रधानमंत्री मोदी ने ‘प्रगति’ की 40वीं बैठक में 14 राज्यों में 59,900 करोड़ रुपये की लागत से चल रही 8 परियाेजनाओं की समीक्षा की। समीक्षा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में काम कर रही एजेंसियों के आपसी समन्वय पर जोर दिया। बता दें कि इससे पहले ‘प्रगति’ बैठक के 39 संस्करणों में पीएम मोदी 14.82 लाख करोड़ रुपये की 311 परियोजनाओं की समीक्षा कर चुके हैं।
साल 2020 में रोड एक्सीडेंट में आई गिरावट
दुर्घटनाओं में 18.46% तो मृतकों की संख्या में 12% से ज्यादा की कमी
सख्त मोटर वाहन अधिनियम हो या फिर सड़क दुर्घटना में घायलों के समुचित इलाज की व्यवस्था, केंद्र सरकार ने 2025 तक सड़क दुर्घटनाओं में 50% तक कमी लाने का लक्ष्य हासिल करने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। इन्हीं प्रयासों का परिणाम सड़क यातायात और राजमार्ग मंत्रालय के ट्रांसपोर्ट रिसर्च विंग द्वारा तैयार रिपोर्ट ‘रोड एक्सीडेन्ट्स इन इंडिया-2020’ में मिला है। रिपोर्ट के अनुसार, साल 2019 की तुलना में 2020 में सड़क दुर्घटनाओं में खासी गिरावट दर्ज की गई है। 2019 के मुकाबले 2020 में कुल दुर्घटनाओं में औसतन 18.46 प्रतिशत की कमी हुई है। वहीं दुर्घटना में जान गंवाने वाले लोगों की संख्या में 12.84 प्रतिशत की कमी देखी गई है। इसी तरह घायलों की संख्या में भी 22.84 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। साल 2020 के दौरान राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने कुल 3,66,138 सड़क दुर्घटनाओं की रिपोर्ट दी है।
आयुष्मान भारत हेल्थ अकाउंट का नया मोबाइल एप जारी, अब फोन पर भी देखा जा सकेगा डेटा
राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण ने अपनी आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन योजना के तहत ‘आयुष्मान भारत हेल्थ अकाउंट’ मोबाइल एप का नया संस्करण जारी किया है। नए सिरे से डिजाइन किए गए ABHA एप में एक नया यूजर इंटरफेस और अतिरिक्त विशेषताएं शामिल की गई हैं, जिससे उपयोगकर्ता अपने स्वास्थ्य रिकॉर्ड को कभी भी और कहीं पर भी देख सकते हैं। एप के इस नए संस्करण के जरिए नागरिक अपने स्वास्थ्य रिकॉर्ड को लंबे समय तक सहेज पाएंगे। साथ ही, स्वास्थ्य से जुड़ा डेटा किसी और के साथ साझा भी कर पाएंगे। एप के मौजूदा उपयोगकर्ता भी पिछले संस्करण को नवीनतम संस्करण में अपडेट कर सकते हैं।
ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकृत कामगारों में सर्वाधिक कृषि क्षेत्र से
देश में असंगठित क्षेत्र के कामगारों का पंजीकरण कर उन्हें केंद्र सरकार की सामाजिक योजनाओं का लाभ देने के उद्देश्य से शुरू ई-श्रम पोर्टल पर 27 करोड़ से ज्यादा लोग पंजीकृत हो चुके हैं। इन पंजीकृत कामगारों में सर्वाधिक संख्या कृषि क्षेत्र से जुड़े कामगारों की है। कुल पंजीकरण में इनका हिस्सा 52 फीसदी से अधिक है। वहीं दूसरे नंबर पर घरेलू आैर तीसरे नंबर पर निर्माण क्षेत्र है। पंजीकरण के बाद कामगार को 2 लाख का दुर्घटना बीमा कवर मिलता है। यह पंजीकरण नि:शुल्क है। वेबसाइट https://register.eshram.gov.in/#/user/self पर खुद भी पंजीकरण किया जा सकता है। n
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व्यक्तित्व: मिल्खा सिंह
फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह
जो दौड़ते नहीं, …उड़ते थे…
विभाजन की त्रासदी के समय जिसकी आंखों के सामने परिजन की हत्या कर दी गई…, जान बचाकर ट्रेन में बर्थ के नीचे छुपकर जैसे-तैसे भारत पहुंचे, पेट पालने के लिए जिस व्यक्ति ने पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के सामने झूठे बर्तन साफ किए, जिन्हें ट्रेन में बेटिकट यात्रा करते पकड़े जाने पर सजा सुनाई गई और सेना की दौड़ में सिर्फ एक गिलास दूध के लिए हिस्सा लिया……यह भारत के उस व्यक्तित्व के संघर्ष की कहानी है, जिन्हें पूरी दुनिया ने ‘फ्लाइंग सिख’ मिल्खा सिंह के नाम से जाना…और यह उपाधि उन्हें उसी पाकिस्तान के राष्ट्रपति ने दी… जहां से उन्हें जीवन का सबसे बड़ा दर्द मिला था…
जन्म: 20 नवंबर 1929| मृत्यु: 18 जून 2021
मिल्खा सिंह, आजाद भारत के पहले स्पोर्ट्स स्टार थे, जिन्होंने अपनी गति और आगे बढ़ने के विश्वास के साथ करीब एक दशक से अधिक समय तक भारतीय ट्रैक एंड फील्ड पर राज किया। उन्होंने अपने जीवन में कई रिकॉर्ड्स बनाए। 1956 में मेलबर्न, 1960 में रोम और 1964 में आयोजित टोक्यो ओलंपिक में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया। 20 नवंबर 1929 को गोविंदपुरा (अब पाकिस्तान में) में एक सिख परिवार में जन्मे मिल्खा सिंह का इस खेल से परिचय उसी वक्त हो गया था, जब विभाजन के वक्त भारत आए और फिर सेना में शामिल हो गए।
ये वह जगह थी जहां उन्होंने अपनी दौड़ने की काबिलियत को और तेज किया। 400 सैनिकों के साथ एक क्रॉस कंट्री रेस में उन्होंने छठवां स्थान हासिल किया। इस शानदार प्रदर्शन के बाद उन्हें आगे की ट्रेनिंग के लिए चुन लिया गया। यह उनके खेल जीवन की शुरुआत थी। 1956 में मेलबर्न में आयोजित ओलंपिक में बिना किसी खास अनुभव के मिल्खा कुछ खास नहीं कर पाए। लेकिन दृढ़ निश्चय के साथ मिल्खा सिंह मेलबर्न से वापस आए और उन्होंने खुद को ‘रनिंग मशीन’ में बदल दिया। कड़ी मेहनत का फल उन्हें 1958 के कार्डिफ कॉमनवेल्थ खेलों में मिला। ट्रैक एंड फील्ड में व्यक्तिगत स्वर्ण पदक मिल्खा सिंह ने अपने नाम किया। यह रिकॉर्ड 56 साल तक कायम रहा, इसके बाद 2014 में डिस्कस थ्रोअर विकास गौड़ा ने यह उपलब्धि हासिल की। 1960 में मिल्खा सिंह के पास पाकिस्तान से भारत-पाकिस्तान एथलेटिक्स प्रतियोगिता में भाग लेने का न्योता आया। टोक्यो एशियन गेम्स में उन्होंने वहां के सर्वश्रेष्ठ धावक अब्दुल खालिक को 200 मीटर की दौड़ में हराया था। मिल्खा सिंह ने वहां जाने से इनकार कर दिया था, क्योंकि विभाजन के समय की कई कड़वी यादें उनके दिल में थीं। लेकिन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू के कहने पर वह पाकिस्तान गए। यहां एक बार फिर उन्होंने खालिक को हराया। दौड़ के बाद उन्हंे पदक देते समय पाकिस्तान के राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अय्यूब खां ने कहा, ”मिल्खा आज तुम दौड़े नहीं, उड़े हो। मैं तुम्हें फ्लाइंग सिख का खिताब देता हूं।” 1960 के रोम ओलंपिक में 400 मीटर की दौड़ में मिल्खा सिंह को ओलंपिक पोडिया का सबसे बड़ा दावेदार माना जा रहा था। मिल्खा सिंह 45.73 सेकंड के समय के साथ चौथे स्थान पर रहे थे। ये वो राष्ट्रीय रिकॉर्ड था, जो 40 वर्षों तक कायम रहा।
टोक्यो 1964, मिल्खा सिंह का आखिरी ओलंपिक था, उन्होंने संन्यास लेने से पहले 4×400 मीटर रिले में भारतीय टीम का नेतृत्व किया था। सालों बाद, मिल्खा सिंह ने अपनी बेटी सोनिया सनवल्का की मदद से जुलाई 2013 में प्रकाशित अपनी आत्मकथा ‘द रेस ऑफ माई लाइफ’ में अपने अविश्वसनीय करियर की यादें साझा कीं। इसी पर आधारित बायोपिक ”भाग मिल्खा भाग” भी रिलीज हुई। कोविड-19 महामारी के बाद 18 जून 2021 को स्वास्थ्य बिगड़ने की वजह से महान स्प्रिंटर का निधन हो गया। जिस समय उनका निधन हुआ, टोक्यो आेलंपिक शुरू होने ही वाला था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में मिल्खा सिंह को याद करते हुए कहा था, “जब मिल्खा सिंह अस्पताल में थे, तो मुझे उनसे बात करने का अवसर मिला था। मैंने उनसे आग्रह किया था कि जब हमारे खिलाड़ी ओलंपिक्स के लिए टोक्यो जा रहे हैं तो आपको हमारे एथलीटों का मनोबल बढ़ाना है और उन्हें अपने संदेश से प्रेरित करना है। वह खेल को लेकर इतना समर्पित और भावुक थे कि उन्होंने बीमारी में भी इसके लिए तुरंत हामी भर दी।”
अपने जीवन भर मिल्खा सिंह को भारत द्वारा ओलंपिक एथलेटिक्स में मेडल न जीत पाने का मलाल रहा। उनकी इस इच्छा को 11 अगस्त 2021 में नीरज चोपड़ा ने भाला फेंक में गोल्ड मेडल जीतकर पूरा किया। n
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योग दिवस
8वां अंतरराष्ट्रीय योग दिवस
मानवता को भारत का वरदान
गीता में कहा गया है-
तं विद्याद् दुःख संयोग, वियोगं योगसंज्ञितम्
अर्थात्, दुखों से वियोग को ही योग कहते हैं। योग की शुरुआत भारत में हुई थी। ये ऐसी तकनीक है, जो कोई भी मुफ्त में इस्तेमाल कर सकता है। भारतीय धर्म और दर्शन में योग का अत्यधिक महत्व है। 2014 से योग वह सेतु बनकर उभरा है, जिसने न सिर्फ भारतीय दर्शन से पूरी दुनिया को परिचित कराने का काम किया, बल्कि आज पूरी दुनिया में योग को भारत की विलक्षण शक्ति और सॉफ्ट पॉवर के रूप में देखा जाता है। ये मानवता की भलाई का वो वरदान है, जो भारत ने दुनिया को दिया है। इस बार 21 जून को करीब 192 से अधिक देश अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को किसी न किसी रूप में मनाएंगे तो आइए मानवता के इस वरदान को और आगे बढ़ाने का संकल्प लेें…
भारत ने अपने सॉफ्ट पॉवर योग से ना सिर्फ देश के नागरिकों के कल्याण बल्कि विश्व के कल्याण की भावना से दुनिया को परिचित कराया है। यही वजह है कि भारत के प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र में दुनिया के सर्वाधिक देशों के समर्थन और रिकाॅर्ड सबसे कम समय में 21 जून को योग के अंतरराष्ट्रीय दिवस के तौर पर मनाने की स्वीकृति दी गई। यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की बढ़ती ताकत और उसकी संस्कृति के सम्मान के लिए सबसे बेहतरीन उदाहरणों में से एक है।
योग पहले भी दुनिया में लोकप्रिय था लेकिन संयुक्त राष्ट्र ने जब से योग को अंतरराष्ट्रीय मान्यता दी है तो यह जन आंदोलन में तब्दील हुआ है और योग की अब घर-घर दस्तक हुई है। आज दुनिया का शायद ही कोई देश होगा जहां पर योग के संबंध में कोई कार्यक्रम न होता हो, योग के प्रति आकर्षण न बढ़ा हो, जागरूकता न बढ़ी हो। अगर पूरी दुनिया में योग के आंकड़े जुटाए जाएं तो एक अद्भुत आंकड़ा सामने आएगा। योग ने दुनिया को ‘इलनेस से वेलनेस’ का रास्ता दिखाया है।
हमारे ऋ षियों-मुनियों ने योग के लिए ‘समत्वम् योग उच्यते’ ये परिभाषा दी थी। उन्होंने सुख-दुःख में समान रहने, संयम को एक तरह से योग का पैरामीटर बनाया था। इस पैरामीटर पर सबसे बड़ी वैश्विक त्रासदी के दौरान योग खरा उतरा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत के साथ मिलकर मोबाइल योग की परियोजना शुरू की है जिसमें 2030 तक सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज का लक्ष्य संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों के तहत ‘स्वस्थ रहें, गतिशील रहें’ (बीएचबीएम) की अवधारणा पर रखा गया है।
देश के नेतृत्व की कोशिश है कि लोग योग के मास्टर, योग के अचीवर बनें या न बनें लेकिन योग के अभ्यासु जरूर बनें। देश और दुनिया योग को जीवन का हिस्सा बनाए। क्योंकि शून्य लागत में स्वास्थ्य बीमा की ताकत योग में है। योग हमें स्ट्रेस से स्ट्रेंथ की ओर, नेगेटिविटी से क्रिएटिविटी का रास्ता दिखाता है। योग हमें अवसाद से उमंग और प्रमाद से प्रसाद तक ले जाता है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार ने आयुष और योग को बढ़ावा देने के लिए न सिर्फ नया आयुष मंत्रालय बनाया बल्कि देश में आयुष आधारित आहार और जीवनशैली को बढ़ावा भी दे रहा है। ‘पोषित भारत’ के अंतिम लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए महिला एवं बाल विकास के साथ मिलकर काम कर रहा है। भारत में सदियों से यह मान्यता है कि कुछ यौगिक मुद्राएं और प्राणायाम कई रोगों को नियंत्रित करने में सहायता करते हैं। अब, आधुनिक विज्ञान इसके लिए सहायक साक्ष्य उपलब्ध करा रहे हैं। विज्ञान ने भी यह प्रदर्शित किया है कि योग के माध्यम से हृदय, मस्तिष्क और अंत:स्रावी ग्रंथियों सहित शरीर में कई अंगों के कार्यों पर नियंत्रण करना संभव है। “लोकाः समस्ताः सुखिनो भवन्तु॥” जिसका अर्थ है सब का भला हो ! सब को शांति मिले ! सभी को पूर्णता हासिल हो ! सब का मंगल हो ! सारे लोक सुखी हों ! इसी कामना के साथ स्वस्थ और खुशहाल मानवता के लिए, योग के बारे में समझ को और अधिक विकसित बनाना हमारी जिम्मेदारी है। आइए, अपनी इस जिम्मेदारी को समझते हुए अपने प्रयास तेज करें। n
2022 की विषयवस्तु- मानवता के लिए योग
विषयवस्तु- सद्भाव-शांति के लिए योग- नई दिल्ली में राजपथ पर मुख्य कार्यक्रम हुआ। 84 देशों के नागरिकों की सहभागिता। दो विश्व रिकार्ड बने।
विषयवस्तु- युवाओं को जोड़ें- चंडीगढ़ में आयोजन हुआ। 30 हजार लोगों के साथ 150 दिव्यांगों ने भी हिस्सा लिया।
विषयवस्तु – स्वास्थ्य के लिए योग – लखनऊ में 51 हजार प्रतिभागियों के साथ मनाया गया। पीएम मोदी ने जीवन शैली में इसके महत्व की चर्चा की।
विषयवस्तु -शांति के लिए योग। देहरादून में 50 हजार प्रतिभागियों के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में मनाया गया।
विषयवस्तु- पर्यावरण के लिए योग। 21 जून 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रांची में प्रतिभागियों के साथ योग दिवस मनाया।
विषयवस्तु- घर पर योग, परिवार के साथ योग। 21 जून 2020 को कोविड की वैश्विक आपदा की वजह से वर्चुअली आयोजन किया गया।
विषयवस्तु- ‘योग फॉर वैलनेस’ यानी ‘तंदुरुस्ती – कोविड की वैश्विक आपदा के बीच वर्चुअली आयोजन। ऑनलाइन कार्यक्रम में लोगों ने घर में योग किया।
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पीएम मोदी के 8 सूत्रों से समझें योग की ताकत
योग, अंग-उपांग मर्दन का कार्यक्रम नहीं है, नहीं तो सर्कस में काम करने वाले सभी बच्चे योगी कहे जाते। जिस प्रकार से संगीत समारोह शुरू होने से पहले बहुत छोटे समय में जो ताल-ठोक कार्यक्रम होता है और बाद में एक सुरीला संगीत निकलता है। ऐसे ही इन आसन का भी पूरी योग अवस्था में उतना ही हिस्सा है। बाकी तो यात्रा बड़ी लंबी होती है और इसीलिए उसी को जानना और पहचानना आवश्यक है।
सभी संप्रदाय, धर्म, पूजा-पाठ, इस बात पर बल देते हैं कि मृत्यु के बाद जब परलोक में जाएंगे तो आपको क्या प्राप्त होगा। योग परलोक के लिए नहीं है। मृत्यु के बाद क्या मिलेगा, इसका रास्ता योग नहीं दिखाता है। इसलिए ये धार्मिक कर्मकांड नहीं है। योग इहलोक में तुम्हारे मन को शांति कैसे मिलेगी, शरीर को स्वास्थ कैसे मिलेगा, समाज में एकसूत्रता कैसे बनी रहेगी, उसकी ताकत देता है। ये परलोक का विज्ञान नहीं है, इसी इहलोक का विज्ञान है।
नमक सबसे सस्ता होता है, सभी जगह उपलब्ध है। लेकिन दिनभर भोजन के अंदर अगर नमक न हो तो सिर्फ स्वाद नहीं बिगड़ता, शरीर की सारी अंतर्रचना को गहरी चोट पहुंचती है। नमक होता थोड़ा सा है, लेकिन पूरे शरीर की रचना में उसकी जरूरत को कोई नकार नहीं सकता है। जैसा जीवन में नमक का स्थान है, वैसा ही योग का स्थान भी हम बना सकते हैं। चौबीसों घंटे योग करने की जरूरत नहीं है।
अपनी महान विरासत पर अगर हम गर्व करेंगे तो दुनिया उस पर गर्व करने में कभी भी हिचकिचाहट अनुभव नहीं करेगी। अगर परिवार के लोग ही बच्चे को हमेशा नकारते रहें और अपेक्षा करें कि मोहल्ले वाले बच्चे का सम्मान करें, तो वह संभव नहीं है। जब मां, बाप और परिवार, बच्चे को जैसा भी हो स्वीकार करते हैं तब जा कर मोहल्ले के लोग भी स्वीकार करना शुरू कर देते है।
थके हुए शरीर से, टूटे हुए मन से, न सपने सजाए जा सकते हैं, न अरमानों को साकार किया जा सकता है। जब हम उत्तम स्वास्थ्य की बात करते हैं, ये चार चीजें- पीने का शुद्ध पानी मिले, आवश्यकता के अनुसार पोषण प्राप्त हो, पर्यावरण स्वच्छता और परिश्रम जीवन का हिस्सा हो- तो उत्तम स्वास्थ्य के लिए ये चार ‘प’ परिणाम देते हैं।
बच्चे हों, बड़े हों, युवा हों, बुजुर्ग हों, सभी जब एक साथ योग के माध्यम से जुडते हैं, तो पूरे घर में एक ऊर्जा का संचार होता है। इसलिए अगर मैं दूसरे शब्दों में कहूं ये भावनात्मक योग का भी दिन है, हमारी फैमिली बॉन्डिंग को भी बढ़ाने का दिन है।
महान तमिल संत श्री थिरुवल्लवर ने कहा है -‘नोइ नाडी, नोइ मुदल नाडी, हदु तनिक्कुम, वाय नाडी वायपच्चयल’ अर्थात्, अगर कोई बीमारी है तो उसे डायग्नोज करो, उसकी जड़ तक जाओ, बीमारी की वजह क्या है ये पता करो, और फिर उसका इलाज सुनिश्चित करो। योग यही रास्ता दिखाता है। आज मेडिकल साइंस भी उपचार के
साथ-साथ हीलिंग पर भी उतना ही बल देता है।
एक टाइपिस्ट, कंम्प्यूटर ऑपरेटर और सितार वादक अपनी उंगली के कमाल से जीवन का गुजारा करते हैं। लेकिन टाइप करने वाले को 50 साल या 60 साल की उम्र में देखते हैं तो लगता है कि ये मरा हुआ क्यों जी रहा है, चेहरे पर तेज नहीं है। एक 80 साल के सितार वादक को देखें तो उसे देखते ही नवचेतना की अनुभूति होती है। क्योंकि वो जब उंगली चलाता था तो वह योग करता था और वो टाइपिस्ट उंगली चलाता था तो नौकरी करता था।
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कोरोना महामारी ने हम सभी को यह अहसास कराया है, कि हमारे जीवन में, स्वास्थ्य का कितना अधिक महत्व है, और योग, इसमें कितना बड़ा माध्यम है। लोग यह महसूस कर रहे हैं कि योग से शारीरिक, आध्यात्मिक और बौद्धिक कल्याण को भी कितना बढ़ावा मिलता है। विश्व के टॉप बिजनेसमैन से लेकर फिल्म और खेल जगत की हस्तियों तक, छात्र से लेकर सामान्य मानवी तक, सभी, योग को अपने जीवन का अभिन्न अंग बना रहे हैं।
-नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री
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75 ऐतिहासिक स्थलों पर भी योग दिवस का आयोजन
आठवें अंतरराष्ट्रीय योग दिवस (आईडीवाई 2022) का मुख्य कार्यक्रम 21 जून को कर्नाटक के मैसूर में आयोजित किया जा रहा है। इस सामूहिक योग प्रदर्शन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी योग करेंगे। इस बार योग दिवस पर देश-विदेश में कुछ बेहद इनोवेटिव आयोजन किए जा रहे हैं, इन्हीं में से एक है गार्डियन रिंग। यह एक बड़ा ही अनूठा कार्यक्रम होगा जिसमें सूर्य की चाल(Movement of Sun) को जश्न के रूप मनाएंगे। सूरज जैसे-जैसे यात्रा करेगा, धरती के अलग-अलग हिस्सों से, हम, योग के जरिये उसका स्वागत करेंगे। अलग-अलग देशों में भारतीय मिशन वहां के स्थानीय समय के मुताबिक सूर्योदय के समय योग कार्यक्रम आयोजित करेंगे। ये कार्यक्रम पूरम से पश्चिम तक एक देश के बाद दूसरे देश की तरफ निरंतर आगे बढ़ता रहेगा। इन कार्यक्रमों की स्ट्रीमिंग भी इसी तरह एक के बाद एक जुड़ती जायेगी, यानी, ये, एक तरह का रिले योग स्ट्रीमिंग इवेंट होगा। आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष को ध्यान में रखकर देश की 75 धरोहर व प्रतिष्ठित सांस्कृतिक स्थानों पर सामूहिक योग प्रदर्शन होगा, जो भारत की वैश्विक स्तर पर ब्रांडिंग में भी मदद करेगा। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस 2022 को लेकर 100 दिन, 75 दिन, 50 दिन और 25 दिन की उलटी गिनती के शुरुआती कार्यक्रमों से विश्व पटल पर बड़े आयोजनों की तैयारी की झलक दिखाई है।
कोविड के दौर में आयुष व योग ने दिखाया रास्ता
n•केंद्र सरकार ने संजीवनी मोबाइल एप पर 1.35 करोड़ लोगों का आयुष की स्वीकारता, प्रभाव को लेकर एक दस्तावेज तैयार किया है। इनमें से 7.24 लाख लोगों के आंकड़े के विश्लेषण से पता चला है कि 81.5 फीसदी लोगों ने कोविड 19 की रोकथाम में आयुष उपायों का उपयोग किया, जिसमें से करीब 90% इस बात से सहमत थे कि आयुष सलाह का अभ्यास करने से लाभ मिला है।
n•केंद्रीय योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा परिषद ने स्वास्थ्य पर योग के प्रभाव को लेकर आकलन किया है जिसमें यह बात सामने आई है कि “योग से व्यक्ति की जीवन शैली से जुड़ी विभिन्न बीमारियों के रोकथाम में मदद मिलती है और उनके मानसिक स्वास्थ्य में सुधार आता है।”
योग शिक्षण-प्रशिक्षण के विस्तार के लिए कई कदम
nयोग और प्राकृतिक चिकित्सा को बढ़ावा देने के संबंध में नीतिगत सलाह और सिफारिश देने के लिए फरवरी, 2016 में राष्ट्रीय योग और प्राकृतिक चिकित्सा के संवर्धन और विकास बोर्ड (एनबीपीडीवाईएन) नाम से सलाहकार बोर्ड का गठन।
nयोग पेशेवरों के प्रमाणीकरण और संस्थानों की मान्यता के लिए एक योग प्रमाणन बोर्ड (वाईसीबी) की स्थापना की गई है जो योग प्रशिक्षकों और योग को बढ़ावा देने वाली गतिविधियों के पाठ्यक्रम निर्धारित करता है।
nआयुष मंत्रालय ने वर्ष 2021 में योग लोकेटर मोबाइल एप्लीकेशन संस्करण ‘नमस्ते योग मोबाइल एप्लीकेशन’ शुरू किया जिसपर 5141 योग केंद्र और 1625 योग प्रशिक्षक पंजीकृत हैं।
nदेश में 451 आयुर्वेदिक महाविद्यालय हैं जिसमें 65 सरकारी, 20 सरकारी सहायता प्राप्त और 366 निजी हैं। देश में 69 विश्वविद्यालय हैं जो कॉलेजों को संबद्धता देते हैं। इसके अलावा आयुष मंत्रालय के स्वायत्त संस्थान के रूप में राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान-जयपुर एक मानद विश्वविद्यालय डी-नोवो है। तीन राज्य उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और राजस्थान ने अलग से आयुष मंत्रालय का गठन किया है।
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योग के जरिए वैलनेस में विश्व
का नेतृत्व कर रहा है भारत
सर्बानंद सोणोवाल आयुष मंत्री, भारत सरकार
अंतरराष्ट्रीय योग दिवस
