आरएसएस को आज मुस्लिम भक्त कवियों की खोज क्यूँ ?

श्री राम एवं कृष्ण के भक्ति पर भारतीय सन्त मुस्लिमों कवियों की रचनात्मक योगदान पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी। बेहद विचारणीय है।

श्री राम एवं कृष्ण के भक्ति पर भारतीय सन्त मुस्लिमों कवियों की रचनात्मक योगदान पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी। बेहद विचारणीय है।

श्री राम एवं श्रीकृष्ण के भक्त भारतीय संत मुस्लिमों कवियों की रचनात्मक योगदान पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी – बेहद विचारणीय है।

एक ओर संघ प्रभावित मीडिया मुसलमानों के प्रति दुराग्रही मानसिकता के तहत दुष्ट और भ्रमित  प्रचार प्रसार कर समाज में नफरत का माहौल बना दिया – और दूसरी ओर भारतीय संत मुस्लिम कवियों की श्री राम एवं कृष्ण भक्ति के रचनात्मक योगदान पर शोध करने का ऐलान – यह मन में संशय व कौतूहल पैदा कर रहा है।

एस. ज़ेड. मलिक
 नई दिल्ली में दो दिवसीय संगोष्ठी सोचने पर मजबूर कर देती है। कहीं यह संघ अर्थात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजनीतिक शतरंज की, नई बिसात तो नहीं,  या संघ द्वारा सच-मुच् भारत मे सुख-शांति का प्रयास ?  यह मेरे लिए एक गहन चिंता का विषय है, मुझे फिर से एक गहन शोध का अवसर मिला है।
     पिछले दिनों नई दिल्ली के भारतीय विद्या अध्ययन संस्थान द्वारा इंडिया इस्लामिक कल्चर सेंटर लोधी रोड नई दिल्ली में 19 और 20 अगस्त 2023 को दो दिवसीय “भारतीय मुसलमान भक्त कवियों का रचनात्मक प्रदये अर्थात योगदान या यूं कहें समर्पण की भावना” विषय पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजन किया गया। इस अवसर पर देश के विभिन्न राज्यों के वैसे विद्वानों और शोधकर्ताओं को आमांत्रित किया गया जो मध्यकालीन भारत के इत्तिहास में रुचि रखते हैं और विशेषकर, वैसे मुस्लिम कवी जो राजाओं और बादशाहों के दरबार मे कविपाठ किया करते थे और राजाओं और बादशाहों का दिलबस्तगी किया करते थे। और उनमें से वैसे मुस्लिम कवी जो अपनी कविता में श्रीकृष्ण, रामायण, और श्रीराम की भक्ति लीन उनकी प्रशंसा में कविता लिखी है, आज एक ऐसी सनातनी, हिन्दू शिक्षा संस्थान ने उनकी कविताओं को संग्रह करने का बीड़ा उठाया है। “भारतीय विद्या अध्ययन संस्थान” यह संघ, का एक महत्वपूर्ण विभाग है,  इस संस्था के बारे में पहले मैं इतनी गहराई से नहीं जानता था, जहां तक मुझे याद आता है कि यह संस्थान पहले दिल्ली के झंडेवाला में हुआ करता था, भाजपा के सत्ता में आने के बाद,  वहां अब नया भव्य इमारत बन कर तैयार होने के कागार पर है। यह संस्था अब प्रधानमंत्री के करकमलों से साउथ एवेन्यू में आ गया है। 
https://youtu.be/m8Y7BRLfNGc?feature=shared
 बहरहाल – मैं अपने शुभचिंतक बड़े भाई डॉ अजय मालवीया जी का कोटि कोटि नमन और धन्यवाद देता हूं जिन्होंने मुझे शोधकर्ताओं विद्वानों के बीच आमांत्रित कर आज मुझे कुछ सीखने और समझने का अवसर दिया।
