“भीगी रेत” रणविजय राव की गृहणी प्रेम की कविता संग्रह का विमोचन ।

इस पुस्तक में लिखी प्रत्येक कविता में अपने पत्नी के प्रति अटूट प्रेम और विश्वास तथा अठखेलियाँ कोई भी पढ़े उसे महसूस होगा

इस पुस्तक में लिखी प्रत्येक कविता में अपने पत्नी के प्रति अटूट प्रेम और विश्वास तथा अठखेलियाँ कोई भी पढ़े उसे महसूस होगा

 “भीगी रेत” रणविजय राव की गृहणी प्रेम की कविता संग्रह का विमोचन ।

एस. ज़ेड. मलिक 
नई दिल्ली – पिछले दिनों नई दिल्ली के प्रेस क्लब में “एक पथ दो कार्य” लेखक रणविजय राव द्वारा लिखित एवं ललित मिश्र द्वारा सम्पादित “भीगी रेत” का लोकार्पण किया गया, वहीं उनका 50 जन्मदिन का केक काटा कर वर्षगांठ भी मनाया गया। अब यूँ कहे कि “लेखक रणविजय राव के 50वें जन्मदिन के अवसर पर “भीगी रेत” प्रेम अनुभूति पुस्तक का लोकार्पण किया गया, बहरहाल इस अवसर पर मंच का संचालन लालित्य ललित ने किया। इस अवसर पर वहां उस्थित अनुभवी साहित्यकारों एवं कवियों और व्यंगकारो तथा पत्रकारों ने “भीगी रेत” एक प्रेम का अनूठा अनुभव कविता संग्रह पुस्तक पर अपने अपने अनुभवपूर्ण व्याख्यान दिए। 
लेखक – रणविजय राव की यह पुस्तक उनके अपने निजी जीवन में पत्नी के प्रति प्रेम का एक अनूठा अनुभव एक ऐसा एहसास जो पति-पत्नी के एक सच्चे प्रेम के अटूट विश्वास पर एक दूजे के समर्पण को दर्शाता है। 
इस पुस्तक में लिखी प्रत्येक कविता में अपने पत्नी के प्रति अटूट प्रेम और विश्वास तथा अठखेलियाँ कोई भी पढ़े उसे महसूस होगा कि, वह अपनी अर्धांग्नी के सामने है और पत्नी की लहराते चाल, किचन से बेड रूम और गैलरी, या सहन, या आंगन , या डाइनिंग हॉल में आते जाते देख रहा है, उसका प्रेम उमड़ रहा है, पर वह अपने मुख से अपने उमड़ते प्रेम का बखान अपनी अर्धांग्नी के समक्ष करना नही चाहता, और वह अपने हाथों कॉपी कलम पकड़ इसकी अदा लिखने लगे या आज वर्तमान में तो डीजिटल दौर है अनुराइड हाथों में फोन है वह चलते फिरते अपनी प्रेमिका अर्धांग्नी की तमाम प्रावृत्तयों को अपने फोन के कैमरे में बंदी बना कर कभी उस पर व्यंग तो कभी उसकी प्रशंसा अपने वाणी को रिकॉर्ड करता या उसे अपने फोन में टाइप करता – वह कविता बनता तो कभी भावनात्मक लेख, वह पहले न समाता की उसका प्रेमपूर्ण अनुभव क्या क्यां न बनजाता – वह मन ही मन पड़ता, वह मन ही मन इठलाता, और जब खुद सन्तुष्ट हो जाता तो फिर अपनी प्रेमिका अर्धांग्नी को दिखलाता – वह देख कर गर मुस्कुरा गई – तो फिर उनके प्रसन्ता का ठिकाना नही ,  वह मन ही मन ठान लेता और उसे छपवा कर फिर दुनियां को दर्शाना है – यह प्रेम अनुभव, यह मेरा प्रेम पसंग – पत्नी के संग, कोई जले , या कोई ठंडा पड़ जाए, कोई खड़ी धूप के गर्म रेत पर नाच दिखाए- या तीखी धूप के भीगी रेत पर मस्त पड़ जाये – उससे क्या लेना – मुझे तो अपने पत्नी के प्रति आने प्रेम पसंग को दर्शाता है। 
सच है भैया, यह भी एक सीख है , एक प्रेरणा है, साहित्य का एक गृहअनुभव है। 
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