विश्व भर से व्यापक भागीदारी, 192 देश प्रत्यक्ष रूप से शामिल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूरगामी सोच और अथक प्रयास का ही परिणाम है कि दुनिया अब भारत को योग गुरू के रुप में स्वीकार करने लगी है। वर्तमान समय में विश्व के करीब 192 देश अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को किसी न किसी रूप में मना रहे हैं। योग का प्रभाव अब देश और काल की सीमाओं से परे है। योग के इसी महत्व को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस वर्ष अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की थीम- मानवता के लिए योग-घोषित की है। इसके साथ ही सूर्य के उगने के साथ ही योग का अभ्यास-गार्डियन रिंग-भी इस साल योग दिवस के तहत अलग-अलग देशों में होगा और इसका लाइव प्रसारण पूरे विश्व में डीडी इंडिया के जरिए किया जाएगा। भारत की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों की दुनिया में पहचान स्थापित करने के लिए देश में सरकार की ओर चिन्हित चुनिंदा 75 स्थानों पर भी 21 जून को योग अभ्यास किया जाएगा। केंद्रीय आयुष मंत्रालय के आग्रह पर प्रदेशों में भी ऐसे स्थल चिन्हित कर वहां योग दिवस दिवस का आयोजन राज्य सरकारों की ओर से किया जा रहा है।
योग अब यह स्थापित करने में सफल हो चुका है कि स्वयं को सिर्फ रोग के उपचार करने तक ही सीमित नहीं रहने देना होगा। समग्र स्वास्थ्य को हासिल करने के लिए योग और योग आधारित दिनचर्या की अपनी क्षमता है और इस क्षमता का उपयोग ही मानवता की सेवा भी है। इसी को देखते हुए इस वर्ष मानवता लिए योग को आईडीवाई की थीम के रूप में चुना गया है। यह इस बात का भी संकेत है कि एक सॉफ्ट पॉवर के रूप में भारत अब विश्व के अन्य देशों को समग्र स्वास्थ्य और वैलनेस की ओर एक जन आंदोलन की भागीदारी के रूप में आगे ले जा रहा है।
वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में घोषित किया। भारत के इस प्रस्ताव का समर्थन विश्व के 175 देशों ने किया। 21 जून, 2015 को पहला अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मना। 1 दिसंबर, 2016 को यूनेस्को ने योग को मानवता की सांस्कृतिक विरासत की सूची में शामिल किया। इसके बाद से योग वास्तव में आज जन आंदोलन बन गया है। आईडीवाई के हर गुजरते साल में योग की बढ़ती पहुंच देखी जा रही है। वर्तमान में 192 देश और विदेशों में भारतीय मिशन और पोस्ट के माध्यम से 170 से अधिक देशों में आईडीवाई का आयोजन हो रहा है। यहां तक की कोविड-19 के दौर में भी योग का प्रभाव कम नहीं हुआ और हर साल योग के आयोजनों में प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से लोगों की भागीदारी बढ़ती जा रही है। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस 2021 में करीब 15 करोड़ से अधिक लोग प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से शामिल हुए। इस बार एक साथ सामूहिक रूप से 25 करोड़ लोगों को योग कराने का लक्ष्य रखा गया है। पहले आईडीवाई में ही दो गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाए गए। पहला रिकॉर्ड सबसे बड़ी संख्या में भाग लेने वाली राष्ट्रीयताओं (84 राष्ट्र) और दूसरा एक ही स्थान और एक ही कार्यक्रम में 35,985 लोगों की भागीदारी का रहा।
इस वर्ष हम आठवां अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मना रहे हैं। यह पूरे विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि इस वर्ष अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को पिछले सात वर्षों की तुलना में अधिक उत्साह, भव्यता और दुनिया भर के देशों की व्यापक भागीदारी के साथ नया रिकॉर्ड स्थापित करते हुए मनाया जाएगा। इस बार करीब 170 देशों में योग प्रदर्शन होगा और इसका आकर्षण गार्डियन रिंग होगा। गार्डियन रिंग के तहत उगते हुए सूरज वाले देश जापान में सूरज के उगने के साथ ही सामान्य योग प्रोटोकॉल का अभ्यास होगा। सूरज के उगने के साथ ही दुनिया के अन्य देशों में भी लोग इसी तरह योग का अभ्यास करेंगे। डीडी इंडिया पर यह लाइव देखा जा सकेगा और पूरे 24 घंटे इसका प्रसारण होगा।
इस जन आंदोलन को गति देने के लिए भारत सरकार कोई कसर नहीं छोड़ रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने योग के प्रचार और विकास में उत्कृष्ट योगदान के लिए दो पुरस्कारों (एक अंतरराष्ट्रीय और दूसरा राष्ट्रीय) की घोषणा की। योगासन को प्रतिस्पर्धी खेल भी घोषित किया गया है। इसने प्राचीन अभ्यास को और बढ़ावा दिया है और योग लाभों के बारे में जागरूकता फैलाई है।
इस प्राचीन परंपरा के आधुनिक निष्कर्षों के लिए सेंट्रल काउंसिल फॉर रिसर्च इन योग एंड नेचुरोपैथी (CCRYN) ने प्रकाशित सूचकांक पत्रिकाओं में 113 शोध प्रकाशित किए हैं। शोध प्रवृत्तियों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि 2014 में योग को लेकर किए जा रहे शोधों की प्रवृत्ति में बदलाव आया है। प्री-आईडीवाई 2014 से पहले और 2015 के बाद किए गए औसत प्रकाशनों और नैदानिक परीक्षणों के आधार पर योग से संबंधित नैदानिक परीक्षणों की संख्या में लगभग 6 गुना वृद्धि हुई है और शोध में औसत वार्षिक प्रकाशन में लगभग 11 गुना वृद्धि हुई है। इससे यह साबित हो रहा है कि बढ़ते चिकित्सा पेशेवरों और योग विशेषज्ञों ने योग के अभ्यास और योग को अपनाने के लिए योग के अध्ययन पर अपना ध्यान और प्रयास केंद्रित किया है।
दुनिया भर में योग की बढ़ती लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि भारत के पहले योग विश्वविद्यालय, लकुलीश योग विश्वविद्यालय में प्रवेश की संख्या में तीन गुना वृद्धि देखी गई है। सामान्य योग प्रोटोकॉल को एक हजार से अधिक विश्वविद्यालयों, 30 हजार कॉलेजों और सीबीएसई से संबद्ध करीब 24 हजार स्कूलों को शामिल किया गया। बेहतर स्वास्थ्य और कल्याण के लिए दो लाख से अधिक ग्राम पंचायतों को योग के नियमित अभ्यास और सामान्य योग प्रोटोकॉल के बारे में संवेदनशील बनाया गया है। 1.25 लाख वैलनेस सेंटर समग्र स्वास्थ्य के संबंध में शिक्षा प्रदान करते हैं। छात्रों में एकता की भावना पैदा करने के लिए स्कूलों में राष्ट्रीय योग ओलंपियाड की शुरुआत की गई है।
आईडीवाई की एक और उपलब्धि जीवन के सभी क्षेत्रों और विभिन्न क्षेत्रों के लोगों को योग के दायरे में शामिल करना है। स्वस्थ जीवन शैली अपनाने के लिए बड़ी संख्या में महिलाएं योग की ओर रुख कर रही हैं। अब दिव्यांग भी समग्र व्यक्तित्व विकास, तनाव को दूर करने, मन को स्थिरता प्रदान करने के लिए योग की सेवाओं का सहारा ले रहे हैं।
बेहद सर्द और उच्चतम हिमालयी क्षेत्रों, देश के सबसे दूर के हिस्सों, सबसे व्यस्त बाजार और कार्यस्थलों आदि में योग किया जा रहा है। महामारी के दौरान लाखों स्वास्थ्य कर्मचारियों और कोविड-19 रोगियों ने योगासन, प्राणायाम और ध्यान का अभ्यास किया। आईडीवाई को तकनीकी क्रांति से जोड़ने पर भी जोर दिया गया, जिसमें मोबाइल आधारित एप्लिकेशन जैसी आईडीवाई परिसंपत्तियों को शामिल किया गया। इसमें नमस्ते योग, वाई ब्रेक, डब्ल्यूएचओ-एम योग, और योग पोर्टल प्रमुख हैं।.
भारत ने जो हासिल किया
>विश्व में योग को सॉफ्ट पावर की पहचान दिलाई
>योग पर शोध और क्लीनिकल ट्रायल में कई गुना इजाफा .
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पीएम केयर्स फॉर चिल्ड्रन
साथ और विश्वास
से भरा एक प्रयास
कोविड पूरी दुनिया के लिए एक अभूतपूर्व चुनौती लेकर सामने आया और भारत भी इससे अछूता नहीं रहा। देश ने एकजुट होकर सदी की सबसे बड़ी महामारी का सामना किया। लेकिन दुर्भाग्यवश बड़ी संख्या में लोग बीमारी की चपेट में आकर हमें छोड़ भी गए। जो चले गए उनके पीछे परिवारों में अकेले रह गए उनके बच्चे, जिनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था। ऐसे में बीते वर्ष 29 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पीएम केयर्स फॉर चिल्ड्रन स्कीम की शुरुआत की। उद्देश्य था, कोविड के कारण अपनों को खो चुके इन बच्चों को मदद पहुंचाना। ‘साथ और विश्वास’ से भरे एक प्रयास के रूप में प्रधानमंत्री मोदी ने 30 मई को इस योजना के तहत फंड जारी किए, ताकि असीम क्षमताओं से भरे इन बच्चों का भविष्य उज्ज्वल और अनंत सफलताओं से हो भरपूर…
कोविड की चुनौतियों से निपटने के लिए बनाए गए ‘पीएम केयर्स फंड’ के जरिए सिर्फ अस्पतालों के इंफ्रास्ट्रक्चर, ऑक्सीजन प्लांट और वैक्सीनेशन पर ही निवेश नहीं किया गया, बल्कि इसकी धनराशि से पीएम केयर्स फॉर चिल्ड्रन स्कीम के जरिए इस मुश्किल वक्त में देश के 4000 से ज्यादा उन बच्चों के सपनों को फिर से सहेजने का काम भी किया गया है, जिन्होंने अपने माता-पिता या अभिभावकों को कोविड के चलते खो दिया है। 30 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस योजना के तहत इन बच्चों को छात्रवृत्ति जारी की। प्रधानमंत्री ने महामारी के सबसे दर्दनाक प्रभाव का इतनी बहादुरी से सामना करने के लिए बच्चों को सलाम किया और कहा कि माता-पिता के प्यार की भरपाई कोई नहीं कर सकता। बच्चों से बात करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “पीएम केयर्स फॉर चिल्ड्रन इस बात का भी प्रतिबिंब है कि हर देशवासी पूरी संवेदनशीलता से आपके साथ है। मुझे संतोष है कि बच्चों की अच्छी और अबाधित पढ़ाई के लिए उनके घर के पास के ही सरकारी या फिर प्राइवेट स्कूलों में उनका प्रवेश हो चुका है। पीएम केयर्स के जरिए ऐसे बच्चों की कॉपी-किताबों और वर्दी का खर्च भी उठाया जाएगा। अगर किसी को प्रोफेशनल कोर्स या उच्च शिक्षा के लिए एजुकेशन लोन चाहिए होगा, तो पीएम केयर्स उसमें भी मदद करेगा। रोजमर्रा की दूसरी जरूरतों के लिए अन्य योजनाओं के माध्यम से उनके लिए 4 हजार रुपये हर महीने की व्यवस्था भी की गई है।”
बच्चों को शिक्षित और आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास
कोविड के दौरान अपने माता-पिता को खोने वाले बच्चों के लिए उच्च शिक्षा में एजुकेशन लोन का प्रावधान किया गया है जिसका भुगतान पीएम केयर्स फंड से किया जाएगा। बच्चों के सुरक्षित भविष्य के लिए प्रधानमंत्री कोष से मिलने वाली राशि को आयु अनुसार निवेश किया जाएगा जो बच्चों के 18 साल के होने पर 10 लाख रुपये हो जाएगा। इस राशि पर मिलने वाले ब्याज से बच्चों को 18 से 23 साल की आयु तक हर महीने खर्च के लिए धनराशि दी जाएगी। साथ ही स्कूली शिक्षा के बाद तकनीकी शिक्षा के लिए स्वानाथ छात्रवृत्ति योजना से 50,000 रुपये प्रति वर्ष छात्रवृत्ति दी जानी है। दसवीं के बाद स्कूल छोड़ने वाले बच्चों के लिए कौशल प्रशिक्षण का भी प्रावधान है। साथ ही गृह मंत्रालय के निर्देशानुसार 50,000 रुपये की अनुग्रह राशि दी गई है।
प्रधानमंत्री और उनका कार्यालय कर रहा है 4,345 बच्चों का संरक्षण
nदेश के प्रधानमंत्री अपने कार्यालय के माध्यम से पिछले एक साल से 4,345 बच्चों का संरक्षण कर रहे हैं। ये वो बच्चे हैं जिन्होंने अपने माता-पिता दोनों को कोविड में खोया।
nकोविड काल में अपने माता-पिता को खोने वाले बच्चों के लिए पीएम केयर्स फॉर चिल्ड्रन शुरू किया गया। इस योजना के तहत बच्चों को उनके अभिभावकों और रिश्तेदारों के संरक्षण में पहुंचाया गया। बच्चे का एक भी रिश्तेदार नहीं रहने की स्थिति में उसे चाइल्ड केयर संस्थानों तक पहुंचाया गया।
nआंगनबाड़ियां उनके संपूर्ण पोषण, टीकाकरण और स्वास्थ्य जांच का ख्याल रख रही है। साथ ही उन्हें आयुष्मान भारत योजना से 5 लाख रुपये के स्वास्थ्य बीमा की सुविधा भी मिलेगी।
nबच्चों के सुरक्षित संरक्षण का जिम्मा जिला मजिस्ट्रेट को सौंपा गया है। साथ ही भारत सरकार द्वारा बच्चों को छात्रवृत्ति के अलावा रहने, खाने और किताबों के लिए धनराशि दी गई है और छुट्टियों में उनके रहने की व्यवस्था उपयुक्त स्थान पर की गई है।
nमहिला एवं बाल विकास मंत्रालय अन्य मंत्रालयों के साथ मिल कर बच्चों के संपूर्ण विकास के लिए लगातार काम कर रही है।
nबच्चों की रोजमर्रा की दूसरी जरूरतों के लिए अन्य योजनाओं के माध्यम से 4 हजार रुपये हर महीने की व्यवस्था भी की गई है।
‘संवाद’ सेवा की शुरुआत
कई बार बच्चों को भावनात्मक सहयोग और मानसिक मार्गदर्शन की भी जरूरत पड़ सकती है। परिवार के बड़े-बुजुर्ग तो हैं हीं, लेकिन सरकार ने भी एक कोशिश करने का प्रयास किया है। इसके लिए एक विशेष ‘संवाद’ सेवा भी शुरू की गई है। ‘संवाद हेल्पलाइन’ पर विशेषज्ञों से बच्चे, मनोवैज्ञानिक विषयों पर सलाह ले सकते हैं, उनसे चर्चा कर सकते हैं। पीएम केयर फंड ने कोविड काल के दौरान अस्पताल तैयार करने में, वेंटिलेटर्स खरीदने में, ऑक्सीजन प्लांट्स लगाने में बहुत मदद की। इस वजह से कितने ही लोगों का जीवन बचाया जा सका।
पिछले साल लॉन्च की गई थी योजना
सरकार ने यह योजना पिछले साल 29 मई को लॉन्च की थी। इसके तहत 11 मार्च, 2020 से 28 फरवरी, 2022 के बीच कोरोना महामारी के चलते अपने माता-पिता, कानूनी अभिभावक, दत्तक माता-पिता या माता या पिता में से किसी एक को खोने वाले बच्चों की मदद की जाती है। बच्चों के पंजीकरण के लिए pmcaresforchildren.in नाम के एक पोर्टल का शुभारंभ किया गया था। यह पोर्टल एक एकल खिड़की प्रणाली है जो बच्चों के लिए अनुमोदन की प्रक्रिया तथा अन्य सभी सहायता की सुविधा प्रदान करती है।
पीएम केयर्स फॉर चिल्ड्रन, आप सभी ऐसे कोरोना प्रभावित बच्चों की मुश्किलें कम करने का एक छोटा सा प्रयास है, जिनके माता और पिता, दोनों नहीं रहे। पीएम केयर्स फॉर चिल्ड्रन इस बात का भी प्रतिबिंब है कि हर देशवासी पूरी संवेदनशीलता से आपके साथ है। – नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री
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कोविड से जंग
कोविड की जंग में भारत की मजबूत ‘आशा’
डब्ल्यूएचओ ने 10 लाख आशा कार्यकर्ताओं को किया सम्मानित
नमस्ते मैडम! मैं…आशा कार्यकर्ता। आपका बुखार
कैसा है? आपने अपनी दवाई ली या नहीं?
कोविड से लड़ाई के दौरान देश के अधिकतर क्षेत्रों में घरों पर दस्तक के साथ या फोन की घंटी के बाद यह आवाज हम लोगों ने सुनी है। यह देश की उन 10 लाख से अधिक आशा कार्यकर्ताओं में किसी भी एक की आवाज हो सकती है, जिन्होंने कुपोषण से लेकर शिशु-मातृ टीकाकरण तक हर कदम पर आगे आकर लड़ाई लड़ी। 2020 में जब देश कोविड के दुष्चक्र में फंसा तो ‘आशा दीदी’ के नाम से जानी जाने वाली इन्हीं आशा कार्यकर्ताओं ने घर-घर जाकर लोगों के यात्रा से जुड़ी जानकारी जुटाने से लेकर, स्वास्थ्य समस्याओं का हिसाब-किताब रखा तो लोगों को टीकाकरण के लिए जागरूक भी किया। विश्व के सबसे बड़े और मुफ्त टीकाकरण अभियान को घर-घर तक पहुंचाने और सफल बनाने में इन कार्यकर्ताओं का अहम योगदान है। इसी का नतीजा है कि 31 मई तक 193 करोड़ से ज्यादा कोविड वैक्सीन डोज देकर भारत ने कोविड से लड़ाई में पूरी दुनिया को एक रास्ता दिखाया है। इसी प्रतिबद्धता को सम्मान देते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत की 10 लाख महिला आशा कार्यकर्ताओं को ग्लोबल हेल्थ लीडर्स अवॉर्ड से सम्मानित किया है।
मुझे इस बात की खुशी है कि आशा कार्यकर्ताओं की पूरी टीम को डब्ल्यूएचओ महानिदेशक के ग्लोबल हेल्थ लीडर्स अवार्ड से सम्मानित किया गया है। सभी आशा कार्यकर्ताओं को बधाई। वे एक स्वस्थ भारत सुनिश्चित करने में सबसे आगे हैं। उनका समर्पण और दृढ़ संकल्प सराहनीय है। – – नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री
तेजी से जारी बच्चों का टीकाकरण
अभी तक कोविड टीकाकरण से वंचित नागरिकों को वैक्सीन का सुरक्षा कवच प्रदान करने के लिए देशभर में 1 जून से ‘हर घर दस्तक 2.0’ अभियान की शुरुआत हुई। 31 मई तक भारत का कुल कोविड-19 टीकाकरण कवरेज 193.45 करोड़ के पार पहुंच गया जबकि आयु समूह 12-14 वर्ष के लिए 3.39 करोड़ टीके की पहली खुराक दी गई। 31 मई तक भारत के सक्रिय मामले 17,883 हैं वहीं पिछले 24 घंटों में 2,338 नए मामले दर्ज किए गए। स्वस्थ होने की वर्तमान दर 98.74 प्रतिशत और साप्ताहिक सक्रिय मामलों की दर 0.61 प्रतिशत है।
ग्रामीण भारत में संपर्क का पहला बिंदु आशा कार्यकर्ता
भारत सरकार से मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता अथवा आशा वॉलंटियर भारतीय सरकार से संबद्ध हेल्थकेयर कर्मचारी होती हैं, जो ग्रामीण भारत में संपर्क का पहला बिंदु हैं। इनमें से कई का नाम देश में कोविड वायरस वैश्विक महामारी के चरम के दौरान घर-घर जाकर इस महामारी के मरीजों की पहचान करने के लिए चर्चा में आया था।
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विश्व पटल पर भारत
देश में बढ़ा मान
दुनिया में सम्मान
एक भारतीय दुनिया में कहीं भी रहे, उसकी भारतीयता, राष्ट्र के प्रति निष्ठा में लेश मात्र कमी नहीं आती। इसलिए दुनिया में बसा हर भारतीय एक ‘राष्ट्रदूत’ की तरह होता है और उन्हीं राष्ट्रदूतों को जब राष्ट्र के विकास का नेतृत्व करने को मिलता है तो देश की साख बढ़ती है। वह विश्व मानवता के सामने हर संकट का समाधान लेकर तैयार खड़ा दिखता है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यूरोप और उसके बाद जापान यात्रा हो या फिर दुनिया भर में अन्य विदेश यात्राएं, उन देशों में ‘भारत माता की जय’ का उद्घोष “वसुधैव कुटुंबकम” की सोच रखने वाले नए भारत की बढ़ती ताकत का अहसास कराता है। पूर्व में चल रही ‘भारत क्यों’ की सोच को मिटा कर दुनिया में ‘भारत क्यों नहीं’ की नई धारणा बनी है तो उसकी वजह है कि देश में विकास को नई दिशा मिली है। साथ ही दुनिया में बसे भारतीयों को एक सूत्र में बांधकर उनमें मातृभूमि के गौरव का अहसास करा राष्ट्र निर्माण में योगदान के लिए प्रेरित करने में सफलता हासिल हुई है। विश्व अब एक नया भारत देख रहा है तो बदलते वैश्विक परिदृश्य में एक निर्णायक नेतृत्व और प्रभावी ग्लोबल प्रोफाइल के साथ भारत अवसर को अपने हाथों में लेने की ओर बढ़ रहा है…।
पड़ोसियों के साथ-साथ दुनिया के दूसरे देशों और तमाम वैश्विक मंचों पर अब लगातार मजबूत होती भूमिका में नजर आ रहा है ‘नया भारत’
हमें तिरंगे की ताकत वहां दिखी, जब बसों पर तिरंगा देख किसी ने चेकिंग के लिए नहीं रोका। एयरपोर्ट तक लाने के लिए बसों में भारत का झंडा लगाया गया, झंडा लगाने के बाद वहां की सेना भी चेकिंग के लिए नहीं रोक रही थी।…तिरंगे का क्या महत्व है, हमें यूक्रेन में पता चला। वहां तिरंगा भारतीयों की ढाल बना। … हम डर गए थे, लेकिन भारत सरकार की मदद से सुरक्षित तरीके से वापस आ गए। हमें तिरंगे की वैल्यू पता चली। इस परिस्थिति में सिर्फ भारत सरकार ही मदद कर रही थी। हमारे दस्तावेज बहुत तेजी से वेरीफाइ हुए। जबकि अन्य देशों के छात्रों का दस्तावेज ही वेरीफाइ नहीं हो पा रहा था।”
रूस-यूक्रेन युद्ध क्षेत्र से शिमला पहुंची कशिश शर्मा और ओशिमा हो या आगरा की साक्षी सिंह या हेमंत जैसे छात्र-छात्राएं, यूक्रेन में फंसे भारतीयों के लिए चलाए गए ऑपरेशन गंगा के तहत लौटे भारतीयों की कहानी केवल जीवन की रक्षा नहीं, बल्कि राष्ट्र के बढ़ते गौरव का प्रतीक है।
एक छोटा सा 6 साल का मासूम सोनू, जिसका दिल्ली से अपहरण कर बांग्लादेश भेज दिया गया। बांग्लादेश में उससे काम कराया जाता और मारा-पीटा जाता। वो कहता है- जब मुझे पता चला कि मैं भारत सरकार के प्रयास से अपने घर जा रहा हूं तो मैं बहुत खुश हुआ और अपने परिवार से मिल सका।
एक मां जब अपने बच्चे के पिता को ढूंढ़ने जाती है, अपना परिवार पूरा करना चाहती है। अपने पति को खोजने जर्मनी गई गुरप्रीत कौर भी ऐसा ही सपना लेकर गईं थीं। लेकिन वहां उनके साथ-साथ उनकी बच्ची की जिंदगी भी दांव पर लग गई। उन्होंने उम्मीद भी छोड़ दी कि कभी भारत वापस जा पाएंगी। लेकिन उन्हें जर्मनी के शरणार्थी कैंप से सकुशल वापस लाया गया। वे कहती हैं, “जब तत्कालीन विदेश मंत्री ने कहा कि आपको वापस लाया जाएगा। तो मैं बेहद खुश हुई। मुझे लगा कि जल्दी से मंत्री जी मेरे सामने आएं और मैं उनके पैर पकड़ लूं।”
ऐसी ही कहानी है सुशील कपूर की, जिन्होंने दुबई की एक शिपिंग कंपनी में ज्वाइन किया। कुछ ही दिनों में सुशील ऐसी जगह पहुंच गए जहां से वापसी नामुमिकन लग रही थी। वे बताते हैं, “हमें ओमान से डीजल लेना होता था और वही डीजल दुबई में बेचना होता था। यह प्रक्रिया 7-8 दिन चली और अचानक हमारी शिप के बगल में एक शिप आता है और उनमें जो लोग होते हैं वे हमें मारना शुरू कर देते हैं। हमारे हाथ-पैर बांध दिए। कनपट्टी पर बंदूक लगा दी। फिर हम लोगों को ईरान लेकर गए और वहां जाकर पता लगा कि हम लोगों को दो साल की सजा और जुर्माना लगाया गया है। जुर्माना करीब 2.9 यूएस मिलियन डॉलर यानी लगभग 19 करोड़ रुपये का था। स्मगलिंग के झूठे आरोप में फंसाया गया था। भारी भरकम दंड राशि की वजह से घर वापसी की कोई उम्मीद नहीं थी। जब भारत के विदेश मंत्री को पता चला तो उन्होंने प्रयास किया। उसी दौरा भारत दौरे पर आए ईरान के विदेश मंत्री के सामने यह बात रखी गई। फिर मुझे रिहा किया गया और मैं भारत लौट पाया।”
आपकी जेनेरेशन एक तरह से
खुशनसीब है कि उसे पहले वाली ‘डिफेंसिव’ और ‘डिपेंडेंट’ मनोविज्ञान का नुकसान नहीं उठाना पड़ा। लेकिन, देश में अगर ये बदलाव आया है तो इसका सबसे पहला क्रेडिट भी आप सभी को जाता है, हमारे युवा को जाता है, अब आप देखिए, उदाहरण के तौर पर जिन सेक्टर्स में देश पहले अपने पैरों पर आगे बढ़ने के बारे में सोचता भी नहीं था, उन सेक्टर्स में अब हिन्दुस्तान ग्लोबल लीडर बनने की राह पर है।
– नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री
