पत्रकारिता के 50 साल” राष्ट्र टाइम्स के सम्पादक का सम्मान समारोह – बनाम गेटटुगेदर,
"दोस्त हो तो ऐसा" जो अपने व्यस्तता से एक दिन का बहुमूल्य समय अपने परम् मित्र के लिए निकाल कर प्रेस क्लब बुक कर गेटटुगेदर पार्टी में एक खुशनुमा माहौल तैयार कर सम्मेलन का रूप दे दिया
“दोस्त हो तो ऐसा” जिसने अपने व्यस्तता से एक दिन का बहुमूल्य समय अपने परम् मित्र के लिए निकाल कर प्रेस क्लब बुक कर गेटटुगेदर पार्टी में एक खुशनुमा माहौल तैयार कर सम्मेलन का रूप दे दिया
पत्रकारिता के 50 साल” राष्ट्र टाइम्स के सम्पादक का सम्मान समारोह – बनाम – गेटटुगेदर,
एस. ज़ेड. मलिक
पत्रकारिता के 50 वर्ष यह कोई मामूली बात नहीं है, मरा अपना व्यक्तिगत अनुभव है कि पत्रकार अपनी जिस उम्र से पत्रकारिता आरम्भ करता है, मेरी समझ से वह 20 से अधिकतम 30 वर्ष तक ही पत्रकारिता करता रहता है। मैने खुशवंत सिंह और कुलदीप नैयर का दौर देखा है उन्होंने भी अपनी 40 से 42 वर्ष तक बहुत अच्छी पत्रकारिता की, उसके बाद उन्होंने एक सहायक रख लिया था। लेकिन मैं यह नहीं कहता कि कोई भी और पत्रकार ऐसा नहीं हो सकता जिसे पत्रकारिता करते हुए 50 या 60 वर्ष पूरे नही हुए होंगे। मेरी उम्र 63 की है और मैं 30 वर्षों से आज भी लिख रहा हूँ, लेकिन आगे का पता नहीं, जैसा कि आज विजयशंकर चतुर्वेदी जी को आज देख रहा हूँ। इनके दोस्त आज हर वर्ग में देखे जा सकते हैं, “तुमसा नहीं देखा” और एक किशोर दा एक गाना मुझे कुछ एक लाइन याद आ रहा ” “जिसने देखा प्यार से वह उसीका हो लिया, वह किसी के प्यार में ही खो गया। कुछ प्रकार का गाना है, बहरहाल, विजय शंकर चतुर्वेदी के एक खास दोस्त जो पिछले दिनों चतुर्वेदी जी द्वारा अपने मैगज़ीन का वार्षिक सम्मेलन मनाया था और उसमें अपने तमान राजनीतिक एवं गैर-राजनीतिक, समाजसेवियों, सेवानिवृत्त पदाधिकारियों सन्तरी, मंत्री सभी को आमांत्रित किया था। उस कार्यक्रम बहुतों की उपस्थिति रही बहुतों की व्यस्तता के कारण अनुपस्थिति रही थी, परन्तु उस अनुपस्थिति में चतुर्वेदी जी के एक बहुत विशेष मित्र पूर्व आईएएस अधिकारी दिल्ली सरकार के श्री रमेश भंडारी जो आज अपनी अनुपस्थिति का दण्ड स्वरूप अपने दोस्त के लिये प्रेस क्लब बुक करा कर एक विशेष सम्मान समारोह कार्यक्रम का आयोजन कर यह साभी कर दिया कि “दोस्त हो तो ऐसा”
“दोस्त हो तो ऐसा” इस कहावत पर आये दिन कई मिसाल देखने को और सुनने को मिलते रहते हैं। पिछले दिनों 29 जुलाई दिन शनिवार को प्रेस क्लब में एक ऐसा ही मिसाल देखने को मिला।
मेरे एक हमदर्द मेरे वेलविशर दिल्ली विश्वविद्यालय के अर्थ-शास्त्र के प्रो0 डॉ0 आसमी रज़ा साहब ने 4 दिन पहले मेरे वॉट्सऐप पर एक निमंत्रण पत्र भेज कर और फिर फोन कर मुझे अपने दिल की गहराइयों से आमांत्रित किया, एक पल के लिये मुझे लगा कि यह कार्यक्रम शायद जनाब आसमी रज़ा साहब ही व्यस्थित कर रहे, पर उस निमंत्रणपत्र में निवेदक दिल्ली सरकार के सेवानिवृत्त आईएएस जनाब सुरेश भंडारी साहब थे। जो प्रो0 डॉ0 आसमी रज़ा साहब के वेलविशर अर्थात बहुत अच्छे हमदर्द थे। जो डॉ0 आसमी रज़ा साहब पर अपने एक अच्छे दोस्त होने का दावा करते हैं।