 संघ पर जहां तक मेरा अध्ययन और शोध है, जहां तक मैने अब तक समझा है, 1980 से पहले कट्टरपंथी हिन्दू का यह एक मज़बूत संगठन “जनसंघ” के नाम से हुआ करता था, जिसने राजनीतिक क्षेत्र भी अपना कदम रखा जिसका उस समय जलता हुआ “दीपक” का चुनाव चिन्ह हुआ करता था। परन्तु 1980 से जनसंघ राजनीतिक पार्टी का विलय कर जनता पार्टी बना दिया गया, लेकिन संघ संस्था को समाप्त नहीं किया गया बल्कि उसका नाम बदल कर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ रख दिया गया और वह फल फूल गया कि एक विशालकाय बरगद घना वृक्ष की भांति खड़ा मनुवादियों सनातनियों को शीतल छाया दे रहा है। 
आप लोगों को एक बात बताता चलूँ  की, संघ की उस समय भी कइ-एक शाखाएं थीं, जिसमे उन मुसलमानों को भी रखा जाने लगा। उस समय जो मुसलमान हिन्दू विचारधारा और हिन्दू राष्ट्र के पक्षधर और उनके अधीन चलना चाहते थे, परन्तु आज जो भी मुसलमान भाजपा या संघ के साथ हैं या तो डर से या बेवक़ूफ़ी के तहत सत्ता की लालसा में अपने निजी स्वार्थ में हैं । संघ ने बड़े आसानी से मुस्लिम मुक्त भाजपा बना दिया, मुख्तार अब्बास नकवी, और शाहनवाज़ हुसैन को भी केंद्र की सत्ता से किनारा लगा दिया, और आरएसएस अपने विशेष अध्ययन के तहत शाहनवाज़ हुसैन को उनके अपने जद्दी बिहार पहुंचा दिया। आरएसएस का अध्ययन यह है कि शाहनवाज़ सुन्नी सैयद हैं इसलिये बिहार में मुस्लिम सैयद जाती पर शाहनवाज़ का कुछ तो असर पड़ेगा इस चुनाव में शाहनवाज़,  आरएसएस की राजनितिक प्रयोगशाला भाजपा में एक प्रयोगिक तत्व (Fm1) की तरह इस्तेमाल किये जायेंगे और चुनाव के बाद शाहनवाज़ को बिहार में ही सीमित कर दिया जाएगा। मेरा एक और विशेष अध्ययन है, कि मुस्लिम चाहे आरएसएस में ही क्यूँ न पैदा हो, वह शूद्रों के कैटागरी में ही रहेगा, और दूसरी सब से बड़ी बात आरएसएस चाहे अपने स्वार्थवष भारतीय मुसल्मानों की समय अनुकूल जितनी भी प्रसंशा कर ले लेकिन आरएसएस को कभी भी भारतीय मुस्लिमों के हित नहीं कुछ करते हुये सूना और ना कभी देखा।
परन्तु पिछले दिनों जो मैंने देखा और सुना, मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ, मैं अभी भी असमंजस में हूँ, संघ की यह नई सोंच – अब क्या रंग लाएगी? यह कहा नहीं जा सकता, संघ हमेशा मुसलमानों पर अध्ययन करता रहता है, और जब तक संघ रहेगा मुसलमानों पर शोध करता रहेगा। जहां तक मेरा अपना मानना है, संघ का जन्म ही इस्लाम-वाद के विरोधाभास में हुआ है। अर्थात इस्लाम के कट्टरपंथी विचारधारा के विरोध में, जनसंघ का जन्म हुआ, जबकि इस्लाम के प्रति मेरा अपना शोध, और मैं बहुत ही गहन मंथन के बाद यह निष्कर्ष निकाला पाया हूँ, की “इस्लाम अर्थात, “इंसानियत” जो अरबी का मार्मिक शब्द है, जो अरबी के “मोमिन” शब्द से निकला हुआ है, इसे फ़ारसी भी कहते हैं, यानी जिसमें इंसानियत है, वह “शांत है” वह चाहे किसी भी पंत का क्यूँ न हो, यदि वह अहिंसा प्रेमी है, हमदर्द है, सभी जीवों से प्रेम करता हो, सभी के दुखदर्द में काम आता हो, सभी पंथों की आदर करता हो, बड़े छोटों की आदर करने वाला है वह बेशक उस व्यक्ति के अंदर इस्लाम है, अर्थात इंसानियत है। अरबिक शब्द इस्लाम को मेरी दृष्टिकोण से  आम बोलचाल की भाषा मे “इंसानियत” कहते हैं, यह मेरा अपना मानना है, बेशक वह मुसलमान न हो, – मुसलमान होना एक अलग बात है, मुसलमान, मोमिन, यानी जिसके अंदर इंसानियत के सारे गुण के अतिरिक्त अड़ंगीत विश्वास वाला, जो दिव्याशक्ति पर अड़ंगीत विश्वास रखता है, जिसे लोग