यह कहानी एक ऐसी लड़की की है, जो बचपन में खेल-खेल में ऐसी जगह पहुंच गई जहां से वापस आना शायद नामुमकिन था। वो किसी से मदद भी नहीं मांग सकती थी क्योंकि वो न तो बोल सकती थी, ना ही सुन सकती थी। गीता जिसे पाकिस्तान से सकुशल भारत वापस लाया गया। सांकेतिक भाषा में वह कहती हैं, “मैं बहुत छोटी थी जब भूल से गलत ट्रेन से पाकिस्तान पहुंच गई। समझ नहीं आ रहा था कि किस तरफ जाना है और ट्रेन चल पड़ी। मुझमें समझ नहीं थी। माता-पिता की याद सबसे ज्यादा आती थी, जो मुझे बार-बार रुलाती थी। 14 वर्षों तक मां बाप से दूर रही। जब भारत सरकार ने मीडिया के जरिए इस बात को जाना तब तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने पहल की। उनके प्रयास से मैं भारत लौट पाई। भारत जिस तेजी से प्रगति कर रहा है, उसके लिए प्रधानमंत्री मोदी को धन्यवाद देती हूं। भारत माता की जय, जय हिंद।”
यूद्धग्रस्त यूक्रेन से लगभग 23000 भारतीय छात्रों की वापसी का दृश्य हाल ही में देश-दुनिया ने देखा कि किस तरह रूस हो या यूक्रेन या उसके पड़ोसी देश, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई बार बमबारी रूकवाकर अपने नागरिकों को सकुशल भारत वापस लाने में सफलता हासिल की। यह दुनिया में भारत की बढ़ती ताकत का उदाहरण है जो विदेशों में रहने वाले भारतीयों में भी स्वदेश और उसके नेतृत्व के प्रति भरोसे का अहसास दिलाता है। दुनिया में भारतीय कहीं भी हों, वह सुरक्षित हैं तो यह अहसास बीते कुछ वर्षों में भारत सरकार के कूटनीतिक प्रयासों और राजनयिक संबंधों में आई मजबूती की वजह से है। दरअसल दुनिया के बारे में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली सरकार का विजन पुरानी बेड़ियों से आजाद है। यही वजह है कि भारत ने सदी की सबसे बड़ी महामारी के समय में 150 से अधिक देशों की मदद कर विश्व मानवता को कोविड से लड़ने का एक नया हौसला दिया। कोविड के बाद के बदलते दौर में दुनिया अब आत्मविश्वास से भरपूर भारत की तरफ आशा भरी एक नई निगाह से देख रहा है। यही वजह है कि जी-20 से लेकर ब्रिक्स तक, क्वाड से लेकर एससीओ समिट (शंघाई सहयोग संगठन) तक और आसियान से लेकर इस्टर्न इकोनोमिक फोरम और कॉप-26 तक, भारत की गूंज हर महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय फोरम में सुनाई दे रही है। संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता का गौरव हासिल कर भारत ने साबित कर दिया है कि वह बड़ी वैश्विक जिम्मेदारी निभाने को तैयार है। विश्व का नेतृत्व करने की क्षमता रखने वाला भारत अब अपना रास्ता खुद बनाने में यकीन रखता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विजन एक ऐसे भारत के निर्माण का है जो सशक्त, आधुनिक और आत्मनिर्भर हो, जो विश्व मानवता का मददगार हो।
लेकिन विश्व मानवता में अपनी नई पहचान बनाने वाले भारत की यह राह इतनी आसान नहीं थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार ने विदेश नीति एवं राजनयिक पहुंच को एक विशेष महत्व दिया है। परंपरागत रिश्तों में नए प्राण भरना, सामरिक संबंधों को पुन: तैयार करना तथा विदेश में रहने वाले भारतीयों तक पहुंचना भारत के राजनयिक प्रयासों का प्रमुख हिस्सा है। बीते 8 वर्षों में भारत का मान दुनिया में बढ़ा है तो उसके पीछे दुनिया में बसे प्रत्येक भारतीयों के मन में इस बात की अनुभूति कराना रहा है कि वह अपने राष्ट्र के विकास और काम की वजह से गौरव महसूस करे। जब वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री मोदी ने सत्ता संभाली ताे सबसे बड़ी चुनौती थी कि विदेश मंत्रालय की नीति, कूटनीति, विदेश दौरे और समझौते जैसी चंद औपचारिकताओं तक सीमित थी। विदेश मंत्रालय की नीति से ‘आम जन’ गायब था। जबकि नीति देश के लिए हो या विदेश के लिए, वह जन केंद्रित होनी चाहिए जिसका अहसास देश और दुनिया में बसे हर भारतीयों को होना चाहिए। इसी सोच ने विदेश मंत्रालय की कार्यशैली को ही पूरी तरह से बदल दिया। विदेश मंत्रालय ने अपनी विशिष्ट जन केंद्रित कार्यशैली की वजह से संवेदनशील मंत्रालय के रूप में पहचान बना ली है। शुरुआत में ही दुनिया में बसे भारतीयों के लिए एक मंत्र बना दिया गया- “परदेस में आपका दोस्त, भारतीय दूतावास।” ऐसा करने की वजह थी क्योंकि जब देश में किसी व्यक्ति पर कोई संकट आता है तो उसकी मदद के लिए परिवार-रिश्तेदार-मित्र आदि होते हैं। लेकिन विदेश में ऐसा कुछ होने पर व्यक्ति खुद को अकेला महसूस करने लगता है। लेकिन आज भारतीय दूतावास दुनिया के हर भारतीय के लिए अपने परिवार जैसा है।
‘राष्ट्रदूत’ की नई पहचान
यूरोप दौरे पर 65 घंटे, तीन देश, 8 विश्व नेताओं से मुलाकात, 25 बैठकें तो 40 घंटे के जापान दौरे पर 23 बैठकें, क्वाड समूह की बैठक, 34 उद्योगपति-सीईओ से मुलाकात… और भारतीय समुदाय के लोगों के साथ जन संवाद… ऐसे नेतृत्व की कहानी है जो न खुद ठहरना जानता है और न राष्ट्र को थमने-रूकने देने की सोच को लेकर आगे बढ़ रहा है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तीन यूरोपीय देशों की यात्रा की महत्ता का अंदाजा उनके इन कार्यक्रमों से लगाया जा सकता है। भारत के नेतृत्व की विदेश दौरे की निष्ठा जब पूरी तरह राष्ट्र से जुड़ी हो तो उस राष्ट्र से जुड़े नागरिकों की अलग पहचान बनना स्वाभाविक है। दुनिया भर में फैले प्रवासी भारतीयों की संख्या दुनिया के कई देशों की आबादी से अधिक है। ऐसे में प्रवासी भारतीय और भारतीय मूल के लोगों के लिए नागरिकता की विशेष योजना, भारत को जानें, प्रवासी भारतीय केंद्र की स्थापना, छात्र पंजीकरण पोर्टल-भारतीय मूल के छात्रों के लिए छात्रवृत्ति, प्रवासी भारतीय सम्मान, प्रवासी भारतीय सम्मेलन जैसे दर्जनों प्रयास अब विदेश में रहने वाले भारतीयों को अपनी कर्मभूमि के साथ-साथ अपनी माटी से भी जोड़ रहा है। आज अगर किसी भारतीय पर विदेश में कोई संकट आता है तो केंद्र सरकार के प्रयासों से तत्काल समाधान निकाल लिया जाता है। हाल ही में यूक्रेन संकट से अपने छात्रों को सकुशल वापस लाना हो या फिर अन्य राहत ऑपरेशनों के जरिए भारतीय नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना, भारत सरकार के कूटनीतिक प्रयासों ने प्रत्येक भारतीयों के मन में भरोसा पैदा किया है। हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी ने यूरोप यात्रा के समय भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए कहा, “एक भारतीय दुनिया में कहीं भी जाए वो अपनी कर्मभूमि के लिए पूरी ईमानदारी से योगदान देता है। अनेक बार जब मेरी विश्व के नेताओं से मुलाकात होती है तो अपने देशों में बसे भारतीय समुदाय की उपलब्धियों के बारे में मुझे बड़े गर्व से बताते हैं। वे भारतीय समुदाय के परिश्रम और शांतिपूर्ण स्वभाव की सराहना करते थकते नहीं हैं।” आज भारत की प्रतिष्ठा विश्व में इतनी बढ़ी है कि जब भारत बोलता है तो पूरी दुनिया सुनती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गिनती आज विश्व के अग्रणी नेताओं में की जाती है और भारतीय मूल के नागरिकों को सम्मान से देखा जाता है।
भारत प्रथम की सोच पर आधारित विदेश नीति
भारत के लिए विदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक ब्रांड एंबेसडर बन चुके हैं। उन्होंने अब तक कुल मिलाकर लगभग 60 से अधिक विदेश दौरे किए हैं और इन दौरों में देशों की संख्या को मिला दें तो यह 100 से अधिक हो जाती है। इनमें कई वह देशों की यात्राएं कई बार कर चुके हैं। यह पूर्ववर्तियों की तुलना में दोगुना से भी अधिक है। 8 वर्ष के ऐतिहासिक कालखंड में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वैश्विक स्तर पर भारत की सफलता और साख के नए कीर्तिमान गढ़े हैं। उन्होंने अपनी सफल कूटनीति से अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जापान और रूस सरीखे ताकतवर देशों को अपना मुरीद बनाया है तो आतंक परस्त देशों को हर अंतरराष्ट्रीय मंच पर घेर कर भारत की कूटनीति की सफलता को दिखाया है। 17 साल बाद नेपाल, 28 साल बाद ऑस्ट्रेलिया, 31 साल बाद फिजी और 34 साल बाद सेशेल्स और संयुक्त अरब अमीरात का द्विपक्षीय दौरा करने का श्रेय भी प्रधानमंत्री मोदी को है। प्रधानमंत्री मोदी ने जब पहली बार सत्ता संभाली तो सबसे पहले भूटान की यात्रा की। तब उन्होंने ‘भारत के लिए भूटान और भूटान के लिए भारत’ की जरुरत बता दोनों देशों के अटूट रिश्तों को सहेजने की कोशिश की। उन्होंने भूटानी संसद के माध्यम से भूटान को भरोसा दिया कि दोनों देशों के रिश्ते पहले से अधिक प्रगाढ़ होंगे। इसी तरह अपने नेपाल दौरे में उन्होंने दोनों देशों के संबंधों को नया आयाम दिया। अपनी नेपाल यात्रा के दौरान उन्होंने जनक दुलारी मां सीता की पावन जन्मस्थली जनकपुर स्थित जानकी मंदिर में दर्शन-पूजन कर दोनों देशों की धार्मिक-सांस्कृतिक विरासत को सहेजने की पहल की।
प्रधानमंत्री मोदी ने श्रीलंका का भी दिल जीता है और आज की तारीख में दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक, राजनीतिक, सामरिक और आर्थिक कारोबार को नई ऊंचाई मिल रही है। आर्थिक संकट के बीच श्रीलंका की मदद के लिए सबसे पहले भारत ने ही पहल की। बीते वर्ष ही, प्रधानमंत्री मोदी ने बांग्लादेश की आजादी के 50 साल पूरे होने के अवसर पर यात्रा कर दोनों देशों के ऐतिहासिक व सभ्यतागत संबंधों को मिठास से भर दिया। दोनों देशों के बीच 5 अहम समझौते पर सहमति बनी जो कि संपर्क, ऊर्जा, व्यापार, स्वास्थ्य और विकास के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण हैं। यही नहीं, पड़ोसी देशों के साथ प्रधानमंत्री मोदी की पहल से मध्य एशिया और यूरोप से भी संबंध मजबूत हुए हैं। प्रधानमंत्री मोदी के कूटनीतिक प्रयास से मुस्लिम देशों से भी बेहतर संबंध स्थापित हुए हैं। आपको याद होगा 2019 में संयुक्त अरब अमीरात के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन जायद ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बड़ा भाई बतााया और ‘अपने दूसरे घर’ आने के लिए आभार जताने के साथ यूएई के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘ऑर्डर ऑफ जायद’ से सम्मानित किया था। तब प्रधानमंत्री ने अबू धाबी में व्यापार जगत के प्रवासी भारतीयों को संबोधित कर जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने का मकसद स्पष्ट किया और साथ ही भारतीय रुपे कार्ड को भी लांच किया।
सऊदी अरब से भी भारत के संबंध मजबूत हुए हैं। यहां पुलवामा हमले का जिक्र जरूरी है, जब इस हमले के दोषियों को सजा दिलाने की भारत की मुहिम को दुनिया भर में मिल रहे समर्थन के बीच फरवरी 2019 में भारत यात्रा पर आए सऊदी अरब के युवराज ने भी भारत के साथ कंधा मिलाकर खड़े होने का वादा किया। पाकिस्तान के साथ गहरी निकटता के बावजूद नए कूटनीतिक परिदृश्य में सऊदी अरब ने आतंकवाद के खिलाफ भारत की हर मुहिम का खुले दिल से समर्थन किया है।
प्रधानमंत्री मोदी की कूटनीतिक पहल से मलेशिया, तुर्की, इंडोनेशिया, ईरान, नाइजीरिया, अल्जीरिया, कुवैत, कजाकिस्तान, कतर, मिस्र, बहरीन, ट्यूनीशिया, उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और जाॅर्डन सरीखे अन्य इस्लामिक देशों से भी संबंध मजबूत हुए हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने इजरायल के साथ भारत के रिश्ते को पुनर्परिभाषित किया है। ईरान से चाबहार पोर्ट पर समझौता भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
दक्षिण एवं पश्चिम एशिया के साथ-साथ भारत और यूरोपियन यूनियन के बीच भी रिश्ते परवान चढ़े हैं। रूस-यूक्रेन संकट के बीच हाल में रायसीना डायलॉग का उद्घाटन भाषण देते हुए यूरोपियन यूनियन की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन का यह कहना कि आने वाला समय भारत का है…, जो अपने आप में दोनों के रिश्तों को परिभाषित करता है। यही नहीं, भारत और यूरोपीय यूनियन द्वारा इस दौरान भारत-यूरोपीय संघ व्यापार और प्रौद्योगिकी परिषद की स्थापना भी की गई। यह ऐसी रणनीतिक व्यवस्था है जो व्यापार, विश्वसनीय टेक्नोलॉजी और सुरक्षा की मिली जुली चुनौतियों से निपटने में मदद करेगी। यह पहली बार है जब भारत अपने किसी पार्टनर के साथ इस तरह के व्यापार और प्रौद्योगिकी परिषद को स्थापित करने के लिए सहमत हुआ है। यूरोपीय संघ के नजरिये से देखें तो अमेरिका के बाद इस तरह के निकाय को दूसरी बार सिर्फ भारत के साथ गठित किया गया है। ऐसे में इसकी अहमियत का खुद-ब-खुद अंदाजा लगाया जा सकता है।
दुनिया की महाशक्ति अमेरिका की बात करें तो प्रधानमंत्री मोदी ने अपने कूटनीतिक-रणनीतिक धार से दशकों पुराने अमेरिका की पाक नीति को बदलकर रख दिया है। प्रधानमंत्री मोदी ने अब तक सबसे ज्यादा बार अमेरिका की ही यात्रा की है। उनकी कूटनीतिक पहल का ही नतीजा है कि अमेरिका की प्रतिनिधि सभा ने द्विदलीय समर्थन वाले विधेयक को मंजूरी दी, जिसके तहत रक्षा उपकरणों की बिक्री तथा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के मामले में समझौते को लेकर भारत अन्य नाटो देशों की श्रेणी में शामिल हो गया है। न्यूक्लियर सप्लाई ग्रुप यानी एनएसजी और एमटीसीआर के मसले पर अमेरिका ने भारत का समर्थन किया है। भारत मिसाइल टेक्नोलाजी कंट्रोल रिजीम (एमटीसीआर) में शामिल हो गया है। यह उपलब्धि हासिल करने के बाद अब भारत दूसरे देशों को अपनी मिसाइल टेक्नोलाॅजी बेचने को तैयार है और जरुरत पड़ने पर अमेरिका से प्रिडेटर ड्रोन्स को खरीद भी सकेगा। भारत-जापान, भारत-जर्मनी, भारत-फ्रांस के मजबूत होते रिश्ते और दोनों देशों के बीच असैन्य परमाणु सहयोग, रक्षा उपकरण तकनीक और गोपनीय सैन्य सूचना संरक्षण समेत कई महत्वपूर्ण समझौतों ने मजबूत रिश्तों की नींव रखी है। क्वाड में साझेदार भारत और ऑस्ट्रेलिया मजबूत रिश्तों की ओर आगे बढ़े हैं। दोनों देशों के बीच वर्षों की प्रतीक्षा के बाद हुआ मुक्त व्यापार समझौता, रिश्तों की नई प्रगाढ़ता को जाहिर कर रहा है। जापान में आयोजित क्वाड समूह की चौथी बैठक में कोविड से लेकर तमाम मुद्दों पर सदस्य देशों ने भारत की पहल की जोरदार तारीफ की है।
ऐसा पहली बार हुआ है जब भारत के रूस और अमेरिका दोनों से रिश्ते प्रगाढ़ हैं। रूस-यूक्रेन संकट के बीच भारत की विदेश नीति की सफलता और दृढ़ता की पूरी दुनिया में चर्चा इस बात का प्रतीक है कि यह नया भारत है। हाल ही में अमेरिका में आयोजित 2+2 वार्ता के बाद और रायसीना डायलॉग में भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर के रूस के मसले पर दिए गए जवाबों की चर्चा हर जगह हुई है। नए भारत की विदेश नीति की दृढ़ता और वैश्विक भूमिका के संदर्भ को पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के बयान से समझा जाना चाहिए, जब प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद भारत की तारीफ करते हुए उन्होंने कहा था, “मैं हिंदुस्तान को दाद दूंगा… जिस तरह की उनकी विदेश नीति है… हमेशा उनकी विदेश नीति स्वतंत्र रही है और अपने लोगों के लिए रही है। वो अपनी विदेश नीति की रक्षा करते हैं।”
इससे शायद ही कोई इनकार कर सकता है कि प्रधानमंत्री मोदी की अद्भुत क्षमता ने ही दुनिया में अपने सकमक्षों के साथ तालमेल बिठाकर भारत के वैश्विक कद को बढ़ा दिया है। बात चाहे निवेश की हो या सांस्कृतिक आदान-प्रदान की, भारतीय उत्पादों का निर्यात हो या फिर विज्ञान-तकनीक के क्षेत्र में योगदान की, बहुआयामी राजनयिक संदर्भ में भारत एक अलग मुकाम बना चुका है। अनेक क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय समूहों में प्रतिनिधित्व करने के अलावा, यह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अस्थाई सदस्य है, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक्जीक्यूटिव बोर्ड का अध्यक्ष है, एससीओ (शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन) और ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, इंडिया, चीन और साउथ अफ्रीका) का भी सदस्य है, और हाल ही में बने क्वाड का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। सभी देशों के साथ संबंधों में भारत सदैव वसुधैव कुटुंबकम की बात करता है और आत्मनिर्भर भारत अभियान में भी विश्व मानवता को प्राथमिकता देता है। प्रधानमंत्री ने कई मौके पर ‘मेक इन इंडिया, मेक फॉर द वर्ल्ड’ का मंत्र दिया है। उनका मानना है कि भारत में ही उन सभी वस्तुओं का निर्माण हो जो विदेशों से मंगाया जाता है।
मैडिसन स्कवायर से बर्लिन और टोक्यो तक प्रवासी भारतीयों काे जड़ों से जोड़ने की कोशिश
दुनिया के 200 से अधिक देशों में 1.35 करोड़ से अधिक प्रवासी भारतीय हैं। इनमें पहले से रह रहे भारतीय मूल के लोगों की संख्या जोड़ दें तो करीब 3.22 करोड़ लाेग दुनियाभर के देशों में बसे हैं। दुनिया के किसी भी देश में मौजूद हर भारतीय, भारत की सभ्यता, उसकी संस्कृति का प्रतीक है। भारतीय कहीं भी हों, जो लोकतांत्रिक मूल्य, जो कर्तव्यों का अहसास उनके पुरखे भारत से ले गए होते हैं, वो उसके दिल के कोने में हमेशा जीवंत रहते हैं। ट्विटर से लेकर माइक्रोसॉफ्ट तक तमाम बड़ी कंपनियों के सीईओ न सिर्फ भारतीय हैं, बल्कि इन कंपनियों में बड़ी संख्या में भारतीय लोगों की मौजूदगी है। जरूरत थी, तो बस इन भारतीयों को देश की मुख्यधारा या कहें कि जड़ों से जोड़ने की। 2014 के बाद अमेरिका में मैडिसिन स्कवायर, सिडनी के ओलंपिक पार्क से लेकर हाल ही में जर्मनी और जापान दौरे तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लगभग अपने हर विदेशी दौरे में भारतीय समुदाय को संबोधित कर इसे बखूबी निभाया है। भारत की अर्थव्यवस्था से लेकर भारत में निवेश करने तक प्रधानमंत्री मोदी ने भारतीयों को अपनी जड़ों से जोड़ने पर खासा ध्यान दिया है। अलग-अलग जगह, हवाई अड्डों पर, होटल के बाहर, कार्यक्रम के दौरान प्रवासियों द्वारा प्रधानमंत्री के नाम के नारे, उनका सम्मान, यह वह दृश्य है, जो 2014 के पहले यदा-कदा ही दिखाई देता है। हर 2 वर्ष में होने वाला प्रवासी भारतीय सम्मेलन इसका नया मंच बना है, जिसकी शुरुआत सबसे पहले प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने की थी। लेकिन संबधों की मजबूती की इस नई ऊर्जा के दौर में प्रवासी समुदाय के लिए भारत सिर्फ पूर्वजों का घर भर नहीं है। बल्कि केंद्र सरकार ने इन 8 वर्षों में प्रवासियों के लिए भारत यात्रा और निवास से संबंधित नीतियों को बेहद आसान बनाया है। भारत में निवेश को इच्छुक प्रवासियों को सिंगल विंडो सिस्टम जैसी सुविधाएं दी गई हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं, “हम ब्रेन ड्रेन को ब्रेन गेन में बदल रहे हैं।” प्रवासी भारतीय जहां दूसरे देशों में भारत की सांस्कृति सॉफ्ट पावर के अग्रदूत हैं तो वहीं देश की जीडीपी में भी उनका अहम योगदान है। विश्व बैंक द्वारा जारी ‘माइग्रेशन एंड डेवलपमेंट ब्रीफ’ रिपोर्ट के मुताबिक विदेश में कमाई करके अपने देश में धन (रेमिटेंस) भेजने के मामले में भारतीय प्रवासी दुनिया में सबसे आगे रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक 2021 में प्रवासी भारतीयों ने 87 अरब डालर की धन राशि स्वदेश भेजी है। यह धन राशि पिछले वर्ष की तुलना में 4.6 फीसदी अधिक है। इसमें सबसे अधिक 20 प्रतिशत धन राशि अमेरिका से प्रवासी भारतीयों द्वारा भेजी गई है।
नई विश्व व्यवस्था में भारत
कोविड के बदलते दौर में विश्व व्यवस्था नया आकार ले रही है तो भारत का कद भी उसी अनुपात में बढ़ रहा है। हाल ही में भारत आए ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने भी कहा था कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र दुनिया में आर्थिक वृद्धि की नई धुरी के रूप में उभरने वाला है, जिसमें भारत की भूमिका महत्वपूर्ण होगी।
कोविड से कई देशों की अर्थव्यवस्था लड़खड़ाई जबकि भारत दुनिया की सबसे तेजी से वृद्धि करने वाली अर्थव्यवस्था के रूप में सामने आ रहा है। इससे भारत की जिम्मेदारी और बढ़ गई है। लेकिन भारत विश्व मानवता के प्रति अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन भी बखूबी कर रहा है। कोविड महामारी से बचाव के लिए दुनिया के 150 से अधिक देशों को जरूरी दवाईयों की आपूर्ति हो या फिर वैक्सीन पहुंचाना, यूक्रेन में युद्ध छिड़ने से गेहूं की वैश्विक किल्लत में अपनी ओर से आपूर्ति करने की पहल, मुश्किल में फंसे अफगानिस्तान को अनाज और दवा मुहैया करना, कर्ज में फंसे श्रीलंका की मदद को आगे आना, ये सभी उदाहरण भारत को एक जिम्मेदार शक्ति में रूप में स्थापित करते हैं। आज जब दुनिया के अधिकांश देश एवं अंतरराष्ट्रीय संस्थान अंतर्मुखी होते जा रहे हैं, तब दुनिया भारत की आवाज सुनना चाहती है और उसे सुनाने की एक अहम कड़ी के रूप में रायसीना डायलॉग का दायरा आने वाले समय में और व्यापक होता दिखेगा। कई मौको पर वैश्विक मंच से भारत ने दुनिया के कई देशों को दो-टूक जवाब देकर भारत की प्रतिबद्धता का अहसास भी कराया है।
देश-विदेश में बढ़ता मान