बहरहाल मैंने अपने वेलविशर की बात को अपने दिल से लगाया और मैं शनिवार संध्या 6:30 बजे दिल्ली के प्रेस जा पहुंचा, परन्तु मेरे वेलविशर मेरे हमदर्द वहां नही पहुंचे थे, उन्हें मैन फोन किया, “बताया, सर , मैं तो यहां पहुंच गया हूँ, लेकिन मुझे यह कोई समारोह की गहमा गहमी तो दिखाई नहीं दे रही है, तो डॉ0, रज़ा साहब ने कहा, अप्लिज़ आप वहां पता कीजिये, कार्यक्रम कहां है, आप अटेंड कीजिये , मैं 10 मिंट में पहुंच रहा हूँ, एक बहुत ज़रूरी काम उलझा हुआ हूं, पास में ही हूं, इधर से फ्री होते ही पहुंच जाऊंगा, – बहरहाल, – वहां रोज़ की तरह नियमित पत्रकारों की आवा-जाही लगी हुई थी, मैंने प्रेस क्लब के स्टाफ से पूछा ,” भाई, विजय शंकर चतर्वेदी जी के मैगज़ीन “राष्ट्र टाइम्स” का आज कोई वार्षिक समारोह है, स्टाफ़ ने बताया कि समारोह के बारे में तो पता नहीं पर पंडित जी, चतुर्वेदी जी अंदर लाउंज में अपने दोस्तों के साथ बैठे हैं,, में बे-झिझक, लाउंज का दरवाज़ा खोल कर अंदर गया देखा चतुर्वेदी जी अपने दोस्तों के साथ सोफे पर बैठे है, गप-शप में व्यस्त है, हिंदुत्व के धरोहर मुख्य एक मजबूत पिलर मुख्य, बाबरी मस्जिद विध्वंसकारी के मुख्य कार्यकरिन्दा वर्तमान में गुमनाम ज़िन्दगी जीने पर विवश आडवाणी जी पर चर्चा चल रही थी , उसी दौरान मैन वहां इंट्री मारी और जनाब जय शंकर चतुर्वेदी जी की ओर देखते हुये नमस्कार किया, वहां उपस्थित सभी लोगों का ध्यान मेरी ओर आकर्षित हुआ, मैन पूछा, सर,, आज आप के मैगज़ीन का इनॉगरेशन डे है ? वह बड़े हैरान दृष्टिकोण से देखते हुये बोले, ऐसा तो कुछ नही है, किसने कहा”””????….. उन्हें ने मुझे बेड़े ही ध्यान से देखा, जैसे मुझे पहचानने की कोशिश कर रहे हों,,,,, उसी दरमियान किन मेरा नाम पूछ लिया मैने अपना नाम बताया और सॉरी कहते हुए लॉज से निकल गया, मैं अपने आप मे थोड़ा असहजता महसूस करने लगा…… यार चतुर्वेदी जी मुझे पहचाना नहीं,??????? पहचानते भी कैसे ????? , मैं कभी भी उनके नज़दीक तो रहा है नहीं, आज से 15 साल पहले 2004, 5, में कभी हिंदुस्तान न्यूज़ एजेंसी लक्ष्मी नगर में हुआ करती थी वहीं मैं अपना एखबार बनाने जाय करता था वह अपनी मैगज़ीन बनाने के सिलसिले वहां आया करते थे। हम जैसे छोटे एडिटरों के लिये वही एक मात्र सब से सस्ती एजेंसी हुआ करती थी , जो कम पैसे में अपनी न्यूज़ और समाचार पत्र भी बना कर दिया करती थी, तब उनकी ऑफिस शायद स्कूल ब्लॉक में हुआ करती था, बहरहाल उन्होंने मुझे पहचान नहीं, पर मैंने उन्हें नमस्कार कर सीधे सीधे आसमी साहब का हवाला दे कर पूछ लिया , सर , आपके मैगज़ीन का