भारतीय होने का गर्व तब और बढ़ जाता है, जब भारत को विश्व में सबसे तेजी से बढ़ रही विशाल अर्थव्यवस्था कहा जाता है। जब विदेशों में भी योग की कक्षा लगती है। जब अंतरिक्ष में भारत एक साथ 104 सैटेलाइट छोड़ता है, जब मेक इन इंडिया की दहाड़ पूरी दुनिया में सुनाई पड़ती है और जब विदेशों में भी भारत को भव्य सम्मान मिलता है। आज गर्व है भारतीयों को भारतीय होने पर जिसकी झलक प्रधानमंत्री मोदी के हर विदेश दौरे में भारतीय समुदायों के साथ संवाद में दिखती है। दुनिया में भारत की उपलब्धियों पर ताली की गड़गड़ाहट यूं ही नहीं बजती है। इसकी वजह है कि नया भारत जोखिम लेता है, इनोवेट करता है, इन्क्यूबेट करता है। भारत में जितना सस्ता नेट डाटा है वह बहुत से देशों के लिए अकल्पनीय है। रियल टाइम डिजिटल पेमेंट्स के मामले में 2021 में पूरी दुनिया में जितने भुगतान हुए हैं उसमें अकेले 40 प्रतिशत भागीदारी भारत की है। केंद्र, राज्य और स्थानीय निकायों की करीब 10 हजार सेवाएं ऑनलाइन उपलब्ध हैं। योजनाओं के लाभान्वितों के बैंक खातों में डीबीटी के जरिए 22 लाख करोड़ रुपये से भी ज्यादा का सीधा भुगतान किया गया। आज भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप ईकोसिस्टम है। 2014 में केवल 200-400 स्टार्टअप हुआ करते थे, लेकिन आज देश में 68 हजार से ज्यादा स्टार्टअप काम कर रहे हैं और दुनिया में भारत का गौरव बढ़ा रहे हैं। देश से अब रिकॉर्ड तोड़ निर्यात हो रहा है। अभी कुछ दिन पहले ही भारत ने 400 बिलियन डॉलर निर्यात का रिकॉर्ड बनाया है। गुड्स एंड सर्विसेज में 2021 में भारत से लगभग 50 लाख करोड़ रुपये का निर्यात हुआ है। खाद्य सुरक्षा को लेकर बड़े-बड़े देश चिंतित हैं, ऐसे में भारत का किसान दुनिया का पेट भरने के लिए आगे आ रहा है।
नया भारत, बेहतर दुनिया का संकल्प
भारत का अमृत संकल्प केवल भारत की सीमाओं तक ही सीमित नहीं है। ये संकल्प विश्व भर में फैल रहे हैं, पूरे विश्व को जोड़ रहे हैं। आज जब ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान आगे बढ़ रहा है तो वह विश्व के लिए प्रगति की नई संभावनाएं खोलने की भी बात करता है। आज जब योग के प्रसार के लिए भारत प्रयास करता है तो विश्व के हर व्यक्ति के लिए ‘सर्वे संतु निरामय:’ की कामना करता है। जलवायु परिवर्तन और सतत विकास जैसे विषयों को लेकर भी भारत की आवाज पूरी मानवता का प्रतिनिधित्व कर रही है। ये समय भारत के इस अभियान को आगे बढ़ाने का है। प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं, “हमारा परिश्रम केवल अपने लिए नहीं है, बल्कि भारत की प्रगति से पूरी मानवता का कल्याण जुड़ा है, हमें दुनिया को ये अहसास दिलाना है। इसमें आप सभी भारतीयों, भारतीय मूल के सभी लोगों की बड़ी भूमिका है। अमृत महोत्सव के ये आयोजन भारत के प्रयासों को, भारत के विचारों को भी दुनिया तक पहुंचाने का माध्यम बनें, ये हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए! मुझे विश्वास है कि अपने इन आदर्शों पर चलते हुए हम एक नया भारत भी बनाएंगे, और बेहतर दुनिया का सपना भी साकार करेंगे।”
जब पुरानी परंपराओं और बाधाओं को दूर कर सफलता हासिल की जाती है तो देश नई ऊंचाई पर जाता है। एक समय था जब प्रति व्यक्ति डाटा खपत में भारत दुनिया के पिछड़े देशों में शामिल था, लेकिन केवल 5-6 वर्षों में ही स्थिति बदल चुकी है और दुनिया में सबसे सस्ता डाटा उपलब्ध है। भारत की ताकत जब बढ़ती है तो दुनिया की ताकत भी बढ़ती है। फार्मेसी ऑफ द वर्ल्ड, इस भूमिका में भारत ने मुश्किल समय में पूरी दुनिया का साथ दिया है, दुनिया के अनेक देशों को दवाइयां भेजी हैं। भारत जब खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर हुआ है तो दुनिया को भुखमरी से बचाने के लिए खुले दिल से ऑफर कर रहा है। आईटी के मामले में भारत की ताकत बढ़ी, तो इस सदी के बड़े संकटों के दौरान भारत ने दुनिया की मदद की। आज भारत एक बड़ी डिजिटल ग्लोबल पावर है, लेकिन इसको भी केवल अपने तक सीमित नहीं रखा है, बल्कि दुनिया के साथ साझा कर रहा है। भारत के पास स्केल और स्पीड है और आत्मनिर्भरता में एक सशक्त वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को जोड़कर भरोसेमंद भागीदार बन रहा है। भारतवासी राष्ट्र सुरक्षा के लिए मिलकर खड़े होते हैं, राष्ट्र निर्माण में मिलकर जुटते हैं। भारतीयता यानी सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास पर आधारित है और इसी से समृद्धि होती है। ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ यानी पूरा विश्व एक परिवार, यह सिद्धांत व्यापार, कारोबार की अवधारणा से भी कहीं अधिक विस्तृत है। भारत की एक विश्व की अवधारणा अपनत्व, बंधुत्व, संवेदनशीलता और सम्मान पर टिकी है । 21वीं सदी का भारत भी नए वैश्विक परिदृश्य के लिए इसी दृष्टिकोण को लेकर आगे बढ़ रहा है ।
निश्चित तौर से नए भारत का वर्तमान भी उज्ज्वल और दीप्तिमान है तो एशिया की शताब्दी कही जाने वाली 21वीं शताब्दी को भारत की शताब्दी बनाने के लिए भारत या विदेश में रहने वाला एक-एक भारतीय प्रतिबद्ध है। n
आज भारत के विकास के संकल्पों को दुनिया अपने लक्ष्यों की प्राप्ति का माध्यम मान रही है। वैश्विक शांति हो या वैश्विक चुनौतियों से जुड़े समाधान, दुनिया भारत की तरफ बड़े भरोसे से देख रही है।
-नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री
190 देशों की आबादी से ज्यादा भारतीय दुनिया भर में
दुनिया भर में फैले भारतीय डायस्पोरा यानी पीआईओ और एनआरआई की संख्या को अगर मिला लिया जाए तो विश्व के 190 देश ऐसे हैं जिनकी आबादी भी इतनी नहीं है।
nहोली सी या वेटिकन सिटी, पाकिस्तान, सैन मैरिनो को छोड़ दें तो विश्व के 200 से अधिक देशों में भारतीय मूल के लोग या अनिवासी भारतीय रहते हैं।
nविदेश मंत्रालय के दिसंबर, 2021 के डाटा के अनुसार 1.87 करोड़ पीआईओ और 1.35 करोड़ एनआरआई सहित कुल 3.22 करोड़ भारत के लोग विदेशों में रहते हैं।
nविदेश मंत्रालय के पास उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार 13 लाख भारतीय छात्र विदेशों में अध्ययन कर रहे हैं।
nमंत्रालय के थिंक टैंक भारतीय प्रवासन केंद्र ने विदेश में अध्ययन करने वालों के लिए छात्र पुस्तिका तैयार की है। सबसे अधिक 4.65 लाख छात्र संयुक्त राज्य अमेरिका में अध्ययन कर रहे हैं।
विश्व के सभी महाद्वीपों में 202 भारतीय मिशन हैं जिनमें राजदूतावास, उच्चायोग, स्थायी मिशन, स्थायी प्रतिनिधि मंडल और सहायक उच्चायोग व प्रतिनिधि कार्यालय शामिल हैं। विदेश मंत्रालय के डाटा के अनुसार 2014 के बाद 22 नए राजनायिक मिशन स्थापित किए गए हैं।
दुनिया में बढ़ा भारत का सम्मान
फिलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फिलिस्तीन का सर्वोच्च पुरस्कार ‘ग्रैंड कॉलर’ प्रदान किया।
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा समिट के दौरान भारत के सस्टेनेबल डेवलपमेंट के लिए सेरावीक वैश्विक ऊर्जा और पर्यावरण लीडरशिप अवार्ड से प्रधानमंत्री मोदी को सम्मानित किया गया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘द लीजन ऑफ मेरिट अवॉर्ड’ से सम्मानित किया गया है। अमेरिका का यह प्रतिष्ठित सम्मान उत्कृष्ट सेवा और उपलब्धियों के लिए दिया जाता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संयुक्त अरब
अमीरात ने सर्वोच्च पुरस्कार ‘ऑर्डर ऑफ जायद’ से सम्मानित किया।
स्वच्छ भारत अभियान के लिए बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन की ओर से प्रधानमंत्री मोदी को ‘ग्लोबल गोलकीपर अवार्ड’ से सम्मानित किया गया।
प्रधानमंत्री मोदी को सियोल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
बहरीन के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘बेहरीन ऑर्डर ऑफ रिनेन्सां फर्स्ट क्लास’ से सम्मानित।
अफगानिस्तान के स्टेट ऑफ गाजी अमीर अमानुल्लाह खान सम्मान व सऊदी अरब के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘सैस ऑफ किंग अब्दुल अजीज’ से भी पीएम मोदी को सम्मानित किया जा चुका है।
मालदीव यात्रा के दौरान पीएम मोदी को
‘ऑर्डर ऑफ द डिस्टिंग्यूश्ड रूल ऑफ
निशान इज्जूद्दीन’ दिया गया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 2018 में संयुक्त राष्ट्र के सर्वोच्च पुरस्कार चैंपियस ऑफ द अर्थ से सम्मानित किया गया।
पीपुल, प्रॉफिट और प्लानेट पर केद्रिंत फिलिप कोटलर प्रेशिडेंशियल पुरस्कार से भी प्रधानमंत्री मोदी को सम्मानित किया जा चुका है।
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को रूसी संघ के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार-‘ऑर्डर ऑफ सेंट एंड्रयू द एपोस्टल’
से सम्मानित किया।
557 पासपोर्ट कार्यालय, इनमें से 177 भारतीय मिशन के साथ इंटीग्रेट
36 क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय देशभर में मौजूद
93 पासपोर्ट सेवा केंद्र
428 डाकघर पासपोर्ट सेवा केंद्र
एफडीआई और विदेशी मुद्रा भंडार
निवेश आकर्षित करने और ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के तहत जहां उद्योगों को कई सुविधाएं दी गई हैं, तो वहीं प्रत्यक्ष विदेश निवेश(एफडीआई) नीति को पहले की तुलना में सरल व उदार बनाया गया है। सरकार ने कोयला खनन, संविदा विनिर्माण, डिजिटल मीडिया, सिंगल ब्रांड खुदरा व्यापार, नागर विमानन, रक्षा, पेट्रोलियम, दूरसंचार और बीमा जैसे क्षेत्रों में सुधार शुरू किए हैं। इन सबके बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार विदेश दौरों के दौरान भारत में किए गए सुधारों का जिक्र कर निवेश के लिए आंमंत्रित करते हैं।
440.26
बिलियन अमरीकी डॉलर का विदेशी निवेश आया है। वित्त वर्ष 2014-2015 से 2020-2021 तक
चौथा सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार वाला देश
देश में लगातार विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ रहा है। नवंबर, 2021 तक चीन, जापान और स्विटजरलैंड के बाद चौथा सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार भारत के पास है।
प्रवासियों के हित में उठाए जरूरी कदम
विदेश में रहने वाले भारतीयों से संबंधित किसी भी मुद्दे को प्राथमिकता के आधार पर निपटाया जाता है। मिशन और केंद्र अनिवासी भारतीयों की सुरक्षा के मुद्दों पर चर्चा के लिए ओपन हाउस आयोजित करते हैं।
• ओपन हाउस में सामने आने वाले मुद्दों को प्राथमिकता के आधार पर कार्रवाई के लिए मेजबान सरकार के साथ उठाया जाता है।
• विदेश में प्रवास करने से पहले कामगारों को प्रस्थान पूर्व अभिविन्यास प्रशिक्षण दिया जाता है, इसका मैन्युअल तैयार किया है जो क्षेत्रीय भाषाओं में उपलब्ध है। •प्रवासी भारतीय बीमा योजना कामगारों को बीमा सुविधा प्रदान करती है।
• मदद पोर्टल, भारतीय समुदाय कल्याण कोष (आईसीडब्ल्यूएफ), ई-माइग्रेट पोर्टल, प्रवासी भारतीय सहायता केंद्र, रिश्ता पोर्टल आदि से अनिवासी भारतीयों को सहायता प्राप्त करने और उनकी शिकायतों का समाधान करने तथा उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने में सहायता मिलती है।
•• नवंबर, 2021 तक 2.78 लाख से अधिक प्रवासी भारतीयों को भारतीय समुदाय कल्याण कोष के अंतर्गत सहायता दी गई।
•• भारतीयों की सहायता के लिए फरवरी, 2015 में मदद पोर्टल शुरू किया गया जिसमें जुलाई 2016 में छात्रों का मॉड्यूल तैयार किया गया।
•• वर्तमान सरकार के पहले प्रवासी भारतीयों के लिए अलग मंत्रालय था जिसे समन्वय में दिक्कत की वजह से विदेश मंत्रालय के साथ मिला दिया गया। पीआईओ और ओसीआई स्कीम अलग-अलग थे जिसमें अंतर लोगों को पता नहीं था, प्रक्रिया को सरल करके दोनों को मिलाकर एक स्कीम बनाई गई।
•• दिसंबर, 2021 तक 25.10 लाख प्रवासियों को ओसीआई कार्ड जारी किए गए। दुनिया भर में भारतीय समुदाय के साथ बेहतर संपर्क के लिए रिश्ता नाम का नया पोर्टल लांच किया है। इस पोर्टल से मुश्किल समय में अपने समुदाय से संपर्क करना, उन तक तेजी से पहुंचना आसान होगा। इस पोर्टल से दुनियाभर में फैले भारतीय नागरिकों के अनुभव का भारत के विकास में उपयोग करने में भी मदद मिलेगी।
•• कोविड-19 की महामारी के दौरान विदेशों में फंसे जिन भारतीयों को देश में लाया गया, उनके लिए भारत सरकार ने स्किल्ड वर्कर्स अराइवल डेटाबेस फॉर एम्प्लॉयमेंट सपोर्ट (स्वदेश) पोर्टल शुरू किया। इस डाटाबेस का उद्देश्य वंदे भारत मिशन में लौटे कामगारों के स्किल की मैपिंग करना और उन्हें भारतीय और विदेशी कंपनियों से जोड़ना है।
• स्वदेश के तहत नियोक्ताओं से संपर्क करने के लिए आत्मनिर्भर कुशल कर्मचारी मैपिंग (असीम) पोर्टल पर विवरण अपलोड करने के साथ डाटाबेस की सुविधा दी गई। 28 फरवरी, 2022 तक 33,957 से अधिक नागरिकों ने स्किल वर्कर्स अराइवल डेटाबेस फॉर एम्प्लायमेंट सपोर्ट (स्वदेश) स्किल कार्ड के लिए पंजीकरण कराया है।
•• अनिवासी भारतीयों की शिकायतें कॉल, वॉकइन, ईमेल, सोशल मीडिया और हेल्पलाइन पर ली जाती हैं।
132 देशों में भारतीय समुदाय कल्याण कोष का इस्तेमाल अनिवासी भारतीयों के कल्याण के लिए किया जा रहा है। विदेश में फंसे भारतीयों को निकालने और अपने देश तक के सफर पर इसी फंड से राशि खर्च की जाती है।
अंतरराष्ट्रीय मंच पर बुलंदी
के साथ उभरता भारत
अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) की शुरुआत सौर संसाधन संपन्न देशों की विशेष ऊर्जा जरुरतों को पूरा करने के लिए की गई पहल है। जिसका नेतृत्व भारत और फ्रांस के हाथ में है। यह पहली ऐसी अंतरराष्ट्रीय संस्था है, जिसका मुख्यालय भारत में है। 103 देश अब तक इसके सदस्य बन चुके हैं।
भारत ने अगस्त, 2021 में पहली बार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता संभाली। पीएम नरेंद्र मोदी पहले भारतीय प्रधानमंत्री बने जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता की।
भारत की योग की प्राचीन, समृद्ध परंपरा को वैश्विक पहचान दिलाई। दुनिया ने 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के तौर पर स्वीकारा। संयुक्त राष्ट्र महासभा के 193 सदस्य देशों में से 177 सदस्यों ने 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी।
40 साल के बाद ओलंपिक समिति ने आईओसी बैठक की मेजबानी के लिए भारत को चुना।
वर्तमान सरकार से पहले कूटनीति का प्रयोग घरेलू विकास के लिए नहीं किया जाता था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से चलाए गए कार्यक्रम क्लीन इंडिया, स्किल इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, स्मार्ट सिटीज की सफलता के लिए कूटनीति का प्रयोग किया, जिसका नाम ‘डिप्लोमैसी ऑफ डेवलपमेंट’ दिया गया।
मंगलयान के
जरिए अपने पहले ही प्रयास में मंगल की कक्षा में प्रवेश करने वाला भारत विश्व का पहला राष्ट्र बना।
संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता को सर्वोच्च प्राथमिकता
भारत सरकार विस्तारित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत के लिए स्थायी सदस्यता प्राप्त करने को सर्वोच्च प्राथमिकता दे रही है। सरकार इस मामले में अन्य देशों के संपर्क में है। इसके लिए भारत संयुक्त राष्ट्र में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद सुधारों पर चल रही अंतर-सरकारी वार्ता (आईजीएन) में सक्रिय तौर पर काम कर रहा है। जी-4 (भारत, ब्राजील, जर्मनी और जापान) और एल-69 समूह (एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका के विकासशील देशों का क्रॉस-क्षेत्रीय समूह) की सदस्यता के माध्यम से अन्य सुधार उन्मुख देशों के साथ मिलकर काम कर रहा है। भारत के बढ़ते कद और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अपनी भूमिका की स्वीकार्यता के कारण 2020 में न्यूयॉर्क में आयोजित चुनावों के दौरान 193 में से 184 मतों के साथ 2021-2022 के दौरान 8वीं बार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्य के रूप में चुना गया। कई देशों में विस्तारित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिए भारत की उम्मीदवारी का समर्थन करने की आधिकारिक पुष्टि द्विपक्षीय रूप से की है।
29 सितंबर, 2014
अमेरिका, मैडिसन स्क्वायर गार्डन- 18 हजार से ज्यादा भारतीय समुदाय के लोगों को किया संबोधित
मैंने पीओआई कार्डधारकों को भारत का आजीवन वीजा देने का वादा किया था जिसे महज एक महीने बाद ही पूरा भी कर दिया। भारत के पास 21वीं सदी को अपना बनाने का सामर्थ्य है। भारत सबसे पुरानी संस्कृति का सबसे जवान देश है। यह बहुत तेजी से आगे बढ़ने वाला देश है। हम आपका माथा झुकने नहीं देंगे।
-नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री
(मैडिसन स्क्वायर में)
17 नवंबर, 2014: आस्ट्रेलिया में सिडनी के अल्फोंस एरीना में भारतीय समुदाय काे किया संबोधित
आस्ट्रेलिया-सिडनी के अल्फोंस एरीना में प्रधानमंत्री ने भारतीय समुदाय के 18 हजार से अधिक लोगों को किया संबोधित। अल्फोंस एरीना में 16 हजार लोगों के बैठने की जगह थी लेकिन 23 हजार से अधिक लोगों ने पंजीकरण कराया था।
हमें देश की आजादी के लिए लड़ने का
अवसर नहीं मिला। हम भारत के लिए अपनी जान
नहीं दे पाए। लेकिन हम भारत के लिए कुछ कर सकते हैं। -नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री (सिडनी में)
14 नवंबर, 2015: लंदन का वेम्बले स्टेडियम
करीब 60 हजार लोगों को संबोधित किया।
विविधता भारत की विशेषता, गौरव और ताकत है। जो भारत आप टीवी के पर्दों और समाचार पत्रों की सुर्खियों में देखते हैं वह उससे कहीं बड़ा और अधिक महान है।
-नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री
22 सितंबर, 2019
संयुक्त राज्य अमेरिका में ‘हाउडी मोदी’, भारतीय समुदाय के 50 हजार से ज्यादा लोगों को किया संबोधित
भारत आज चुनौतियों को टाल नहीं रहा, हम चुनौतियों से टकरा रहे हैं। असंभव सी लगने वाली तमाम बातों को भारत आज संभव करके दिखा रहा है। अब भारत ने 5 ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी के लिए कमर कसी है। इंफ्रास्ट्रक्चर, इंवेस्टमेंट और एक्सपोर्ट बढ़ाने पर जोर के साथ निवेश और विकास के अनुकूल माहौल बनाते हुए आगे बढ़ रहे हैं। -नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री (हाउडी मोदी कार्यक्रम में)
विदेशों से देश में पैसे भेजने में प्रवासी भारतीय अव्वल
विश्व बैंक की ‘माइग्रेशन एंड डेवलपमेंट ब्रीफ’ रिपोर्ट के मुताबिक विदेश में कमाई करके अपने देश में धन (रेमिटेंस) भेजने के मामले में भारतीय प्रवासी दुनिया में सबसे आगे रहे हैं। 2021 में प्रवासी भारतीयों ने 87 अरब अमेरिकी डॉलर स्वदेश भेजे हैं। इसमें सबसे अधिक 20 प्रतिशत धन राशि अमेरिका से प्रवासी भारतीयों ने भेजी है। प्रधानमंत्री मोदी की तरफ से प्रवासी भारतीयों के लिए किए गए विशेष प्रयासों से प्रवासियों का अपनी जड़ यानी भारत के लिए सहयोग और गर्व लगातार बढ़ रहा है। रिपोर्ट में 2022 में यह राशि 89.6 अरब अमेरिकी डॉलर पहुंचने का अनुमान लगाया गया है।
2 मई, 2022: जर्मनी के बर्लिन के एटर एम पोस्टडैमर में प्रवासी भारतीयों को किया संबोधित
एयरपोर्ट पर भारतीय समुदाय ने जोरदार स्वागत किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देखने और उन्हें सुनने के लिए दूर-दूर से भारतीय समुदाय के लोग जुटे।
आज मैं न तो मेरी बात करने आया हूं और ना ही मोदी सरकार की बात करने आया हूं। मेरा मन करता है कि जी भरके आप लोगों से करोड़ों हिंदुस्तानियों की बात करूं। जब मैं करोड़ों हिंदुस्तानियों का जिक्र करता हूं तो इनमें वो लोग भी शामिल हैं जो यहां रहते हैं। 21वीं सदी में संकल्प लेकर आगे बढ़ रहा है। आज भारत को पता है कि कहां जाना है, कैसे जाना है और कब तक जाना है।
-नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री
आठ वर्ष में प्रवासी भारतीयों की आर्थिक भागीदारी
वर्षधनराशि
2014 70.4
2015 68.9
2016 62.7
2017 68.9
2018 79.4
2019 83.3
2020 83.1
2021 87.0
(धन राशि अरब डॉलर में)
भारत एक मददगार की भूमिका में मॉरिशस में करीब 3,571 करोड़, अफगानिस्तान में 1708 करोड़, नेपाल में करीब 891 करोड़ और म्यांमार में करीब 967 करोड़ रुपये की अनुदान वाली परियोजनाएं चला रहा है।
प्रतिभा का पलायन (ब्रेन ड्रेन) देश के लिए नुकसानदेह समझा जाता है, क्योंकि भारतीय बेहतर जीवन और नौकरी की तलाश में विदेश चले जाते हैं, लेकिन मेरे लिए और मेरी सरकार के लिए यह प्रतिभा का पलायन नहीं बल्कि प्रतिभा को पाना (ब्रेन गेन) है क्योंकि वे विकास के संबंध में हमारी सहायता कर सकते हैं। -नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री
विश्व पटल पर भारत की छाप
जापान के साथ भारत का रिश्ता आत्मीयता का है, अध्यात्म का है, सहयोग का है और अपनेपन का है। भारत-जापान के इन रिश्तों को और गहराई मिली जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 23-24 मई को दौरे पर जापान पहुंचे। अपने 40 घंटे के दौर में प्रधानमंत्री मोदी ने 23 बैठकों में हिस्सा लिया। क्वाड समूह की बैठक में शिरकत की तो 34 उद्योगपतियों के साथ बैठक के अलावा भारतीय समुदाय को भी संबोधित किया। प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिका के राष्ट्रपति बाइडेन और जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा के साथ द्विपक्षीय बातचीत भी की।
क्वाड समूह: कई समझौते
भारत-प्रशांत क्षेत्र में मुक्त व्यवस्था बनाने में क्वाड समूह की महत्वपूर्ण भूमिका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज 24 मई को क्वाड समूह की चौथी और व्यक्तिगत रूप से आयोजित दूसरी बैठक में शामिल हुए। बैठक के उद्घाटन भाषण में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “इतने कम समय में क्वाड समूह ने विश्व पटल पर एक महत्वपूर्ण स्थान बना लिया है । आज क्वाड का दायरा व्यापक हो गया है और स्वरूप प्रभावी हो गया है।” क्वाड देश अब भारत-प्रशांत क्षेत्र में अवैध फिशिंग पर रोक लगाने के लिए सैटेलाइट टेक्नीक का इस्तेमाल करते हुए एक ट्रैकिंग सिस्टम बनाएंगे। क्वाड की बैठक में पहली बार चारों देशों के छात्रों के लिए फैलोशिप की घोषणा की गई।
नेपाल की धरती से भगवान बुद्ध का संदेश
अपने नेपाल दौरे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा के साथ लंुबनी में भारत अंतरराष्ट्रीय बौद्ध संस्कृति और विरासत केंद्र का शिलान्यास किया। इस केंद्र का निर्माण अंतरराष्ट्रीय बौद्ध संघ (आईबीसी), नई दिल्ली द्वारा किया जाना है। दोनों देशों के बीच कई महत्वपूर्ण समझौते किए गए। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने इस 7 घंटे के दौरे में 2566वें बुद्ध जयंती के अवसर पर लुंबनी में आयोजित समारोह को संबोधित कर दोनों देशों के सांस्कृतिक रिश्तों, गाढ़ी मित्रता और भगवान बुद्ध के संदेशों का जिक्र किया।
भारतीय समुदाय से बोले पीएम
– भारत चलो, भारत से जुड़ो
अपने जापान दौरे पर प्रधानमंत्री मोदी ने वहां मौजूद भारतीय समुदाय को संबोधित भी किया। अपने संबोधन में उन्होंने दोनों देशों के खास रिश्तों का जिक्र किया तो शिकागो जाने से पहले स्वामी विवेकानंद के जापान दौरे, रविंद्रनाथ टैगोर और भगवान बुद्ध के संदेश का उदाहरण भी दिया। टोक्यो में एक कार्यक्रम के दौरान भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “आस्था हो या एडवेंचर, जापान के लिए तो भारत एक स्वाभाविक टूरिस्ट डेस्टिनेशन है। और इसलिए भारत चलो, भारत देखो, भारत से जुड़ो, इस संकल्प से जापान के हर मेरे भारतीय से मैं आग्रह करुंगा कि वो उससे जुड़ें।”
इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क फॉर प्रॉस्पेरिटी के साथ हिंद-प्रशांत क्षेत्र में मुक्त व्यापार की पहल
इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क फॉर प्रॉस्पेरिटी यानी आईपीईएफ का उद्देश्य भारत-प्रशांत क्षेत्र में व्यापारिक भागीदारी को किसी भी प्रभाव से मुक्त बनाना है। भारत भी इसमें शामिल हो गया है। अब इस संगठन में अमेरिका के अलावा 12 और देश ऑस्ट्रेलिया, ब्रुनेई, भारत, इंडोनेशिया, जापान, कोरिया गणराज्य, मलेशिया, न्यूजीलैंड, फिलीपीन्स, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम शामिल हैं।
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तकनीक से विकास
5जी और ड्रोन सेक्टर में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़े कदम
तकनीक के साथ विकास की संभावनाओं के नए द्वार
ईज ऑफ डूइंग बिजनेस से लेकर ईज
ऑफ लिविंग और शासन व्यवस्था में पारदर्शिता लाने तक तकनीक का विस्तार बीते 8 वर्षों में देश ने देखा है। समय अब उससे भी आगे बढ़ने का है। इसीलिए स्वदेशी 4जी के बाद अब देश ने 5जी सुविधा की ओर कदम बढ़ाए हैं तो अब तक अछूते रहे ड्रोन सेक्टर में भी आत्मनिर्भरता की शुरुआत हुई है। 17 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वदेशी 5जी टेस्ट बेड की शुरुआत की तो 19 मई को टेलीकॉम मंत्री अश्विनी वैष्णव ने पहला 5जी वीडियो कॉल कर भारत में सूचना क्रांति के नए युग का सूत्रपात किया। वहीं, 27 मई को भारत के सबसे बड़े ड्रोन महोत्सव का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने इस सेक्टर में भारत के भविष्य की बुनियाद रखी…
वर्ष 1995 का समय था, जब भारत में पहली बार मोबाइल सेवा की शुरुआत हुई थी। मोबाइल पर आने वाले कॉल की प्रति मिनट दर तब 25 रुपये होती थी। इसके साथ 1-जी वायरलेस तकनीक से जहां टूटी-फूटी खरखराहट भरी आवाजों के जरिए संवाद मुमकिन हो पाया था, तो वहीं 2-जी के जरिये पहली बार स्पष्ट आवाज के साथ एसएमएस जैसे बेसिक डेटा ट्रांसफर सर्विस मिली और मोबाइल इंटरनेट की शुरूआत हुई थी। 3जी सेवा के साथ इंटरनेट वेबसाइट से लेकर वीडियो देखना, संगीत सुनना संभव हो पाया और 4जी सेवा ने इसे तेज रफ्तार दी। लेकिन इंटरनेट के साथ तकनीकी क्षेत्र का यह सिर्फ एक पहलू नहीं है, बल्कि यह आज के वक्त की वह बुनयादी जरूरत है जो सिर्फ आपके जीवन को आसान ही नहीं करती, बल्कि खेती, स्वास्थ्य, शिक्षा, इंफ्रास्ट्रक्चर और लॉजिस्टिक्स जैसे महत्वपूर्ण सेक्टर भी इस पर निर्भर करते हैं।
बीते 8 वर्षों में भारत ने इसका बेहतरीन इस्तेमाल किया है। जनधन, आधार, मोबाइल की ट्रिनिटी को पारदर्शी शासन व्यवस्था का माध्यम बनाया गया है तो मोबाइल गरीब से गरीब परिवार की भी पहुंच में हो, इसके लिए देश में ही मोबाइल फोन की मैन्युफेक्चरिंग पर बल दिया गया। परिणाम ये हुआ कि मोबाइल मैन्युफेक्चरिंग यूनिट्स 2 से बढ़कर 200 से अधिक हो गईं। आज भारत दुनिया का सबसे बड़ा मोबाइल फोन उत्पादक है। मोबाइल कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए जरूरी था कि कॉल और डेटा महंगा ना हो। इसलिए टेलीकॉम मार्केट में स्वस्थ प्रतियोगिता को बढ़ावा दिया गया। आज करीब-करीब पौने दो लाख ग्राम पंचायतों तक ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी पहुंच चुकी है। फोन और इंटरनेट तक ज्यादा से ज्यादा भारतीयों की पहुंच ने संभावनाओं का नया द्वार खोला है। इसने देश में एक सशक्त डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर की नींव रखी है। देशभर में 4 लाख कॉमन सर्विस सेंटर न सिर्फ दूरदराज के इलाकों तक सुविधा पहुंचा रहे हैं, बल्कि लोगों की आजीविका का आधार भी बने हैं। आज भारत दुनिया के उन देशों की कतार में शामिल है, जहां इंटरनेट डेटा की औसत दर सबसे कम है और ब्रॉडबैंड समेत टेलीकॉम सेक्टर में उपभोक्ताओं की संख्या सबसे ज्यादा है। भारत में वर्तमान में 1 जीबी डेटा की औसत दर करीब 10 रुपये है। प्रति व्यक्ति औसत डेटा उपयोग 14.3 जीबी है। वहीं ब्रॉडबैंड उपभोक्ताओं की संख्या 79 कराेड़ से ज्यादा है। 2014 तक यह संख्या करीब 6.1 करोड़ ही थी। लेकिन 4जी के बाद अब बारी 5जी सेवा की है। भारत इस क्षेत्र में तेजी से कदम बढ़ा रहा है। इस दिशा में आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाते हुए भारत ने स्वदेशी 5जी टेस्ट बेड(देखें बॉक्स) की शुरुअात की है। 17 मई को आयोजित भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण(ट्राई) के रजत जयंती वर्ष पर आयोजित समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका लोकार्पण किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि 21वीं सदी के भारत में कनेक्टिविटी, देश की प्रगति की गति को निर्धारित करेगी। इसलिए हर स्तर पर कनेक्टिविटी को आधुनिक बनाना ही होगा। उन्होंने कहा कि 5जी टेक्नोलॉजी भी देश की गवर्नेंस में, इज ऑफ लिविंग, इज ऑफ डूइंग बिजनेस में सकारात्मक बदलाव लाने वाली है।
भारत का खुद का 5जी टेस्ट बेड
यह एक 5जी प्रोटोटाइप और टेस्टिंग
प्लेटफॉर्म है। टेस्ट बेड के जरिए टेलीकॉम इंडस्ट्री और स्टार्टअप को स्थानीय स्तर पर अपने उत्पाद की टेस्टिंग और वेरिफिकेशन करने में मदद मिलेगी। इससे उन्हें दूसरे देशों पर निर्भर नहीं रहना होगा। इस टेस्टबेड को लगभग 220 करोड़ रुपये की लागत से स्थापित किया गया है। यह सुविधा 5 अलग-अलग स्थानों पर उपलब्ध है। 5G टेस्टबेड को आईआईटी मद्रास के नेतृत्व में आठ संस्थानों ने एक बहु-संस्थान सहयोगी परियोजना के रूप में विकसित किया है। अब भारत के पास 5जी सेवा की पूरी तरह से अपनी तकनीक होगी।
5जीआई के रूप में भारत ने बनाया अपना प्लेटफाॅर्म
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में कहा, “5जीआई के रूप में जो देश का अपना 5G स्टैंडर्ड बनाया गया है, वो देश के लिए बहुत गर्व की बात है। ये देश के गांवों में 5जी टेक्नोलॉजी पहुंचाने और उस काम में बड़ी भूमिका निभाएगा।” दरअसल, प्रधानमंत्री मोदी ने जिस 5जीआई का जिक्र किया है, उसका मतलब है 5जी का इंडियन स्टैंडर्ड। इसे आईआईटी हैदराबाद और मद्रास ने मिलकर बनाया है। इस नेटवर्क स्टैंडर्ड को पहले से ही इंटरनेशनल कम्यूनिकेशन यूनिट से मंजूरी मिल गई है। यह कम स्पेक्ट्रम पर काम करता है। दरअसल, देश की बड़ी जनसंख्या गांवों और दूरदराज के इलाकों में बसती है। ऐसे में कोशिश है कि इन इलाकों में बेहतर नेटवर्क कनेक्टिविटी दी जाए। 5जीआई इसी दिशा में एक प्रयास है।
5जी सुविधाएं भी बढ़ेंगी और रोजगार के भी नए अवसर बनेंगे। अनुमान है कि आने वाले डेढ़ दशक में 5जी से भारत की अर्थव्यवस्था में 450 बिलियन डॉलर का योगदान होने वाला है। यानी ये सिर्फ इंटरनेट की गति ही नहीं, बल्कि प्रगति और रोजगार सृजन की गति को भी बढ़ाने वाला है। इसलिए, 5जी तेजी से जल्द से जल्द शुरू हो, इसके लिए सरकार और इंडस्ट्री, दोनों को मिलकर प्रयास करने की जरूरत है। इस दशक के अंत तक हम 6जी सर्विस भी लॉन्च कर पाएं, इसके लिए भी हमारी टास्क फोर्स काम करना शुरु कर चुकी है।
-नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री
ड्रोन सेक्टर में भारत
के भविष्य की बुनियाद
अब ड्रोन सिर्फ रक्षा क्षेत्र में उपयोग होने वाले उपकरण भर नहीं रहे हैं, बल्कि बहुद्देश्यीय उपकरण के तौर पर उभर रहे हैं। इनका उपयोग शासन, खेती, रसद जैसे कई क्षेत्रों के लिए किया जा सकता है और दुनिया के कई हिस्सों में ऐसा किया भी जा रहा है। इसलिए कुछ समय पहले तक ड्रोन के लिए पूरी तरह आयात पर निर्भर भारत अब इसके निर्माण सेक्टर में आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ा रहा है। उद्देश्य है 2030 तक भारत को ‘ड्रोन हब’ बनाना। ड्रोन निर्माण सेक्टर के लिए पीएलआई जैसी योजना ने इसमें भारत की संभावनाओं का नया द्वार खोला है। इसी कड़ी में 27 मई को नई दिल्ली के प्रगति मैदान में भारत के सबसे बड़े ड्रोन महोत्सव की शुरुआत हुई। महोत्सव में खुद ड्रोन उड़ाकर प्रधानमंत्री मोदी ने पूरी दुनिया को एक संदेश दिया। कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “मेरा तो यही सपना है कि भारत में हर हाथ में स्मार्टफोन हो, हर खेत में ड्रोन हो और हर घर में समृद्धि हो।” अब शहरों में ही नहीं गांव-देहात, सुदूर के आदिवासी, पहाड़ी, दुर्गम क्षेत्रों में भी ड्रोन के तरह-तरह के उपयोग निकल रहे हैं और बहुत मददगार सिद्ध हो रहे हैं।
ड्रोन टेक्नोलॉजी को लेकर भारत में जो उत्साह देखने को मिल रहा है, वो अद्भुत है। ये जो ऊर्जा नजर आ रही है, वो भारत में ड्रोन सर्विस और ड्रोन आधारित इंडस्ट्री की लंबी छलांग का प्रतिबिंब है। ये भारत में रोजगार सृजन के एक उभरते हुए बड़े सेक्टर की संभावनाएं दिखाती है। – नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री
ड्रोन टेक्नोलॉजी बन रही एक बड़ी क्रांति का आधार
nपीएम स्वामित्व योजना में ड्रोन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर पहली बार देश के गांवों की हर प्रॉपर्टी की डिजिटल मैपिंग की जा रही है। केदारनाथ में जब पुनर्निर्माण का काम शुरू हुआ था, तो प्रधानमंत्री ड्रोन के जरिए काम का निरीक्षण करते थे।
nभारत में कोविड के दौरान ड्रोन से वैक्सीन पहुंचाई गई, वहीं यह किसानों के लिए यूरिया के छिड़काव का साधन बना। पेड़ उगाने के लिए ड्रोन से बीज ऊपर से गिराया जाता है।
nइस साल बीटिंग रिट्रीट के मौके पर 10 मिनट तक 1000 ड्रोन की मदद से आसमान जगमग किया गया और इस तरह का शो आयोजित करने वाला भारत दुनिया का चौथा देश बना। भारत में अब केवल रिसर्च एंड डेवलपमेंट, डिफेंस और सिक्योरिटी के लिए ही ड्रोन आयात की अनुमति है। n
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कैबिनेट के फैसले
राष्ट्रीय जैव-ईंधन नीति में संशोधन, सार्वजनिक उपक्रमों के बोर्ड विनिवेश की कर सकेंगे सिफारिश
देश की प्रगति और आत्मनिर्भर भारत बनाने के लिए ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर होना अनिवार्य है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आजादी के 100 साल पूरे होने से पहले यानी 2047 तक ऊर्जा के क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर बनाना चाहते हैं। इसी पहल के तहत केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जैव-ईंधन में होने वाली प्रगति को ध्यान में रखते हुए जैव-ईंधन उत्पादन बढ़ाने का निर्णय लिया है ताकि मेक इन इंडिया अभियान का मार्ग प्रशस्त हो। वहीं, मंत्रिमंडल ने सार्वजनिक क्षेत्रों के उपक्रमों के निदेशक मंडल को विनिवेश, सहायक कंपनियों और संयुक्त उपक्रमों को बंद करने और अल्पांश बिक्री से जुड़ी सिफारिशें करने का भी दिया है अधिकार…
nफैसला : कई संशोधनों के साथ राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति-2018 को मंजूरी दी गई है। इसमें पेट्रोल में 20 प्रतिशत एथेनॉल मिश्रण का लक्ष्य वर्ष 2030 से पहले 2025-26 में ही प्राप्त करने के लिए पहल करना प्रमुख है।
nप्रभाव : राष्ट्रीय जैव-ईंधन नीति के लिये स्वीकृत मुख्य संशोधन से स्वदेशी प्रौद्योगिकियों के विकास के लिये आकर्षण और समर्थन बढ़ेगा। साथ ही जैव-ईंधन के अधिक से अधिक उत्पादन के जरिये पेट्रोलियम उत्पादों के आयात में कटौती संभव होगी और अधिक रोजगार पैदा होंगे। जैव-ईंधन के लिये कई सारे फीडस्टॉक्स को मंजूरी दी जा रही है। इस कदम से आत्मनिर्भर भारत को प्रोत्साहन मिलेगा और 2047 तक भारत के “ऊर्जा के मामले में स्वतंत्र” होने के प्रधानमंत्री की परिकल्पना को गति मिलेगी।
फैसला : होल्डिंग और मूल सार्वजनिक उपक्रमों के निदेशक मंडल को विनिवेश (रणनीतिक विनिवेश और अल्पांश हिस्सेदारी बिक्री) अथवा अपनी सहायक कंपनियों या इकाइयों को बंद करने के लिए प्रक्रिया शुरू करने का अधिकार प्रदान किए जाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई है। साथ ही संयुक्त उद्यमों में हिस्सेदारी की सिफारिश करने और वैकल्पिक तंत्र को अतिरिक्त अधिकार सौंपने के लिए प्रक्रिया शुरू करने का अधिकार दिए जाने वाले प्रस्ताव को भी मंजूरी दी गई है।
प्रभाव : इस प्रस्ताव का उद्देश्य होल्डिंग सार्वजनिक उपक्रमों के निदेशक मंडल को निर्णय लेने के लिए अधिक स्वायत्तता प्रदान करना और सहायक कंपनियों या संयुक्त उद्यमों में अपने निवेश को लेकर सही समय पर सिफारिश करके सार्वजनिक उपक्रमों के कामकाज में सुधार करना है। इससे वे ऐसी सहायक कंपनियों या इकाइयों और संयुक्त उपक्रमों को उचित समय पर बंद कर अपने निवेश का मौद्रीकरण करने में सक्षम होंगे। साथ ही इसके कारण सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को शीघ्र निर्णय लेने में मदद मिलेगी और बेकार के खर्च से राहत मिलेगी। n
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गरीब कल्याण सम्मेलन
100% लाभ-लाभार्थी तक पहुंचाने का लक्ष्य
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने कल्याणकारी योजनाओं की दिशा में कई मंजिलें तय की हैं। गरीबों के सम्मान, सुरक्षा और समृद्धि को समर्पित सरकार का लक्ष्य अब अमृत काल में शत-प्रतिशत लाभार्थियों तक पहुंचने का है। सेवा, सुशासन और गरीब कल्याण का मंत्र लिए सरकार लगातार देश की विकास यात्रा को और तेज गति दे रही है, ताकि नई ऊर्जा, नए लक्ष्यों के साथ130 करोड़ लोगों के सपने का नया भारत बनाने का पूरा हो संकल्प……
आइए एक नए भारत की दिशा में काम करें… एक ऐसा भारत जिसकी पहचान आधुनिकता हो। एक ऐसा भारत जो देश के साथ दुनिया की भी डिमांड पूरी करे। एक ऐसा भारत जो लोकल के लिए वोकल हो। एक ऐसा भारत जो आत्मनिर्भर हो।” केंद्र सरकार के 8 वर्ष पूरे होने के अवसर पर हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में आयोजित राष्ट्रीय कार्यक्रम में प्रधानमंत्री के ये शब्द उस नए भारत का संकल्प है जिसकी यात्रा आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष से शुरू हो चुकी है। इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने केंद्र सरकार से जुड़ी दर्जन भर योजनाओं के लाभार्थियों से सीधा संवाद किया। उन्होंने अपनी भावना दोहराई भी, “मेरा जीवन 130 करोड़ देशवासियों के कल्याण को समर्पित है। हमारी सरकार के 8 साल पूरे होने पर मैं दोहराता हूं कि मेरा जीवन हमेशा गरीब से गरीब व्यक्ति के ‘सम्मान, सुरक्षा और समृद्धि’ को समर्पित रहेगा।” इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने किसान सम्मान निधि योजना के तहत लगभग 11 करोड़ किसानों के बैंक खाते में सीधे 11वीं किस्त हस्तांतरित भी की। देश में पहली बार है कि 11 किस्तों में किसानों के खाते में 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक की राशि हस्तांतरित हो चुकी है।
लेकिन 8 वर्ष पूरे करने के बाद भी प्रधानमंत्री की सोच में ठहराव नहीं है, बल्कि उनका लक्ष्य है कि हर योजना का लाभ शत प्रतिशत प्रत्येक लाभार्थी तक पहुंचे। उन्होंने शिमला के इस मंच से इसका प्रण दोहराया। प्रधानमंत्री ने अपनी हर योजना में जिस तरह से जनभागीदारी को प्राथमिकता दी है, उसका परिणाम है कि हर भारतीय खुद एक जुड़ाव महसूस करने लगा है। इसलिए प्रधानमंत्री ने कहा भी, “हम भारतवासियों के सामर्थ्य के आगे कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है। आज भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है।” उनका कहना था कि आज 3 करोड़ से अधिक गरीबों को घर मिला है, 25 करोड़ से अधिक लोगों का दुर्घटना बीमा है और 45 करोड़ लोगों के पास जन धन बैंक खाते हैं। नि:संदेह, भारत ने एक लंबी यात्रा तय की है, जहां घर-घर में एलपीजी है, आयुष्मान भारत के तहत लोगों का स्वास्थ्य बीमा होता है, राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत किया गया है, पूर्वोत्तर के दूरदराज के इलाकों में कनेक्टिविटी है। कुल मिलाकर भारत आज विकास के पथ पर आगे बढ़ रहा है।
प्रधानमंत्री आवास योजना
एक समय था जब छत की कमी से जूझते परिवार धूप बारिश सहन करने के लिए मजबूर थे। पानी के लिए महिलाओं की लंबी कतारें और संघर्ष किसी से छिपी नहीं थी। साल 2014 में पहली बार केंद्रीय सत्ता की कमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संभाली। इसके बाद देश में शुरू हुआ नए अवसर का नया दौर। छत का सपना संजोए लोगों को मिला गरिमापूर्ण जीवन जीने का अवसर।
लाभार्थी 2.55 करोड़ ग्रामीण क्षेत्र में
59 लाख शहरी क्षेत्र में
पहले हमारे पास कच्चा रूम था।
बरसात में दिक्कत होती थी। आंगन भी नहीं था और शौचालय भी नहीं था। अब पक्का घर मिला, शौचालय भी बना। मैं बहुत खुश हूं। मुझे इन योजनाओं को लेने में कोई दिक्कत नहीं आई। टीवी चैनल से पता चला और फिर म्यूनिसिपल एजेंसी ने जमीन देखी, बाद में मुझे लाभ मिला।
– ताशी तुंडुप, पूर्व सैनिक, लद्दाख
वन नेशन-वन राशन कार्ड
कोविड के दौरान ही ‘वन नेशन, वन राशन कार्ड’ को भी लागू किया गया जिसके बाद राशन कार्डधारी देश के किसी भी सार्वजनिक वितरण प्रणाली की दुकान से राशन ले सकता है। 77 करोड़ राशन कार्ड धारक आज इस योजना के तहत बिना बाधा देश में कहीं भी प्राप्त कर रहे हैं राशन।
बिहार के समस्तीपुर के रहने वाले पंकज शनि पिछले 10 वर्ष से त्रिपुरा में रह रहे हैं। जल जीवन मिशन के जरिए उनके घर में नल कनेक्शन है तो सौभाग्य योजना के जरिए बिजली कनेक्शन भी मिल चुका है। राशन की समस्या का समाधान वन नेशन-वन राशन कार्ड के बाद हो गया। अब पंकज त्रिपुरा में इस योजना के तहत राशन ले रहे हैं।
हर गांव तक बिजली
वर्ष 2014 से शुरु हुआ बदलाव का दौर उन गांवों तक भी पहुंचा जो आजादी के बाद 70 साल तक भी अंधेरे में डूबे हुए थे। ऐसे ही 18 हजार गांवों में निर्धारित समय सीमा से पहले बिजली पहुंची।
स्वच्छ भारत अभियान
स्वच्छ भारत अभियान सामाजिक स्थिति में एक बड़ा बदलाव लेकर आया। लाल किले की प्राचीर से स्वच्छता का आह्वान जन आंदोलन बन गया और प्रधानमंत्री मोदी के संकल्प को जनता का साथ मिला। परिणाम हुआ कि आज देश खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) बना। 11.58 करोड़ शौचालयों के निर्माण से लाभार्थियों को मिली गंदगी से आजादी।
पीएम-उज्ज्वला
वंचितों-शोषितों के सामाजिक-आर्थिक स्थिति को बदलने में प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना काफी मददगार रही और निशुल्क गैस कनेक्शनों ने करोड़ों महिलाओं-परिवारों की जिंदगी बदल दी।
9.22
करोड़ कनेक्शन दिए गए हैं इस योजना के तहत ।
घर मिला, पहले मिट्टी का
घर था। अब घर में शौचालय भी है। अब ताला लगाकर कहीं चले भी जाते हैं। बीए में बेटी, बेटा इंटर में हैं। एक बेटा और एक बेटी नीचे की क्लास में पढ़ते हैं। अब सुविधा मिल गई तो जल्द खाना बनाकर बच्चों को पढ़ने के लिए भेज देते हैं।
– ललिता देवी, बांका, बिहार
पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना
साल 2020 में जब देश के सामने
कोविड-19 महामारी की चुनौती आई तब सरकार मददगार बन सामने आई। राशन की चिंता में परेशान लोगों को राहत दी और शुरू हुई प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना। इस योजना ने लोगों को गरीबी रेखा के नीचे जाने से बचाया और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने भी भारत सरकार की इस योजना की खुले मन से प्रशंसा की।
3.40 लाख करोड़ रुपये का मार्च 2020 से सितंबर 2022 तक होगा खर्च
1,003 लाख मीट्रिक टन अनाज का निशुल्क वितरण
स्वनिधि योजना
महामारी के दौरान आर्थिक चुनौतियों को देखते हुए सरकार ने ठेला, रेहड़ी-पटरी वालों के लिए प्रधानमंत्री स्वनिधि योजना का शुभारंभ किया, ताकि किसी को भी स्वरोजगार से वंचित नहीं होना पड़े। ठेला-रेहड़ी-पटरी वालों को 10 हजार रुपये का ऋण दिया जाता है। 32 लाख रेहड़ी-पटरी वाले आज स्वनिधि योजना के जरिए ऋण हासिल कर आत्मसम्मान से कर रहे हैं जीवन का निर्वहन।
आयुष्मान भारत