वार्षिक समारोह है, डॉ0,आसमी रज़ा द्वारा मुझे निमंत्रण आया हुआ है, इसलिये मैं आया हु, चतुर्वेदी साहब ऐसे देखने लगे जैसे वह कुछ समझने की कोशिश कर रहे हैं, , वह मेरी शक्ल ही देख रहे थे कि तभी उनके साथ बैठे उनके अपने कोई खास ही होंगे , उन्होंने कहा , नहीं , नहीं, ऐसी, कोई कोई बात नहीं, है, आज हमने एक छोटी सी गेटटुगेदर एक पार्टी रखी है,,,, मैं यह बात तो समझ गया कि यह कोई आम समारोह नहीं है बल्कि एक खास पार्टी है। मैं उनका जवाब सुनकर सॉरी कहते हुये बाहर आने लगा तभी वहां उपस्थित उनके किसी खास होंगे, जिन्होंने मुझसे मेरा नाम पूछ लिया, मैने तुरन्त अपना नाम बताया, जी,,, मैं,,,, एस. ज़ेड. मलिक पत्रकार, बाते हुए और सॉरी कहते हुए, बाहर लोन में आ गया, और फिर जनाब आसमी साहब को फोन कर स्थिति की जानकारी दी , ” जनाब यहां कोई ऐसा समारोह तो नहीं है, मैंने चतुर्वेदी जी से पूछा उन्होंने तो मना कर दिया, लेकिन जनाब रज़ा साहब ने बस , अपने पूरे विश्वास के साथ कहा आप वहीं रुकिये में अभी 10 मिंट पहुंच रहा हूँ, तभी, सऊदी से हमारे एक कलीग का फोन आ गया और मैं बाहर रखे सोफा पर बैठ कर फोन पर बाते करने लगा , तभी हमारे पुराने जानकार एक पत्रकार अर्जुन कश्यप आ गये, वह मेरे पास बैठ गए , फिर मैं सऊदी अपने कलीग से फ्री हुआ तो अर्जुन भाई से डीएवीपी के कमेटी पर बातें करने लगा, तभी उनके साथी आ गए और उन्हें कैंटिंग में ले कर चले गये। मैं बैठा रहा 2 मिंट के बाद मेरे एक पुराने सीनियर पत्रकार बारी मसूद साहब नज़र आये, लेकिन उन्होंने मुझे नहीं देखा और वह अपने धुन में कैंटिंग में चले गये, तो मैंने उन्हें फोन किया , क्या भाई, आप प्रेसक्लब में अपनी झलक तो दिखा दी पर आप हैं किस सीट पर , तो उन्हेंने , कहा भाई आइए जहां कैरम खेला जाता है, में वहां चला गया, वहां पहुंचा तो देखा वह चेज़ के बिसात पर बैठे हैं और दुसरीं चाल चलन की तैयारी कर रहे हैं, मैंने हाँथ मिलाया, और पास में बैठ गया, अभी उनसे कोई बात शुरू होती कि आसमी साहब का फोन आ गया , कहां हैं ? मैं अंदर आ गया हूँ, मैं फोन पर बात करते हुए उनकी ओर लपकता हुआ लोन की तरफ निकल गया तो आसमी साहब सामने कान पर फोन लगाये नज़र आ गये हम दोने एक दूसरे के आमने -सामने हुये तो उन्हों ने कहा “कहां है वह लोग ???? , मैन उनको अपने कुछ देर पहले की स्थिति की जानकारी देते हुए कहा, सर यह तो आपकी खास महफ़िल है, वहां तो चतुर्वेदी जी अपने खास लोगों के साथ ही गेटटुगेदर पार्टी कर रहे हैं, मेरा जाना वहां मुनासिब नहीं है। आसमी साहब कहने लगे अरे,,, नही,, भाई,,,,,, आइए आइए,, आपको अभी सभी से मिलाते है, फिर भी मैं इनकार करते हुये , वहां से निकलने की कोशिश की लेकिन उन्होंने कहा नहीं, नहीं, आप दो मिनट रुकिये मैं भी आपके साथ चलूंगा , मैं भी नही रुकूँगा, वह अंदर चले गए और मैं वापस अपने दोस्त बारी मसूद के पास आ गया।