सरकार ने स्वास्थ्य सुविधाओं को विस्तार देते हुए आयुष्मान भारत जैसी महत्वाकांक्षी योजना भी शुरू की। योजना से 10 करोड़ परिवारों को मिली सालाना 5 लाख रुपये के मुफ्त इलाज की निश्चिंतता।
18 करोड़ से अधिक आयुष्मान कार्ड अभी किए जा चुके हैं वितरित।
3.44 करोड़ परिवारों को इस योजना के तहत पहली बार मिला अच्छे व मुफ्त इलाज का हक।
पहले हमारे गांव में सुविधा नहीं थी तो बहुत
दिक्कत हुई है। हमारी माता जी को बहुत परेशानी होती थी। हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर बना जिससे मुफ्त जांच और दवा से बहुत लाभ हो रहा है। हमारी माता जी भी स्वस्थ हैं। यह सब आपकी कृपा से हुआ है, इसके लिए आपका शुक्रिया करते हैं। – संतोषी, कलबुर्गी, कर्नाटक
किसानों का मान भी, सम्मान भी
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने सामाजिक सुरक्षा का दायरा बढ़ाते हुए किसानों-श्रमिकों के लिए प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन योजना शुरू किया तो सभी के लिए अटल पेंशन योजना की भी पहल की। साथ ही, किसान सम्मान निधि के तहत देश के किसानों को सालाना छह हजार रुपये की सम्मान निधि भी दी जा रही है।
12.5 करोड़ से ज्यादा किसानों को अब तक मिल चुका है लाभ। साल में 2 हजार रुपए की तीन किस्त के जरिए मदद। 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक की राशि 11 किस्तों में दी जा चुकी है।
सरकार से सुविधा मिली
और कुछ पैसा मजदूरी से जमा किया था, सब मिलाकर पक्का घर बना लिया। पैसा पाने में कोई दिक्कत नहीं हुई। मैं खेतीबाड़ी भी करती हूं। अभी लहसन है, फिर मटर लगाते हैं। मुझे दो-दो हजार रुपये करके 6000 रुपये मिले हैं।
–समा देवी, सिरमौर, हिमाचल प्रदेश
जल जीवन मिशन
आर्थिक-सामाजिक विकास की कड़ी में एक और महत्वपूर्ण योजना जल जीवन मिशन देश में शुरू हुई। पानी की कमी से जूझते इलाकों तक पाइप के जरिए शुद्ध पेयजल पहुंचा और करोड़ों परिवारों के जीवन स्तर में आमूलचूल परिवर्तन आया। 9.6 करोड़ घरों में अब नल से जल आ रहा है। 2019 तक यह संख्या केवल 3.2 करोड़ थी।
स्वामित्व योजना
प्रधानमंत्री स्वामित्व योजना के जरिए संपत्ति विवाद को कम करने और ग्रामीण इलाकों में मालिकाना हक सौंपे जाने की एक बड़ी पहल भी हुई है।
1.35 लाख गांवों में 1 मई 2022 तक ड्रोन से सर्वे का काम पूरा हुआ। 36 लाख से अधिक संपत्ति कार्ड 31 हजार गांवों में वितरित किए जा चुके हैं।
पीएम मुद्रा योजना
रोजगार और उद्यम को बढ़ावा देने के लिए चलाई जा रही प्रधानमंत्री मुद्रा योजना ने देश में 35 करोड़ लोगों के सपने को साकार करने में मदद की है। 3 करोड़ से ज्यादा लोन स्वीकृत किए जा चुके हैं अब तक। 50 हजार से लेकर 10 लाख रुपये तक का जमानत मुक्त ऋण।
मंडप बनाने का काम छोटा था। 7.20 लाख रुपये का लोन मिला। हम पहले छोटा सा धंधा करते थे, लोन मिला तो धंधा बढ़ाया। पहले 8 लोगों को रोजगार दे रखा था, अब 12 लोगों को रोजगार देते हैं। पेमेंट भी डिजिटल करते हैं। कोरोना काल में जिसको जरूरत थी, उसे अनाज दिलाया। मेरी आय ज्यादा है तो आयुष्मान भारत कार्ड नहीं बनवाया लेकिन जो जरूरतमंद थे, उन्हें कार्ड दिलवाया।
– अरविंद, मेहसाणा, गुजरात
बेहद अनूठा रहा कार्यक्रम
शिमला में आयोजित ‘गरीब कल्याण सम्मेलन’ केंद्र सरकार के 8 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में अनूठा कार्यक्रम था। इसे देश भर में राज्यों की राजधानियों, जिला मुख्यालयों और कृषि विज्ञान केंद्रों पर आयोजित किया गया। देशभर के 1500 जगह से लाखों लोग इस कार्यक्रम के हिस्सा बने। यह सम्मेलन सरकार द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न कल्याणकारी कार्यक्रमों के बारे में लोगों की राय प्राप्त करने के प्रयास के तहत देश भर में निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को जनता के साथ सीधे बातचीत करने का अवसर बना। इस सम्मेलन में मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री, राज्य मंत्री, संसद सदस्य, विधान सभा के सदस्य और अन्य निर्वाचित जनप्रतिनिधयों ने देश भर में अपने-अपने स्थानों पर जनता से सीधे संवाद किया और शिमला में प्रधानमंत्री मोदी के शामिल होने के साथ ही यह आयोजन राष्ट्रीय बन गया। इस दौरान प्रधानमंत्री ने भी केंद्र सरकार के 9 मंत्रालयों-विभागों से जुड़ीं दर्जन भर योजनाओं के लाभार्थियों से सीधा संवाद किया।
राष्ट्रीय पोषण अभियान
स्वच्छता और जल मिशन के साथ जरूरत थी कुपोषण के कुचक्र को तोड़ने की। सरकार ने चुनौती का समाधान करने के लिए साल 2017 में मातृ वंदना योजना और साल 2018 में राष्ट्रीय पोषण अभियान की शुरुआत की। गर्भवती महिला को 6 हजार रुपये की सहायता दी जाती है। राष्ट्रीय पोषण अभियान के कुल लाभार्थी 11 करोड़ हैं।
जन औषधि परियोजना
अब एक ओर जहां गरीबों का इलाज आसानी से हो पा रहा है वहीं जन औषधि केंद्रों ने मरीजों तक सस्ती दवाएं पहुंचाने में बड़ी भूमिका निभाई है। लोगों को जनऔषधि योजना के जरिए वित्त वर्ष 2021-22 में 5360 करोड़ रुपये की बचत हुई। 8700 से अधिक जनऔषधि केंद्र मार्च 2022 तक पूरे देश में खोले जा चुके हैं।
करोड़ों लोगों को 4 लाख रुपये तक की दुर्घटना और जीवन बीमा की सुविधा मिली। करोड़ों लोगों को 60 वर्ष की आयु के बाद एक निश्चित पेंशन की व्यवस्था मिली। अपना पक्का घर, शौचालय, गैस कनेक्शन, बिजली कनेक्शन, पानी का कनेक्शन, बैंक में खाता, ऐसी सुविधाओं के लिए तो गरीब की सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट-काट कर जिंदगी पूरी हो जाती थी। वो हार जाते थे। हमारी सरकार ने इन सारी परिस्थितियों को बदला। मेरा सपना है पूर्णता, शत-प्रतिशत लक्ष्य की तरफ हम आगे बढ़ें।
– नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री
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गुजरात को सौगात
‘सहकार से समृद्धि’ के साथ ‘गरीब कल्याण’ का लक्ष्य
भारतीय संस्कृति में समरसता व सामाजिक सहयोग के विचार को महत्व दिया गया है। सहकारिता का विकास इसी भावना के अनुरूप है। गुजरात वह राज्य है जिसे सहकारिता के लिए देश में आदर्श माना जाता है। यहां 84,000 सोसाइटियों से लगभग 231 लाख सदस्य जुड़े हुए हैं। ऐसे में देश को पहला सहकारिता मंत्रालय देने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 28 मई को जब अपने गृह राज्य गुजरात पहुंचे तो एक बार फिर उन्होंने ‘सहकार से समृद्धि’ विषय पर अपना विजन देश के सामने रखा। इसके अलावा किसानों के हित में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए उन्होंने इफको कलाेल में नवनिर्मित नैनो लिक्विड यूरिया के संयंत्र का उद्घाटन किया तो राजकोट में केडीपी मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल का दौरा भी किया…
आत्मनिर्भरता में भारत की अनेक मुश्किलों का हल है। आत्मनिर्भरता का एक बेहतरीन मॉडल, सहकार भी है। ‘सहकारिता से समृद्धि की ओर’ की परिकल्पना को साकार करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने, न सिर्फ अलग से सहकारिता मंत्रालय गठित किया बल्कि इस मंत्रालय की जिम्मेदारी केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को सौंपी। सहकार की सबसे बड़ी शक्ति लोगों के विश्वास, सहयोग, सामूहिक शक्ति और सबके सामर्थ्य से संगठन के सामर्थ्य को बढ़ाना है। यही आजादी के अमृतकाल में भारत की सफलता की गारंटी है।
सहकारिता के सफल प्रयोगों में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त करने के कई मॉडल हैं, जिसमें गुजरात के अमूल इंडिया और लिज्जत पापड़ की सफलता सबके सामने हैं। गुजरात में सहकारिता का मजबूत उदाहरण अमूल दूध है। इसी तरह गुजरात मूल की जिस महिला ने लिज्जत पापड़ की शुरुआत की, वो भी मल्टीब्रांड बन गया है। श्री महिला गृह उद्योग लिज्जत पापड़ की शुरुआत जसवंतीबेन ने की थी। वर्तमान में मुंबई में रहने वाली जसवंतीबेन को हाल ही में पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया है।
भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक है जिसमें गुजरात की बहुत बड़ी हिस्सेदारी है। आज भारत एक साल में लगभग 8 लाख करोड़ रुपये का दूध उत्पादन करता है। यहां करीब साढ़े पांच हजार मिल्क को-ऑपरेटिव सोसायटी महिलाएं चला रही हैं। इसी तरह पशुपालन का पूरा सेक्टर करीब 9 लाख करोड़ रुपये का है जो भारत के छोटे किसानों, भूमिहीन, श्रमिकों के लिए बहुत बड़ा संबल है। सहकारिता को ताकत देने के लिए सरकार ने सहकारी समितियों से जुड़े टैक्स में कटौती करने के अलावा इसे किसान उत्पादक संघ के बराबर कर दिया है।
त्मनिर्भरता में भारत की अनेक मुश्किलों का हल है। आत्मनिर्भरता का एक बेहतरीन मॉडल, सहकार भी है। ‘सहकारिता से समृद्धि की ओर’ की परिकल्पना को साकार करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने, न सिर्फ अलग से सहकारिता मंत्रालय गठित किया बल्कि इस मंत्रालय की जिम्मेदारी केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को सौंपी। सहकार की सबसे बड़ी शक्ति लोगों के विश्वास, सहयोग, सामूहिक शक्ति और सबके सामर्थ्य से संगठन के सामर्थ्य को बढ़ाना है। यही आजादी के अमृतकाल में भारत की सफलता की गारंटी है।
सहकारिता के सफल प्रयोगों में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त करने के कई मॉडल हैं, जिसमें गुजरात के अमूल इंडिया और लिज्जत पापड़ की सफलता सबके सामने हैं। गुजरात में सहकारिता का मजबूत उदाहरण अमूल दूध है। इसी तरह गुजरात मूल की जिस महिला ने लिज्जत पापड़ की शुरुआत की, वो भी मल्टीब्रांड बन गया है। श्री महिला गृह उद्योग लिज्जत पापड़ की शुरुआत जसवंतीबेन ने की थी। वर्तमान में मुंबई में रहने वाली जसवंतीबेन को हाल ही में पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया है।
भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक है जिसमें गुजरात की बहुत बड़ी हिस्सेदारी है। आज भारत एक साल में लगभग 8 लाख करोड़ रुपये का दूध उत्पादन करता है। यहां करीब साढ़े पांच हजार मिल्क को-ऑपरेटिव सोसायटी महिलाएं चला रही हैं। इसी तरह पशुपालन का पूरा सेक्टर करीब 9 लाख करोड़ रुपये का है जो भारत के छोटे किसानों, भूमिहीन, श्रमिकों के लिए बहुत बड़ा संबल है। सहकारिता को ताकत देने के लिए सरकार ने सहकारी समितियों से जुड़े टैक्स में कटौती करने के अलावा इसे किसान उत्पादक संघ के बराबर कर दिया है।
गुजरात के संस्कारों का जिक्र, उपलब्धियों के साथ लक्ष्य पर बात
प्रधानमंत्री मोदी ने राजकोट के एटकोट स्थित नवनिर्मित मातुश्री केडीपी मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल का भी दौरा किया। वर्तमान केंद्र सरकार के 8 वर्ष पूरे होने के ठीक दो दिन पहले आयोजित इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने गुजरात की धरती, संस्कार और वहां की सीख का जिक्र किया तो 8 वर्ष की सेवा और सुशासन में गरीब कल्याण को दी गई प्राथमिकता को भी दोहराया। गुजरात की धरती को नमन करते हुए उन्होंन कहा, “आज जब गुजरात की धरती पर आया हूं तो मैं सिर झुका कर गुजरात के सभी नागरिकों का आदर करना चाहता हूं। आपने मुझे जो संस्कार दिए, आपने मुझे जो शिक्षा दी, आपने जो मुझे समाज के लिए कैसे जीना चाहिए, ये जो सब बातें सिखाईं उसी की बदौलत गत आठ वर्ष मातृभूमि की सेवा में मैंने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है।”
केंद्र सरकार के 8 वर्ष के शासन का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “स्वदेशी समाधानों के जरिये अर्थव्यवस्था मजबूत करने के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के मार्ग पर आगे बढ़ती सरकार में अब 3 करोड़ से ज्यादा परिवारों को पक्का घर मिला, 10 करोड़ से ज्यादा परिवार खुले में शौच से मुक्त हुए, 9 करोड़ से ज्यादा महिलाओं को गैस कनेक्शन मिला, 2.5 करोड़ से ज्यादा परिवारों को बिजली और 6 करोड़ से अधिक परिवारों को पानी कनेक्शन मिला तो 50 करोड़ से अधिक लाभार्थियों को 5 लाख रुपये तक का नि:शुल्क स्वास्थ्य बीमा मिला है। ये सिर्फ आंकड़े नहीं हैं बल्कि गरीबों की गरिमा और देश की सेवा के लिए सरकार के समर्पण का प्रमाण हैं। 2001 में जब गुजरात के लोगों ने मौका दिया, उस समय केवल 9 मेडिकल कॉलेज थे, अब गुजरात में 30 मेडिकल कॉलेज हैं। मैं गुजरात और देश के हर जिले में एक मेडिकल कॉलेज देखना चाहता हूं। हमने नियमों में बदलाव किए हैं और अब मेडिकल व इंजीनियरिंग के छात्र अपनी मातृभाषा में पढ़ सकेंगे।”
‘पूज्य बापू और सरदार वल्लभ भाई पटेल की इस पवित्र धरती के संस्कार हैं कि आठ साल में गलती से भी ऐसा कुछ नहीं होने दिया है, न ऐसा कुछ किया है जिसके कारण आपको या देश के किसी नागरिक को अपना सिर झुकाना पड़े।
-नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री
फर्टिलाइजर के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर एक कदम…
भारत फर्टिलाइजर का दूसरा सबसे बड़ा उपयोगकर्ता है, जबकि इसके उत्पादन के मामले में दुनिया में तीसरे नंबर पर है। यूरिया के लिए 7-8 साल पहले तक किसानों की कतार और लाठियां खाने की मजबूरी कई बार मीडिया की सुर्खियां बनते देखी जाती थी। अपनी जरूरत का एक चौथाई फर्टिलाइजर हम आयात करते हैं। पोटाश और फॉस्फेट तो करीब-करीब शत-प्रतिशत विदेशों से लाना पड़ता है। भारत के किसान को दिक्कत ना हो इसके लिए पिछले साल केंद्र सरकार ने 1 लाख 60 हजार करोड़ रुपये की सब्सिडी फर्टिलाइजर में दी है। किसानों को मिलने वाली ये राहत इस साल लगभग 2 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा होने वाली है। इन्हीं समस्याओं के समाधान के लिए केंद्र सरकार ने नैनो लिक्विड यूरिया की ओर कदम बढ़ाया है। इसकी आधा लीटर की बोतल एक बोरी यूरिया की जरूरत को पूरा करती है। गुजरात के इफको कलोल में इसी नैनो लिक्विड यूरिया के संयत्र का निर्माण 175 करोड़ रुपये की लागत से किया गया है। अपने गुजरात दौरे पर इस संयंत्र का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “नैनो यूरिया से खर्च कम होगा और बाजार से घर लाना भी आसान हो जाएगा। छोटे किसानों के लिए ये बहुत बड़ा संबल है।’’ इस प्लांट से प्रतिदिन 500 मिलीलीटर की लगभग 1.5 लाख बोतल का उत्पादन होगा, भविष्य में ऐसे 8 और संयंत्र स्थापित किए जाएंगे। यूरिया को लेकर विदेशी निर्भरता में कमी होगी और देश में बचत होगी। भविष्य में यह नवाचार अन्य नैनो उर्वरक भी उपलब्ध कराएगा।”n
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तमिलनाडु को उपहार
तमिलनाडु को 8 साल में एक लाख करोड़ रुपये का इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट
इंफ्रास्ट्रक्चर सिर्फ आंकड़े नहीं,
देश के विकास का आधार
इंफ्रास्ट्रक्चर को लेकर भारत के शीर्ष नेतृत्व का विजन क्या है, यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इन शब्दों में साफ झलकता है। यही वजह है कि देश में इंफ्रास्ट्रक्चर की मजबूती पर अब हर क्षेत्र में काम चल रहा है। अब इंफ्रास्ट्रक्चर का अर्थ सिर्फ सड़क, बिजली और पानी नहीं बल्कि आज भारत गैस पाइपलाइन नेटवर्क को बढ़ाने पर काम कर रहा है। आई-वेज पर काम चल रहा है। हर गांव तक हाई-स्पीड इंटरनेट पहुंचाना सरकार की परिकल्पना है। देशभर में आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण की इसी कड़ी में 26 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चेन्नई में 31, 530 करोड़ रुपये की लागत वाली 11 महत्वपूर्ण परियोजनाओं का किया शिलान्यास और लोकार्पण…
इंफ्रास्ट्रक्चर सिर्फ पूंजीगत संपत्ति बनाने और उस पर लंबी अवधि में रिटर्न कमाने का साधन तक नहीं है। यह सिर्फ आंकड़ों के बारे में भी नहीं है, यह लोगों के विषय में है। यह नागरिकों को समान तरीके से अत्यधिक गुणवत्तापूर्ण, भरोसेमंद और टिकाऊ सेवाएं प्रदान करने का विषय है। आंकड़े बताते हैं कि पिछले आठ वर्ष में तमिलनाडु में ही 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक के इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट को केंद्र सरकार की तरफ से स्वीकृति दी गई है।
चेन्नई के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में बैंगलुरू-चेन्नई एक्सप्रेसवे सहित अन्य विकास कार्यों की आधारशिला रखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, “हमारा लक्ष्य गरीब कल्याण की उपलब्धि है। सामाजिक अवसंरचना पर हमारे जोर देने से ‘सर्वजन हिताय और सर्वजन सुखाय’ के सिद्धांत पर हमारी आस्था स्पष्ट होती है। सरकार प्रमुख योजनाओं के संदर्भ में उन्हें परिपूर्णता तक ले जाने के लिये काम कर रही है। कोई भी सेक्टर ले लीजिये – शौचालय, आवास, वित्तीय समावेश…हम परिपूर्णता के लिये काम कर रहे हैं। जब यह पूरा हो जायेगा, तब इसके दायरे से किसी के बाहर रह जाने की कोई गुंजाइश नहीं बचेगी।”
5 परियाजनाओं का लोकार्पण, 6 परियोजनाअों के साथ 5 रेलवे स्टेशनों के आधुनिकीकरण की आधारशिला
प्रधानमंत्री ने 2960 करोड़ रुपये से अधिक की पांच परियोजनाओं का लोकार्पण किया। 75 किलोमीटर लंबी मदुरै-टेनी (रेल आमान परिवर्तन) परियोजना, जो क्षेत्र में आवागमन को सहज बनाएगी और पर्यटन को बढ़ावा देगी। तंबरम-चेंगलपट्टू के बीच 30 किमी लंबी तीसरी रेलवे लाइन से और अधिक उपनगरीय रेल सेवायें चलाने में सहायता मिलेगी। ईटीबी पीएनएमटी प्राकृतिक गैस पाइपलाइन के 115 किमी लंबे एन्नोर-चेंगलपट्टू सेक्शन और 271 किमी लंबे तिरुवल्लुर-बेंगलुरु सेक्शन के शुरू होने से उपभोक्ताओं सहित तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के उद्योगों को भी प्राकृतिक गैस की आपूर्ति की सुविधा मिलेगी। शहरी आवास योजना के तहत लाइट हाउस परियोजना चेन्नई के 1152 मकानों का उद्घाटन किया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छह परियोजनाओं की आधारशिला भी रखी, जिन्हें 28,540 करोड़ रुपये से अधिक की लागत से बनाया जाना है। पांच रेलवे स्टेशनों की 188 करोड़ रुपये की लागत से पुनर्विकास के लिये आधारशिला रखी गई, जिसमें चेन्नई एगमोर, रामेश्वरम, मदुरै, कटपाडी और कन्याकुमारी शामिल हैं। चेन्नई में लगभग 1430 करोड़ रुपये के मल्टी-मॉडल लॉजिस्टिक पार्क की भी आधारशिला रखी। इसके जरिए निर्बाध और सरल माल आवागमन सहित कई तरह की अन्य सुविधायें मिलेंगी। n
इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस का दीक्षांत समारोह
भागीदारी से ट्रांसफॉर्मेशन: व्यक्तिगत लक्ष्यों को देश के लक्ष्यों के साथ जोड़िये
“भारत जिस स्केल पर लोकतांत्रिक तरीके से अनेक नीति या निर्णय लागू करता है, वो पूरी दुनिया के लिए अध्ययन का विषय बन जाता है। हम अक्सर इंडियन सॉल्यूशंस को ग्लोबली इंप्लीमेंट होते हुए देखते हैं। इसलिए, मैं आज इस महत्वपूर्ण दिन पर आपसे कहूंगा कि आप अपने व्यक्तिगत लक्ष्यों को, देश के लक्ष्यों के साथ जोड़िए।”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हैदराबाद स्थित इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस के 20 साल पूरे होने और पीजीपी कक्षा के दीक्षांत समारोह में इन शब्दों के साथ देशहित में भविष्य के बिजनेस नेतृत्वकर्ताओं से सहयोग मांगा। उन्होंने कहा, ‘आप अपने व्यक्तिगत लक्ष्यों को, देश के लक्ष्यों के साथ जोड़िए। आप जो सीखते हैं, आपका जो भी अनुभव होता है, आप जो भी पहल करते हैं, उससे देशहित कैसे सधेगा, इस बारे में हमेशा सोचना चाहिए, जरूर सोचिये।’ देश में ईज ऑफ डूइंग बिजनेस, डेढ़ हजार से ज्यादा पुराने कानूनों और हजारों अनुपालनाओं को समाप्त करना, एक देश-एक टैक्स की जीएसटी जैसी पारदर्शी व्यवस्था, उद्यमशीलता और नवाचार को बढ़ावा, नई स्टार्ट अप पॉलिसी, ड्रोन पॉलिसी, नेशनल एजुकेशन पॉलिसी जैसे बदलाव के साथ युवा शक्ति की तरफ से आने वाले समाधान को लागू करने और उनके विचारों को देश की ताकत बनाने के लिए वर्तमान सरकार निरंतर तकनीक और पारदर्शिता के साथ आगे बढ़ रही है। प्रधानमंत्री ने कहा, पिछले आठ वर्षों में देश ने जो इच्छाशक्ति दिखाई है, उसकी वजह से एक और बड़ा बदलाव आया है। अब ब्यूरोक्रेसी भी पूरी शक्ति से सुधार(Reforms) को जमीन पर उतारने में जुटी है। सिस्टम वही है, लेकिन अब नतीजे बहुत संतोषजनक मिल रहे हैं। इन आठ वर्षों में सबसे बड़ी प्रेरणा जनभागीदारी बनी है। देश की जनता खुद आगे बढ़कर सुधार को गति दे रही है। जब जनता सहयोग करती है तो नतीजे अवश्य और जल्दी मिलते हैं। यानि सरकारी व्यवस्था में सरकार रिफॉर्म करती है, ब्यूरोक्रेसी परफॉर्म करती है और जनता के सहयोग से ट्रांसफॉर्मेशन होता है। ये डायनिमिक्स है, वो आपके लिए रिसर्च का विषय है। देश के बड़े संस्थान को इसका अध्ययन कर दुनिया के सामने परिणाम लाना चाहिए। n
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भारत का परचम
खेलों के विश्व पटल पर
भारत का जूनून
तकनीक हो, निर्यात हो, मेडिकल सेक्टर हो या फिर साहित्य से लेकर अर्थव्यवस्था की बात हो…भारत का दखल अब हर जगह बढ़ रहा है…और ऐसा ही हो रहा है अब खेल के मैदान में भी। जहां, कुछ एक खेल स्पर्धाओं को छोड़कर बाकियों में दशकों तक रही ‘घर में शेर’ की छवि को तोड़ अब जीतने की इच्छा और आत्मविश्वास से लबरेज भारतीय खिलाड़ियों ने अपना दमखम दुनिया को दिखाया है। 73 साल के इतिहास में पहली बार थॉमस कप जीतने से लेकर बधिर ओलंपिक में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन और फिर 25 साल की निखत जरीन की वर्ल्ड बॉक्सिंग में स्वर्णिम सफलता, युवा भारत की विश्व पटल पर अपनी छाप छोड़ने की ललक भी ऐसे ही जूनून का प्रतीक है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शब्दों में, “यह जुनून हमारे देश की प्रगति के नए द्वार खोलेगा”
आज से 39 वर्ष पहले 25 जून को इंग्लैंड में लॉर्ड्स के मैदान पर भारत की युवा क्रिकेट टीम ने एक इतिहास लिखा था, पहली बार क्रिकेट विश्व कप जीतने का। यह जीत इसलिए भी खास थी, क्योंकि क्रिकेट की दुनिया के किसी विशेषज्ञ ने भारत के इस प्रदर्शन की कल्पना भी नहीं की थी। लेकिन, भारत जीता और क्रिकेट के मैदान पर मजबूत ताकत बनकर उभरा। लेकिन अब क्रिकेट नहीं, बल्कि उन खेलों की भी बारी है, जहां भारत के खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर भी कोई इससे पहले चर्चा नहीं करता था। मई के महीने में ऐसा ही कुछ हुआ। जब 73 साल में पहली बार भारत की बैडमिंटन टीम ने थॉमस कप का पुरस्कार अपने नाम किया। वहीं, 1 से 15 मई तक ब्राजील के कैक्सियस डो सुल में आयोजित बधिर ओलंपिक में भारतीय खिलाड़ियों ने अभी तक के इतिहास का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए कुल 16 मेडल देश के खाते में डाले। इसमें 8 गोल्ड, एक सिल्वर और 7 ब्राॅन्ज मेडल शामिल हैं। खेल के मैदान से तीसरी अच्छी खबर 19 मई को आई, जब तुर्की में आयोजित विश्व बॉक्सिंग चैंपियनशिप में भारत की निखत जरीन ने स्वर्ण पदक तो मनीषा मौन और परवीन हुड्डा ने कांस्य पदक जीता।
थॉमस कप की जीत आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा
थॉमस कप जीत इसलिए भी खास है, क्योंकि भारत ने फाइनल मुकाबले में बैडमिंटन की दुनिया की सर्वश्रेष्ठ टीम इंडोनेशिया को एक तरफा मुकाबले में 3-0 से हराया। अब तक आयोजित थॉमस कप टूर्नामेंट में केवल छह देशों ने खिताब जीता है। इंडोनेशिया सबसे सफल टीम है, जिसने 14 बार जीत हासिल की है। चीन, जिसने 1982 तक प्रतिस्पर्धा में भाग लेना शुरू नहीं किया था, 10 खिताब जीते हैं। मलेशिया ने 5 खिताब जीते हैं। डेनमार्क, भारत और जापान के पास एक-एक खिताब है। भारतीय टीम की जीत के फौरन बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खिलाड़ियों को फोन कर बधाई दी तो 22 मई को प्रधानमंत्री आवास पर भारतीय बैडमिंटन टीम की मेजबानी की। खिलाड़ियों से बातचीत में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “इस टीम ने थॉमस कप जीतकर देश में बहुत ऊर्जा का संचार किया है। सात दशकों का लंबा इंतजार आखिरकार खत्म हो गया। जो कोई भी बैडमिंटन समझता है, उसने इसके बारे में सपना देखा होगा, एक सपना, जो आपने पूरा किया है। इस तरह की सफलताएं, देश के पूरे खेल इकोसिस्टम में बहुत अधिक ऊर्जा और आत्मविश्वास का संचार करती हैं। आपकी जीत कई पीढ़ियों को खेलों के लिए प्रेरित कर रही है।” उबर कप में क्वार्टर फाइनल तक पहुंचने वाली महिला बैडमिंटन टीम से भी उन्होंने कहा, “हमारी महिला टीम ने बार-बार अपनी उत्कृष्टता और प्रतिभा सिद्ध की है; बस समय की बात है, इस बार नहीं, तो अगली बार जरूर जीतेंगे।”
बधिर ओलंपिक: भारत का सबसे अच्छा प्रदर्शन
बधिर ओलंपिक में भारत पदक तालिका में 16 पदक के साथ नौवें स्थान पर रहा। इसमें धनुष श्रीकांत, अभिनव देशवाल ने 10 मीटर एयर राइफल, बैंडमिंटन की मिक्स टीम स्पर्धा, धनुष श्रीकांत और प्रियशा देशमुख ने मिक्स्ड टीम 10 मीटर एयर राइफल, जेरलिन जयराचगन ने बैडमिंटन एकल, दीक्षा डागर ने महिला गोल्फ, जेरलिन जयराचगन और अभिनव शर्मा मिश्रित युगल बैडमिंटन, सुमित दहिया ने कुश्ती की स्पर्धा में स्वर्ण पदक अपने नाम किए। पृथ्वी शेखर व धनंजय दुबे ने रजत, जबकि शौर्य सैनी, वेदिका शर्मा, पृथ्वी शेखर, जाफरीन शेख, वीरेंद्र सिंह और अमित कृष्ण ने कांस्य पदक जीते। इससे पहले बधिर ओलंपिक में भारत का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 1993 में रहा था, जब भारतीय खिलाड़ियों ने कुल सात पदक जीते थे। इसमें पांच स्वर्ण और दो कांस्य पदक शामिल थे। 21 मई को अपने आवास पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन खिलाड़ियों की मेजबानी करते हुए कहा, “जब कोई दिव्यांग अंतरराष्ट्रीय खेलों में उत्कृष्ट प्रदर्शन करता है, तो उनकी यह उपलब्धि खेल जगत से परे भी गूंजती है। यह देश की संस्कृति को दर्शाता है और इसके साथ ही यह उनकी उत्कृष्ट क्षमताओं के प्रति समस्त देशवासियों की संवेदनशीलता, भावना और सम्मान को भी दर्शाता है। यही कारण है कि सकारात्मक छवि बनाने में आपका योगदान अन्य खिलाड़ियों की तुलना में कई गुना अधिक है।” n
महिला बॉक्सिंग की विश्व चैंपियन
उन्होंने मुझे इतनी बुरी तरह से कैसे हरा दिया? मैं अगली बार इसका जवाब दूंगी…ये बात भारतीय बॉक्सर निखत जरीन ने 12 साल की उम्र में कही थी, जब पहली बार वो मुक्केबाजी करने उतरी तो उन्हें काफी चोट आईं। आंखों के नीचे काला घेरा बन गया था और नाक से खून बह रहा था। इस मुकाबले के बाद चोटिल निखत को देखकर उनकी मां की आंखों में आंसू आ गए थे, लेकिन निखत ने पहले दिन मिली हार को कभी हल्के में नहीं लिया। हो सकता है, उनके उसी रवैये ने उन्हें 20 मई, 2022 को तुर्की के इस्तांबुल में आयोजित महिला मुक्केबाजी विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने में मदद की। निखत जरीन, मैरी कॉम, सरिता देवी, जेनी आरएल और लेख केसी सहित उन भारतीय मुक्केबाजों की एक विशेष सूची में शामिल हो गई हैं, जो विश्व चैंपियन बनी हैं। उनकी इस शानदार उपलब्धि पर खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उन्हें बधाई दी है।
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पीएम स्वनिधि योजना
रेहड़ी-पटरी वालों के लिए पहली योजना
सस्ते लोन से तय करें स्वाभिमान की यात्रा
देश का प्रयास है कि हर एक देशवासी का जीवन आसान हो, हर एक देशवासी
समर्थ हो, सशक्त हो और सबसे बड़ी बात आत्मनिर्भर हो। समाज में उपेक्षित अंतिम पंक्ति
में बैठा ‘कोई पीछे ना छूटे’ इसलिए शीर्ष नेतृत्व के ‘सबका साथ-सबका विकास, सबका
विश्वास-सबका प्रयास’ के आदर्श वाक्य को ध्यान में रखकर हर वर्ग के लिए योजनाएं न सिर्फ बनाई जा रही हैं बल्कि अंतिम छोर तक तकनीक से जोड़कर लागू भी की जा रही हैं। ऐसी ही योजना है पीएम स्वनिधि, जो गरीबों को तकनीक और आर्थिक समावेशन के साथ बना रही है सशक्त और समृद्ध……
हमारे देश में रेहड़ी-पटरी वालों, ठेला चलाने वालों के वित्तीय समावेशन के बारे में पहले नहीं सोचा गया था। इन्हें कारोबार बढ़ाने के लिए बैंकों से मदद असंभव थी। इसलिए ये साहूकारों के चंगुल में फंसते थे, आधा पैसा ब्याज में चला जाता था। इसी हालात को समझते हुए जून, 2020 में सरकार ने पीएम स्वनिधि योजना की शुरुआत की ताकि वो लोग नई शुरुआत कर सकें, अपना काम फिर शुरू कर सकें, उन्हें आसानी से पूंजी मिले। उनको बाहर बहुत ब्याज दे कर रुपये लेने के लिए मजबूर न होना पड़े।
देश के छोटे-बड़े शहरों में, करीब 32 लाख से अधिक रेहड़ी-पटरी और ठेले वालों को इस योजना के तहत मदद दी जा चुकी है। योजना में करीब 11.45 लाख लोन लेने वालों ने किस्तों में ये पैसा लौटा भी दिया है, 20 हजार रुपये के दूसरे लोन के लिए पात्र बन गए हैं। पौने तीन लाख से अधिक ऐसे हैं जिन्होंने कारोबार बढ़ाने के लिए लोन की दूसरी किस्त भी ले ली है। ये अब डिजिटल लेन-देन करके न सिर्फ कैशबैक ले रहे हैं बल्कि इनकी डिजिटल हिस्ट्री भी बन रही है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक कार्यक्रम में कहा था, “यह हमारे रेहड़ी पटरी वालों को इतना बड़ा पैसों का कारोबार बिना ब्याज के मिल जाए तो मैं पक्का मानता हूं वह बहुत अच्छा कर लेंगे। अपने बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान देंगे, वह अच्छी क्वालिटी का माल बेचना शुरू कर देंगे, ज्यादा बड़ा व्यापार करना शुरू कर देंगे, और आपके नगर में लोगों की सेवा अच्छी होगी।”
पीएम स्वनिधि योजना तकनीक से जोड़कर इतनी सरल बनाई गई है कि सामान्य से सामान्य व्यक्ति आसानी से जुड़ सके। कागज जमा करने के लिए लाइन में खड़ा नहीं होना पड़ता, कॉमन सर्विस सेंटर, स्थानीय शहरी निकाय या बैंक में जाकर औपचारिकताएं पूरी की जा सकती हैं। सही समय पर लोन भुगतान और डिजिटल भुगतान को अपनाकर 7 फीसदी के ब्याज की सब्सिडी ले सकते हैं। इसके अलावा ‘स्वनिधि से समृद्धि’ कार्यक्रम को भारत सरकार की 8 कल्याणकारी योजनाओं से भी जोड़ा गया है ताकि रेहड़ी पटरी वालों का जीवन आसान बने। ये पहली बार हुआ है कि लाखों रेहड़ी-पटरी वालों को सही मायने में सिस्टम से जोड़ा गया है, उनको एक पहचान मिली है। स्वनिधि योजना, स्वनिधि से स्वरोजगार, स्वरोजगार से स्वावलंबन, और स्वावलंबन से स्वाभिमान की यात्रा का अहम पड़ाव है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने 27 अप्रैल 2022 को रेहड़ी पटरी वालों को बिना किसी जमानत के सस्ते ऋ ण वाली योजना को दिसंबर, 2024 तक मंजूरी दे दी है। इस योजना में ऋ ण देने के लिये 5,000 करोड़ रुपये की रकम रखी है जिसके बाद कुल राशि बढ़कर 8,100 करोड़ रुपये हो गई है। जिससे रेहड़ी-पटरी वालों को कार्यशील पूंजी मिलेगी, ताकि वे अपने व्यापार को बढ़ा सकें और उन्हें आत्मनिर्भर बनाया जा सकेगा। उम्मीद जताई गई है कि इससे लगभग 1.2 करोड़ लोगों को लाभ होगा।
‘स्वनिधि से समृद्धि’
nपीएम स्वनिधि का उद्देश्य, कोविड -19 महामारी के दौरान प्रभावित फुटपाथ पर सामान बेचने वालों को फिर से अपना करोबार शुरू करने के लिए कम ब्याज दर और आसान शर्तों पर गारंटीमुक्त पूंजी ऋण की सुविधा उपलब्ध कराना है।
nपहली बार 10 हजार रुपये का ऋण दिया जाता है। इस ऋण का सही समय से भुगतान करने पर दूसरी बार में 20 हजार रुपये और तीसरी किस्त में 50 हजार रुपये ऋण की सुविधा दी जाती है।
nप्रत्येक 3 महीने में वार्षिक 7% दर से ब्याज सब्सिडी के तौर पर प्रोत्साहन दिया जाता है।
nडिजिटल लेन-देन को प्रोत्साहन देने के लिए मासिक 100 रुपये और वार्षिक 1,200 तक का कैशबैक दिया जाता है।
n वेबसाइट https://pmsvanidhi.mohua.gov.in पर इस योजना की अधिक जानकारी के साथ लोन के लिए आवेदन किया जा सकता है।
लाभार्थी बोले
ये डूबते में तिनके
का सहारा जैसा
लॉकडाउन के कारण हमारी आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर हो गई थी। मेरे पति कार मैकेनिक हैं, बचत खर्च हो गई थी, हमारे पास कुछ नहीं बचा था। जानकारी मिलने पर ऑनलाइन आवेदन किया। बैंक से मुझे कॉल आया साइन करने के लिए और फिर 10 हजार रुपये का लोन मिल गया। मैंने उसे चुका भी दिया, अब 20 हजार का भी लोन मिला है। डिजिटल जमाना है तो मेरा क्यूआर कोड स्कैन करके लोग पैसे भेजते हैं, जो सीधे खाते में पहुंच जाता है। -नाजमीन, मध्य प्रदेश
मैं लइया, चना, मूंगफली का ठेला लगाता हूं। 10 हजार रुपये लोन लेकर डेढ़ गुना लइया, चना, मूंगफली लाकर रख लिया। पहले बार-बार बाजार जाना पड़ता था, अब थोक में सामान खरीदने लगा हूं। अब रोज की बजाय हफ्ते में एक दिन बाजार जाता हूं। -विजय बहादुर, लखनऊ
कुछ इस तरह बढ़ रही है योजना
nवित्तीय वर्ष 2020-21 में 113.6 करोड़ रुपये आवंटित, वित्तीय वर्ष 2021-22 में 200 करोड़ रुपये आवंटित किए गए जिसे संशोधित अनुमान में बढ़ाकर 300 करोड़ रुपये किया गया।
nचालू वित्त वर्ष 2022-2023 में 150 करोड़ रुपये का प्रावधान, हालांकि जरूरत के हिसाब से बजट संशोधित अनुमान में बढ़ाए जाते हैं।
nकैबिनेट ने योजना को दिसंबर, 2024 तक जारी रखने की मंजूरी दी है। किफायती ऋण की राशि अब 8100 करोड़ रु. हो गई है जिससे लगभग 1.2 करोड़ लोगों को लाभ होगा।
nयोजना में 25 अप्रैल, 2022 तक 31.9 लाख ऋण को मंजूरी दी गई जबकि 2931 करोड़ रुपये के 29.6 लाख ऋण वितरित किए गए हैं।
nलाभार्थी रेहड़ी-पटरी वालों ने 13.5 करोड़ से अधिक डिजिटल लेन-देन किया है जिससे उन्हें 10 करोड़ रुपये का कैश-बैक भी मिला।
nसब्सिडी ब्याज के रूप में 51 करोड़ रुपये की रकम का भुगतान किया गया।
‘स्वनिधि से समृद्धि’ कार्यक्रम से अंतिम
छोर तक पहुंच रहा है फायदा
nइस कार्यक्रम में पीएम स्वनिधि के लाभार्थी और उसके परिवार की भारत सरकार की 8 कल्याणकारी योजनाओं को ध्यान में रखकर पात्रता का आकलन और पात्र के लिए योजनाओं को मंजूरी देने के लिए सामाजिक-आर्थिक प्रोफाइलिंग की जाती है।
nइस कार्यक्रम में करीब 35 लाख स्ट्रीट वेंडर और उनके परिवार को शामिल किया गया।
nआवासन और शहरी कार्य मंत्रालय ने 4 जनवरी, 2021 को 125 चयनित शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) में पीएम स्वनिधि योजना के तहत ‘स्वनिधि से समृद्धि’ कार्यक्रम शुरू किया है।
n’स्वनिधि से समृद्धि’ योजना फुटपाथ पर सामान बेचने वालों के चहुंमुखी विकास और सामाजिक-आर्थिक उत्थान के लिए सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करती है। प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति योजना के तहत 16 लाख बीमा लाभ और प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन योजना के तहत 2.7 लाख पेंशन लाभ सहित 22.5 लाख योजनाओं को मंजूरी दी जा चुकी है।
n चरण-1 की सफलता को देखते हुए 2022-23 में 20 लाख योजना स्वीकृतियों के लक्ष्य के साथ 28 लाख फुटपाथ पर सामान बेचने वाले और उनके परिवारों को कवर करने के उद्देश्य से देश के अतिरिक्त 126 शहरों में इस योजना का विस्तार शुरू किया है। n
साप्ताहिक बाजारों की रौनक हमारे रेहड़ी पटरी वाले ही बढ़ाते हैं। इनका हर एक के जीवन में बहुत महत्व होता है। माइक्रो इकोनॉमी में भी वो एक बहुत बड़ी ताकत होते हैं। लेकिन ये सबसे ज्यादा उपेक्षित थे। अब पीएम स्वनिधि योजना ऐसे ही उपेक्षित रेहड़ी पटरी वालों के लिए आशा की एक नई किरण बनकर आई है। इन्हें लोन मिल रहा है, इनकी बैंकिंग हिस्ट्री बन रही है, वह ज्यादा से ज्यादा डिजिटल भुगतान कर रहे हैं। -नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री।
‘स्वनिधि से समृद्धि’ में इन 8 योजनाओं का लाभ
n प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना n पीएम सुरक्षा बीमा योजना n प्रधानमंत्री जन धन योजना n भवन और अन्य निर्माण श्रमिक (रोजगार और सेवा की शर्तों का विनियमन) अधिनियम (बीओसीडब्ल्यू) के तहत पंजीकरण n प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन योजना n राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) लाभ- एक राष्ट्र एक राशन कार्ड (ओएनओआरसी) n प्रधानमंत्री जननी सुरक्षा योजना
n प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (पीएमएमवीवाई)
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युवा शिविर
भारत आज दुनिया की ‘नई उम्मीद’
कोविड महामारी के संकट के बीच दुनिया को वैक्सीन और दवाइयां पहुंचाने, बिखरी हुई आपूर्ति श्रृंखला के बीच आत्मनिर्भरता की उम्मीद के साथ वैश्विक शांति और संघर्षों के दरम्यान शांति के लिये एक सामर्थ्यवान राष्ट्र की भूमिका तक, भारत आज दुनिया की ‘नई उम्मीद’ बन कर उभरा है। इतना ही नहीं, आज, जनभागीदारी बढ़ने के साथ सरकार के काम करने और समाज के सोचने का तरीका बदल गया है। सॉफ्टवेयर से लेकर अंतरिक्ष तक, भारत हर क्षेत्र में एक नए भविष्य के लिये तत्पर देश के रूप में उभर रहा है। आज जहां भी चुनौतियां हैं, वहां आशा के साथ भारत मौजूद है, जहां भी समस्या है, वहां हर समस्याओं का भारत कर रहा है समाधान पेश…
भारत आज एक नए भविष्य के लिए तत्पर देश के रूप में उभर रहा है और राष्ट्र की यह सफलता हमारे युवाओं के सामर्थ्य का सबसे बड़ा सबूत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नव भारत के निर्माण में युवाओं की भूमिका को महत्वपूर्ण मानते हैं और यही कारण है कि वह समाज के हर पीढ़ी में निरंतर चरित्र निर्माण पर जोर देते हैं। गुजरात के वडोदरा में श्री स्वामीनारायण मंदिर द्वारा आयोजित युवा शिविर को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “मुझे विश्वास है, मेरे युवा साथी जब इस शिविर से जाएंगे, तो वो अपने भीतर एक नई ऊर्जा महसूस करेंगे। एक नई स्पष्टता और नवचेतना का संचार अनुभव करेंगे।” श्री स्वामीनारायण मंदिर द्वारा आयोजित इस तरह के जो शिविर आज चलाए जा रहे हैं, वह न केवल हमारे युवाओं में अच्छे ‘संस्कार’ पैदा कर रहे हैं, बल्कि वह समाज, अस्मिता, गौरव और राष्ट्र के पुनर्जागरण के लिये पवित्र तथा नैसर्गिक अभियान भी हैं। प्रधानमंत्री मोदी की सोच रही है कि नए भारत के निर्माण के लिये सामूहिक संकल्प किया जाये और मिलकर प्रयास किए जाएं। ऐसे में इस तरह के शिविरों से निकले युवाओं के माध्यम से एक नए भारत का निर्माण हो। एक ऐसा नया भारत, जो नई सोच और सदियों पुरानी संस्कृति, दोनों को एक साथ लेकर आगे बढ़े। पूरी मानव जाति को दिशा दे जिससे भारत अपना उत्थान करें, लेकिन हमारा उत्थान दूसरों के कल्याण का माध्यम और दुनिया की नई उम्मीद भी बने। n
युवाओं को समाज सेवा और राष्ट्र निर्माण में शामिल करना उद्देश्य
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 मई को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से करेलीबाग, वडोदरा में आयोजित किए गए ‘युवा शिविर’ को संबोधित किया। श्री स्वामीनारायण मंदिर, कुंडलधाम और श्री स्वामीनारायण मंदिर करेलीबाग, वडोदरा ने इस शिविर का आयोजन किया। इस शिविर का उद्देश्य अधिक से अधिक युवाओं को समाज सेवा और राष्ट्र निर्माण में शामिल करना और ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत, ‘आत्मानिर्भर भारत’, ‘स्वच्छ भारत’ आदि जैसी पहल के माध्यम से युवाओं को एक नए भारत के निर्माण में भागीदार बनाना है।
हमारे लिए संस्कार का अर्थ है- शिक्षा, सेवा
और संवेदनशीलता! हमारे लिए संस्कार का अर्थ है- समर्पण, संकल्प और सामर्थ्य! हम अपना उत्थान करें, लेकिन हमारा उत्थान दूसरों के कल्याण का भी माध्यम बने! हम सफलता के शिखरों को छूएं, लेकिन हमारी सफलता सबकी सेवा का भी जरिया बने।
– नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री
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आपातकाल के 47 वर्ष
लोकतांत्रिक मूल्यों का अहसास कराता है यह दिन
…ताकि फिर कभी न हो ऐसे आपातकाल की पुनरावृत्ति
47 वर्ष पहले हुई इस दिन की घटना ने देश को अहसास कराया था कि लोकतंत्र का महत्व क्या है। भारत के संसदीय इतिहास की इस घटना का स्मरण किसी को बुरा-भला कहने के लिए नहीं होता, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की मजबूती और शक्ति का स्मरण होता है। वर्ष 1975 की 25 जून की आधी रात और 26 जून की सुबह यानी जब देश में आपातकाल लगा था। यह अतीत का एक ऐसा पन्ना है जिसका इतिहास हमें लोकतंत्र के प्रति समर्पण, संकल्प को मजबूत करने की सीख देता है ताकि हम जिस भारतीय संस्कृति और विरासत को लेकर आगे बढ़े थे, वह सदैव रहे जीवंत……
इक्कीसवीं सदी में भारत ने दुनिया की सबसे भयावह कोविड जैसी महामारी का सामना कुशलता के साथ किया है। इस महामारी से जीवन की रक्षा के लिए लॉकडाउन की स्थिति आज के नौनिहालों व युवाओं के मन-मस्तिष्क में जीवन पर्यंत रहने वाली है। लेकिन क्या इन नौनिहालों-युवाओं को पता होगा कि भारतीय लोकतंत्र ने भी इतिहास में लंबे समय तक एक लॉकडाउन का सामना किया है? लेकिन उसका कारण जीवन रक्षा नहीं, बल्कि कुछ ऐसे कारण थे जिनका आम जन से न कोई सरोकार था और ना ही देश किसी युद्ध में शामिल था। फिर भी आम जन मूलभूत अधिकारों से वंचित था।
आजादी मिलने के बाद भारत आधुनिक लोकतंत्र के रूप में पूर्ण गणराज्य बना और शासन की बागडोर जनता द्वारा चुनी हुई सरकार के हाथों में आई। लेकिन इस दौर में देश के सामने लोकतंत्र के भविष्य और जनता के मौलिक अधिकारों को लेकर अनेक सवाल थे। कई कारणों से इसका जवाब तत्कालीन शासन की नीतियों पर आश्रित थे। आजाद भारत के लोकतंत्र की यात्रा की शुरुआत में ही राष्ट्रीयता से जुड़े कई संगठनों पर ऐसे कुछ प्रतिबंध देखे गए, जिसके बाद 1951-52 में संसद में पहला संविधान संशोधन रखा गया। इसमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित करने के प्रश्न पर संसद में विस्तृत चर्चा हुई। तब डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्ष में पुरजोर आवाज मुखर की थी। फिर 1975-77 का एक कालखंड ऐसा भी आया, जब देश में आपातकाल लगाकर व्यवस्था को चंद लोगों की मुट्ठी में बंद करने की कोशिश हुई।
लोकतंत्र के प्रति निरंतर जरुरी जागरुकता
लोकतंत्र सिर्फ एक व्यवस्था नहीं, बल्कि एक संस्कार भी है। ऐसे में इसके प्रति निरंतर जागरूकता जरूरी होती है। यही कारण है कि लोकतंत्र को आघात करने वाली बातों का स्मरण करना जरूरी हो जाता है। 1975 की 25 जून की उस रात को कोई भी लोकतंत्र प्रेमी भारतवासी भुला नहीं सकता है जब देश को एक प्रकार से जेलखाने में बदल दिया गया था, विरोधी स्वर को दबाने की कोशिश हुई थी। जयप्रकाश नारायण सहित देश के गणमान्य नेताओं को जेलों में बंद कर दिया गया था। न्याय व्यवस्था भी आपातकाल के उस भयावह रूप की छाया से बच नहीं पाई थी। मीडिया पर भी अंकुश लगा दिया गया था। संपादक के तौर पर कई अखबारों के कार्यालयों में पुलिस के अधिकारी बिठा दिए गए थे।
लेकिन किसी को भी यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि भारत की सबसे बड़ी ताकत उसका लोकतंत्र है। लोक शक्ति है। देश का एक-एक नागरिक है। जब भी इस पर कोई आंच आई है इस श्रेष्ठ जनसमूह ने अपनी इसी ताकत से लोकतंत्र को जी कर दिखाया है। जब देश में आपातकाल लगाया गया तब उसका विरोध सिर्फ राजनीतिक दायरे या राजनेताओं तक सीमित नहीं था, जेल के सलाखों तक ही आंदोलन सिमट नहीं गया था बल्कि जन-जन के दिल में एक आक्रोश था। खोये हुए लोकतंत्र की एक तड़प थी। जैसे दिन-रात खाना मिले तो भूख क्या होती है इसका अहसास नहीं होता, लेकिन जब ना मिले तो उसका अहसास भूखा व्यक्ति बेहतर महसूस करता है। वैसे ही सामान्य जीवन में लोकतंत्र के अधिकारों की अनुभूति भी तब होती है जब कोई लोकतांत्रिक अधिकारों को छीन लेता है। आपातकाल में देश के हर नागरिक को लगने लगा था कि उसका कुछ छीन लिया गया है। किसी समाज व्यवस्था को चलाने के लिए भी संविधान की जरूरत होती है, कायदे, कानून, नियमों की भी आवश्यकता होती है, अधिकार और कर्तव्य की भी बात होती है। लेकिन भारत की यह खूबसूरती है कि कोई नागरिक गर्व के साथ यह कह सकता है कि उसके लिए कानून और नियमों से इतर लोकतंत्र हमारे संस्कार हैं, हमारी संस्कृति है, हमारी विरासत है और उस विरासत को लेकर हम पले-बढ़े लोग हैं। यही वजह है कि उसकी कमी को देशवासियों ने आपातकाल में करीब से अनुभव किया था। इसी का नतीजा था कि 1977 के आम चुनाव को लोगों ने अपने हित के लिए नहीं, बल्कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए आहूत कर दिया था। जन-जन ने अपने हकों, जरूरतों की परवाह किए बिना सिर्फ लोकतंत्र की रक्षा के लिए मतदान किया था। अमीर से लेकर गरीब तक सभी ने एकजुटता के साथ अपना फैसला सुनाया था।
‘आजादी की नई ऊर्जा’
आपातकाल की पीड़ा वही महसूस कर सकता है जिसने इसे झेला हो, आज अखबारों में आलेख लिख सकते हैं, ट्विटर या सोशल मीडिया पर जो चाहे लिख सकते हैं, बोल सकते हैं। सरकार के खिलाफ बात कर सकते हैं। सोचिए इतनी ऊर्जा हमें कहां से मिली? दरअसल, जो लोग अब देश का शासन चला रहे हैं, वही आपातकाल के भुक्तभोगी थे और बाद में हमारे संविधान, हमारी व्यवस्था को पटरी पर लेकर आए ताकि कभी देश में कोई आपातकाल ना थोप सके। यह ऊर्जा उस आपातकाल की बंदिशों के बीच विरोध करने वाले इन्हीं स्वरों से निकली है। ऐसे में 47 वर्ष की इस पूर्व की घटना और आपातकाल का विरोध करते हुए भारतीय लोकतंत्र के रक्षकों का स्मरण कराना जरूरी है ताकि नई पीढ़ी इतिहास के उस पन्ने को जान सके और लोकतंत्र के प्रति सदैव सजग रहे। देश में सशक्त लोकतंत्र की भावना को पिछले आठ वर्षों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने चरितार्थ करके दिखाया है क्योंकि उनकी नीति और निष्ठा में ‘राष्ट्र प्रथम’ निहित है। इन वर्षों में जहां एक ओर संघीय ढांचों को मजबूती देते हुए देश में राज्यों की भागीदारी को बढ़ाया गया, वहां दूसरी ओर गरीबों और आम नागरिकों से जुड़ी सैकड़ों योजनाओं के द्वारा विकास की मुख्यधारा में लाया गया। आज लोकतंत्र की सभी इकाइयां एक दूसरे के परस्पर सहयोग, समन्वय व संतुलन के साथ चल रही है। न्यायपालिका की जहां आवश्यकता दिखाई पड़ती है, वह पूरी तरह स्वतंत्रता के साथ समय-समय पर सरकार का मार्गदर्शन करती रहती है। इसके अतिरिक्त मीडिया को भी अपना काम करने की पूरी आजादी है। बाबा साहब आंबेडकर ने संविधान सभा में अपने आखिरी भाषण में राजनीतिक लोकतंत्र के साथ सामाजिक लोकतंत्र की आवश्यकता पर बल दिया था। आज प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में बाबा साहब के विचारों के अनुरूप ही लोकतंत्र आगे बढ़ रहा है। भारत के लोकतंत्र की जड़ें इतनी गहरी हैं कि भविष्य में कोई भी देश के लोकतांत्रिक मूल्यों से खिलवाड़ करके आपातकाल जैसी परिस्थिति उत्पन्न करने का साहस नहीं करेगा।
निश्चित रूप से भारत के सामान्य मानव की लोकतांत्रिक शक्ति का उत्तम उदाहरण आपातकाल में प्रस्तुत हुआ है। लोकतांत्रिक शक्ति का वो परिचय बार-बार देश को याद कराते रहना चाहिए क्योंकि जन-जन की रग-रग में फैला हुआ लोकतंत्र का भाव भारत की अमर विरासत है। आपातकाल की बरसी हमें इसी विरासत को और सशक्त करने का स्मरण कराती है। n
आपातकाल के उन बुरे दिनों को कभी नहीं भुलाया जा सकता। 1975 से 1977 की समयावधि संस्थानों के सुनियोजित तरीके से विनाश की साक्षी रही है। आइए हम भारत की लोकतांत्रिक भावना को मजबूत करने के लिए हर संभव प्रयास करें और हमारे संविधान में निहित मूल्यों पर खरा उतरने का संकल्प लें। हम उन सभी महानुभावों को याद करते हैं जिन्होंने आपातकाल का विरोध करते हुए भारतीय लोकतंत्र की रक्षा की।
-नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री
संविधान संशोधन से अब असंभव है ऐसा आपातकाल लगाना
आपातकाल में संविधान के कई प्रावधानों को बदल दिया गया था। जिसे बाद में मोरारजी देसाई की सरकार के समय ठीक किया गया। यह महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि आपातकाल के दौरान जो 42वां संशोधन लाया गया था, जिसमें सुप्रीम कोर्ट की शक्तियों को कम करने और दूसरे ऐसे प्रावधान थे, जो हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों का हनन करते थे – उनको 44वें संशोधन के द्वारा बहाल किया गया। इसी संशोधन में यह भी प्रावधान किया गया कि संविधान के अनुछेद 20 और 21 के तहत मिले मौलिक-अधिकारों का आपातकाल के दौरान भी हनन नहीं किया जा सकता है। देश में पहली बार ऐसी व्यवस्था की गई कि मंत्रिमंडल की लिखित अनुशंसा पर ही राष्ट्रपति आपातकाल की घोषणा करेंगे, साथ ही यह भी तय किया गया कि आपातकाल की अवधि को एक बार में छः महीने से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता है। इस तरह से मोरारजी सरकार ने यह सुनिश्चित किया कि 1975 की तरह देश में आपातकाल को कभी दोहराया न जा सके।
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आजादी का अमृत महोत्सव
गोवा क्रांति दिवस
गोवा की आजादी
का पहला सत्याग्रह
भारत को 15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश राज से स्वतंत्रता मिल गई, लेकिन आजाद भारत का एक हिस्सा ऐसा भी था जो आजादी के बाद भी कई साल तक विदेशी कब्जे में रहा। यह हिस्सा था देश का तटीय क्षेत्र गोवा, जो उस समय पुर्तगालियों के शासन में था और इसे आजाद कराने में करीब 14 साल का समय और लगा था। ऐसा स्पष्ट होने लगा था कि अंग्रेज भारत से जाने की तैयारी करने लगे हैं लेकिन पुर्तगाली गोवा छोड़कर जाने के लिए तैयार नहीं थे। यही कारण था कि स्वतंत्रता सेनानी एवं समाजवादी विचारधारा में विश्वास रखने वाले डॉ. राममनोहर लोहिया ने 18 जून, 1946 को गोवा पहुंचकर पुर्तगालियों के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया। इस आंदोलन में हजारों गोवावासी शामिल हुए और कई साल के संघर्ष के बाद 1961 में गोवा को मिली आजादी…
देश तो गोवा से पहले आजाद हुआ था। देश के अधिकांश लोगों को अपने अधिकार मिल चुके थे। अब उनके पास अपने सपनों को जीने का समय था। उनके पास विकल्प था कि वो शासन सत्ता के लिए संघर्ष कर सकते थे, पद प्रतिष्ठा ले सकते थे। लेकिन कितने ही सेनानियों ने वो सब छोड़कर गोवा की आजादी के लिए संघर्ष और बलिदान का रास्ता चुना। गोवा के लोगों ने भी मुक्ति और स्वराज के लिए आंदोलनों को कभी थमने नहीं दिया। उन्होंने भारत के इतिहास में सबसे लम्बे समय तक आजादी की लौ को
जलाकर रखा।”
-नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री
गोवा मुक्ति का संग्राम, एक ऐसी अमर ज्योति है जो इतिहास के हजारों झंझावातों को झेलकर भी प्रदीप्त और अटल रही है। कुंकलली संग्राम से लेकर छत्रपति शिवाजी महाराज और संभाजी के नेतृत्व में वीर मराठाओं के संघर्ष तक, गोवा के लिए हर किसी के तरफ से लगातार प्रयास हुए। गोवा मुक्ति संग्राम का अंतिम चरण आज से लगभग 76 वर्ष पूर्व समाजवादी नेता डॉ. राममनोहर लोहिया ने 18 जून 1946 को शुरू किया था, जो गोवा की आजादी का पहला सत्याग्रह आंदोलन था। डॉ. लोहिया ने गोवा क्रांति की जो अलख जगाई, उसके कारण गोवावासियों में चेतना आई। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से प्रेरणा ली और खुद को संगठित करना शुरू किया। गोवा क्रांति में क्रांतिवीरों का बलिदान भी अभूतपूर्व रहा। गोवा को पुर्तगालियों के चंगुल से मुक्त कराने के लिए ‘आजाद गोमांतक दल’ नामक एक क्रांतिकारी दल भी सक्रिय था। 18 जून 1946 के लगभग 14 वर्ष बाद 18-19 दिसंबर 1961 को भारत सरकार ने सैन्य ऑपरेशन ‘विजय’ के जरिए गोवा को आजाद कराया। इस तरह यह वर्ष गोवा मुक्ति संग्राम के शुरुआत की 76वीं सालगिरह और गोवा मुक्ति की 61वीं वर्षगांठ का साल है। गोवा को पुर्तगालियों की गुलामी से मुक्ति पाने के लिए 1946 से लेकर 1961 के बीच अनगिनत हिंदुस्तानियों ने बलिदान दिया। बहुत सारे लोग बरसों तक पुर्तगाली जेलों में रहे और उनकी यातनाएं सहन कीं। जब गोवा की आजादी के लिए संघर्ष हुआ, तो सब मिलकर एक साथ लड़े, एक साथ संघर्ष किया। गोवा की मुक्ति के लिए भारत के चारों कोनों से एक साथ हाथ उठे थे। पुर्तगालियों ने आंदोलन को कुचलने के लिए कई आंदोलनकारियों और क्रांतिकारियों को गिरफ्तार किया और लंबी सजा सुनाई। बावजूद इसके गोवा में आंदोलन की रफ्तार कभी धीमी नहीं हुई और वहां की जेलें सत्याग्रहियों से भर गईं। इनमें से कई लोगों को पुर्तगालियों ने गिरफ्तार करके लंबी सजा सुनाई और इनमें से कुछ लोगों को तो अफ्रीकी देश अंगोला की जेल में भी रखा गया।
लुईस दी मिनेझीस ब्रागांझा, त्रिस्ताव ब्रागांझा द कुन्हा, ज्युलिओ मिनेझीस जैसे नाम हों, या पुरुषोत्तम काकोडकर, लक्ष्मीकान्त भेंबरे जैसे सेनानी, या फिर बाला राया मापारी जैसे युवाओं का बलिदान, हमारे कितने ही सेनानियों ने आजादी के बाद भी आंदोलन किए, पीड़ाएं झेलीं, बलिदान दिया, लेकिन इस आंदोलन को रुकने नहीं दिया। गोवा की आजादी के संघर्ष के दौरान गोवा मुक्ति विमोचन समिति के सत्याग्रह में 31 सत्याग्रहियों को अपने प्राण गंवाने पड़े थे। आजाद गोमांतक दल से जुड़े कितने ही नेताओं ने भी गोवा आंदोलन के लिए अपना सर्वस्व अर्पण किया था। प्रभाकर त्रिविक्रम वैद्य, विश्वनाथ लवांडे, जगन्नाथराव जोशी, नाना काजरेकर, सुधीर फड़के, ऐसे कितने ही सेनानी थे जिन्होंने गोवा, दमन, दीव, दादरा और नगर हवेली की आजादी के लिए संघर्ष किया और इस आंदोलन को दिशा और ऊर्जा दी थी।
अाजादी के अमृत महोत्सव की श्रृंखला में इस बार गोवा मुक्ति आंदोलन से जुड़े ऐसे ही क्रांतिवीरों की कहानी…
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मधु लिमये: गोवा आजाद कराने में महत्वपूर्ण भूमिका
जन्म : 1 मई 1922, मृत्यु : 8 जनवरी 1995
गोवा की आजादी की खातिर संघर्ष में डॉ. राम मनोहर लोहिया के अनुयायी मधु लिमये को 1955 से 1957 के बीच करीब दो साल पुर्तगाली जेल में बिताने पड़े थे। 1 मई 1922 को महाराष्ट्र के पुणे में जन्मे मधु लिमये का नाम आधुनिक भारत के उन विशिष्टतम व्यक्तित्वों में से एक है, जिन्होंने पहले राष्ट्रीय आंदोलन और फिर गोवा के स्वतंत्रता आंदोलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। मधु लिमये ने कम उम्र में ही मैट्रिक की परीक्षा पास कर ली थी। स्कूली शिक्षा के बाद, उन्होंने 1937 में पुणे के फर्ग्युसन कॉलेज में उच्च शिक्षा के लिए दाखिला लिया और तभी से उन्होंने छात्र आंदोलनों में भाग लेना शुरू कर दिया। अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए उन्हें अक्टूबर 1940 में एक वर्ष के लिए धुलिया जेल में डाल दिया गया। ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान लिमये भूमिगत हो गए, लेकिन सितंबर 1943 में उन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया गया। 1945 तक वे जेल में रहे। इसके बाद राष्ट्रीय आंदोलन और समाजवादी विचारधारा के प्रति आकर्षित होकर उन्होंने 1950 के दशक में गोवा मुक्ति आंदोलन में भाग लिया, जिसे डॉ. राम मनोहर लोहिया ने 1946 में शुरू किया था। उपनिवेशवाद के कट्टर आलोचक मधु लिमये ने जुलाई 1955 में एक बड़े सत्याग्रह का नेतृत्व किया और गोवा में प्रवेश किया जहां पुर्तगाली पुलिस ने सत्याग्रहियों पर हमला किया। पुलिस ने मधु लिमये की भी बेरहमी से पिटाई की और उन्हें पांच महीने तक पुलिस हिरासत में रखा। दिसंबर 1955 में पुर्तगाली सैन्य न्यायाधिकरण ने उन्हें कठोर कारावास की सजा सुनाई, लेकिन मधु लिमये ने न तो इसका कोई बचाव पेश किया और न ही अपील की। जब वे गोवा की जेल में थे तो उन्होंने लिखा था कि ‘मैंने महसूस किया है कि गांधीजी ने मेरे जीवन को कितनी गहराई से बदल दिया है। उन्होंने मेरे व्यक्तित्व और इच्छा शक्ति को कितनी गहराई से आकार दिया है।’ पुर्तगाली हिरासत से छूटने के बाद भी मधु लिमये ने गोवा की मुक्ति के लिए जनता को एकजुट करना जारी रखा और विभिन्न वर्गों से समर्थन मांगने के साथ ही भारत सरकार से इस दिशा में ठोस कदम उठाने के लिए आग्रह किया। जन सत्याग्रह के बाद भारत सरकार गोवा में सैन्य कार्रवाई करने के लिए मजबूर हुई और इस तरह गोवा पुर्तगाली शासन से मुक्त हुआ।
पुर्तगाल की कैद में 14 वर्ष बिताने वाले मोहन रानाडे
जन्म : 25 दिसंबर 1930, मृत्यु : 25 जून 2019
गोवा की आजादी के लिए संघर्ष कर रहे लोगों ने यह महसूस किया कि सत्याग्रह जैसे आंदोलन से गोवा को आजादी नहीं मिल सकती। ऐसे में उन्होंने आंदोलन का अलग रास्ता चुना। इनमें स्वतंत्रता सेनानी विनायक दामोदर सावरकर से प्रेरित मोहन रानाडे का नाम भी शामिल है। इन्हीं विचारों के साथ रानाडे पुर्तगाली औपनिवेशिक शासन के खिलाफ गुप्त आंदोलनात्मक गतिविधियों में शामिल होने लगे। 1950 की शुरुआत में वे एक मराठी शिक्षक के रूप में गोवा पहुंचे और लोगों को एकजुट करना शुरू किया। 28 जुलाई,1954 को बड़ी संख्या में इन लोगों ने नगर हवेली पर हमला किया और 2 अगस्त को उसे मुक्त करा लिया। दादरा व नगर हवेली पर कब्जे के बाद गोवा में स्वतंत्रता आंदोलन को जारी रखने के लिए नया जोश और प्रेरणा मिली। 15 अगस्त,1954 को सैकड़ों लोगों ने पुर्तगाली-गोवा सीमा को पार किया, जबकि सरकार ने किसी भी तरह के आंदोलन में भाग लेने पर पाबंदी लगा दी थी, लेकिन लोगों ने इसकी कोई परवाह नहीं की। इस गतिविधि पर विराम तब लगा, जब 1 जनवरी,1955 में बनस्तारीम पुलिस स्टेशन पर हमला करने के दौरान रानाडे को गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें इस हमले के लिए 26 साल के कारावास की सजा सुनाई गई, जिसमें से 6 साल एकांतवास में बिताना था। सजा काटने के लिए उन्हें पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन के पास कैक्सियस के किले में भेज दिया गया। उन्हें सजा से मुक्त कराने के लिए कई आंदोलन हुए और कई राष्ट्रीय नेताओं ने उनकी रिहाई की मांग की लेकिन उन्हें छोड़ा नहीं गया। आखिरकार, पोप से बात किए जाने के बाद 14 साल के बाद 25 जनवरी, 1969 को उन्हें रिहाई मिली। रिहाई के बाद रानाडे पुणे में रहने लगे। हालांकि, वह हर साल दो मौके पर गोवा अवश्य जाते थे। एक, 18 जून को, जिसे क्रांति दिवस के रूप में मनाया जाता है और दूसरा 19 दिसंबर को जो गोवा का मुक्ति दिवस है। मोहन रानाडे को 2001 में पद्मश्री और 2006 में सांगली भूषण से सम्मानित किया गया था। उन्हें सामाजिक कार्यों के लिए 1986 में गोवा पुरस्कार मिला।
एक सच्चे कोंकणी नायक पुरुषोत्तम काकोडकर
जन्म : 18 मई 1913, मृत्यु : 2 मई 1998
महात्मा गांधी के ‘सविनय अवज्ञा’ और ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में सक्रिय भूमिका निभाने वाले पुरुषोत्तम काकोडकर का नाम उन लोगों में भी शामिल है, जिन्होंने गोवा की मुक्ति के लिए भी आंदोलन में हिस्सा लिया। 18 मई 1913 को गोवा में जन्मे काकोडकर ने 1943 में ‘गोवा सेवा संघ’ की स्थापना कर गोवावासियों में एक नई स्फूर्ति का संचार किया। इसके माध्यम से वे लोगों को स्वतंत्रता संग्राम के लिए तैयार करने लगे। पुरुषोत्तम काकोडकर ने वसंत कारे के साथ जून 1946 में असोलना में जूलियाओ मेनेजेस के घर पर डॉ. राममनोहर लोहिया से मुलाकात की थी। वहां उन्होंने लोहिया को गोवा में व्याप्त स्थिति के बारे में अवगत कराया था। कहा जाता है कि, यही वह बैठक थी, जिसमें गोवा में नागरिक स्वतंत्रता के लिए 18 जून को होने वाले संघर्ष का बीज बोया गया था। गोवा की आजादी के लिए अति सक्रियता के कारण पुर्तगाली पुलिस ने उन्हें 9 अगस्त 1946 को गिरफ्तार कर लिया और 27 सितंबर 1946 को उनका कोर्ट मार्शल किया गया। प्यार से ‘भाऊ’ के नाम से जाने जाने वाले पुरुषोत्तम काकोडकर को इसके बाद पुर्तगाल भेज दिया गया जहां उन्हें निर्वासन में करीब 10 वर्ष का समय व्यतीत करना पड़ा। आखिरकार, वह 1956 में पुर्तगाली जेल से रिहा हो सके। गोवा की आजादी के बाद जब उसे महाराष्ट्र में सम्मिलित करने की चर्चा चली तो उन्होंने इसका विरोध किया। आखिरकार 1967 में केंद्र सरकार ने गोवा में जनमत सर्वेक्षण कराया। इसके बाद गोवा अलग राज्य बना। पुरुषोत्तम काकोडकर 1984 में स्थापित गोवा कोंकणी अकादमी के संस्थापक अध्यक्ष भी रहे। लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य रहे पुरुषोत्तम काकोडकर के बेटे का नाम अनिल काकोडकर है जो भारत के परमाणु ऊर्जा आयोग के पूर्व अध्यक्ष रहे हैं। पुरुषोत्तम काकोडकर का 2 मई 1998 को 84 साल की उम्र में नई दिल्ली में निधन हो गया।
बाला राया मापारी : गोवा की आजादी के लिए शहीद होने वाले पहले व्यक्ति
जन्म : 8 जनवरी 1929, मृत्यु : 15 फरवरी 1955
आजाद गोमांतक दल के सदस्य बाला राया मापारी, गोवा स्वतंत्रता संग्राम के एक ऐसे नायक थे जिन्होंने पुर्तगालियों से गोवा की आजादी की खातिर अपने प्राण तक न्योछावर कर दिए थे। गोवा स्वतंत्रता संग्राम में शहीद होने वाले वे पहले व्यक्ति माने जाते हैं। बचपन में ही उनका मन भारत में हो रहे स्वतंत्रता संग्राम की ओर आकृष्ट हो गया था। गोवा में बर्देज तालुक के असोनोरा में 8 जनवरी 1929 को जन्मे बाला राया मापारी क्रांतिकारी संगठन आजाद गोमांतक दल के एक सक्रिय सदस्य थे, जिसका उद्देश्य गोवा को पुर्तगालियों के चंगुल से मुक्त कराना था। ऐसे में असोनोरा थाना पर क्रांतिकारियों ने एक बार धावा बोल दिया, जिसमें बाला राया मापारी भी शामिल थे। क्रांतिकारियों ने वहां पुलिस को बंधक बना लिया और उनसे उनके हथियार और गोला-बारूद लूट लिए। थाना पर हमले के इस मामले में पुर्तगाली पुलिस ने बाला राया मापारी को मुख्य अभियुक्त माना। फिर क्या था, पुलिस मापारी के पीछे पड़ गई। आखिरकार, फरवरी 1955 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। गिरफ्तारी के दौरान मापारी को कड़ी यातना दी गई। हालांकि, मापारी टूटने वालों में से नहीं थे और उन्होंने पुलिस को अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में किसी भी तरह की गोपनीय जानकारी देने से इंकार कर दिया। ऐसे में जेल में उन पर निर्दयता पूर्वक अत्याचार किया जाता रहा, जिसके कारण 15 फरवरी 1955 को वे शहीद हो गए। माना जाता है कि गोवा मुक्ति आंदोलन में करीब 68 लोग शहीद हुए थे। इन लोगों में माया राया मापारी सबसे पहले शहीद होने वाले व्यक्ति थे और उनकी उम्र सबसे कम थी। गोवा के स्वतंत्रता इतिहास में आज भी बाला राया मापारी को गर्व से याद किया जाता है और उनका नाम बहुत ही आदर-सम्मान के साथ लिया जाता है। गोवा मुक्ति दिवस समारोह के अवसर पर 19 दिसंबर 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बाला राया मापारी को याद किया था और कहा था कि बाला राया मापारी जैसे युवाओं के बलिदान, हमारे कितने ही सेनानियों ने आजादी के बाद भी आंदोलन किए, पीड़ाएं झेलीं, बलिदान दिया, लेकिन इस आंदोलन को रुकने नहीं दिया। n
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डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार
जिन्होंने सदैव कहा…
देश के लिए जीना सीखो
21 जून को उनकी पुण्यतिथि पर राष्ट्र का नमन
डाक्टर हेडगेवार ने कहा था, “साम्राज्यवादी ताकतों से लड़ने और उन्हें उखाड़ फेंकने के लिए जन भावना, समर्थन और अपील महत्त्वपूर्ण है।” जन भावना की ताकत को समझने वाले डॉ. हेडगेवार के नेतृत्व में हजारों लोगों ने 21 जुलाई 1930 को नागरिक अवज्ञा आंदोलन के हिस्से के रूप में महाराष्ट्र के यवतमाल जिले स्थित पुसद में ‘जंगल सत्याग्रह’ किया था। केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय अब उसी स्थान पर एक संग्रहालय का निर्माण करने जा रहा है जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में अमृत महोत्सव समिति ने स्वीकार किया है। यह संग्रहालय इस सत्याग्रह में हेडगेवार की भागीदारी को प्रदर्शित करेगा।
g डॉक्टरजी देश की आजादी के लिए कुछ-न-कुछ कर गुजरने के लिए अनेक मार्गों से प्रयासरत हुए। कभी तिलकजी तो कभी क्रांतिकारियों, कभी सुभाष तो कभी अरविंद के पास डॉक्टर साहब सत्य की खोज में कुछ परिणामजन्य कर दिखाने के उद्देश्य से दौड़ते रहते…
g डॉक्टरजी के जीवन का प्रारंभिक काल केवल देश को आजाद करवाने के लिए मर-मिटने की उत्कट भावना से भरा हुआ था। देश को गुलाम बनाने वाले अंग्रेज के साथ संघर्ष करना मानो उनकी प्रवृत्ति बन गई थी…
g राष्ट्र की परमोन्नति ही मानो उनके जीवन का ध्येय बन गई। समाज का साक्षात्कार करने की प्रक्रिया में समाज का हर व्यक्ति उनके मन में परमात्मा बन गया। स्वामी विवेकानंद की तरह ही एकमात्र भारत माता ही उनकी आराध्या देवी बन गई थीं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लिखित पुस्तक- “ज्योतिपुंज” के अंश
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