परमात्मा, ईश्वर, अल्लाह, ख़ुदा, गॉड, कहते है जो निराकार है, मुसलमान वह जो कभी झूठ न बोलता हो, जो बिना पूछे किसी का एक तिनका न उठाये, जो किसी से नफरत न करे, जो किसी का अधिकार न छीने, जो अपना खाना किसी भूखे सवाली को खिला दे, जो अपने भाई को अपने बराबरी में खड़ा रखे, वह मुसलमान है, जिसके अंदर यह गुण नही वह मुसलमान नहीं। चाहे वह किता बड़ा भी वह आलिम अर्थात विद्वान क्यों न हो । मेरी दृष्टिकोण में वह मुसलमान नहीं हो सकता।
   बहरहाल “बात निकलेगी तो बहुत दूर तलक जायेगी” अभी बात, भारतीय मुसलमान भक्त  कवियों का रचनात्मक प्रदये अर्थात योगदान व समर्पण , के विषय पर चल रही है, इस संगोष्ठी को देखते ही मेरे मन मे कई सवाल एक साथ उभर आये, आखिर यह संस्थान अचानक से भारतीय मुसलमान कवियों में वह भी ‘भक्त’ कवियों की तलाश और उनकी रचनाओं को क्यूं संग्रह करने पर आमादा है, आतुर है। भक्त मुस्लिम कवि, शायर की बात समझ मे तो आती है, लेकिन विशेष कर हिन्दू देवी- देवताओं के प्रति मुसलमान कवियों का समर्पणभाव वाले कवि जैसे रसखान, नज़ीर अकबराबादी, रहीम ख़्वानखाना, मीर खोसरो, और कई मुस्लिम कवियों ने अपने कविताओं में किसी ने श्रीराम की प्रशंसा तो किसी ने श्रीकृष्ण की प्रशंसा में अनेकों अनेक कविताएं और रचनायें लिखी, और दरबारों में प्रस्तूत किये, और काफी वाहवाही लूटी, वह तो दौर राजा रजवाड़ों का था, जहां आम लोग मध्यवर्गीय परिवार अपने बेटिओं को राजघराने में नृत्य करवाने में भी गर्व महसूस करते थे, उस समय तबले की थाप और सिरँगी कि तरंग पर नृत्य हुआ करता था फिर उस नृत्य में थोड़ा और लुत्फ, मज़ा लेने के लिये शायरों के नग़्मे का इस्तेमाल होने लगा और धीरे धीरे मुस्लिम शायरों ने पहले जगह बनाई और दरबार मे शायरों के खुशामत का दौर चला और राजाओं , बादशाहों के सुभाव के अनुसार , अनुकूल, शायरों ने कसीदे लिखने और पढ़ने शुरू कर दिए,  लेकिन वजह क्या थी कि अचानक भारत अंग्रेज़ी हुकूमत आते ही सब के सब लुप्त हो गये? और लुप्त ऐसा हुये की भारत स्वतंत्र होने के बावजूद लगभग 200 वर्षों तक न तो किसी ने चौपाल लगा कर किसी मुस्लिम कवियों को बुला कर श्रीकृष्ण भक्ति पर कविता का पाठ कराया और न तो किसे शायरों की महफ़िल में इन भक्त शायरों की शायरी किसी ने गाया। यानी 177 से अधिक वर्षों तक इसकी चर्चा करना तो दूर सनातनी कहने वाले लोग हिन्दू संगठन बना कर  मुसलमानों के प्रति नफरत का माहौल तैयार करने में व्यस्त हो गये, मध्यकालीन राजाओं के दौरे हुकूमत में कभी भी हिन्दू समाज और मुसलमानों के बीच इत्तिहास मे भारत के दो सम्प्रदायओं में दंगा जैसी लेख या कहानी पढ़ने को नहीं मिला।  
हां – भारत मे अंग्रेज़ी हुकूमत आने के बाद नफरत और दंगे के बारे इस समकालीन इत्तिहास में ज़रूर पढ़ने को मिला, मेरा जन्म तो 1961 का जब मैंने होश संभाला तो हिन्दू और मुसलमानों के बीच कहीं नफरत तो कहीं इतनी मोहब्बत देखी की अनजान आदमी पता नहीं चल पाता था कि कौन हिन्दू है और कौन मुसलमान है, और तो और 1965 में एक आकाल और दूसरा प्लेग महामारी ने हिन्दू मुसलमान का फ़र्क़ ही मिटा दिया था। नफरत फैलाने वाले उस समय भी नफरत फैलाने का कोई अवसर नहीं छोड़ रहे थे, बावजूद उसके दोनों समुदायें के उस समय परिवार के बड़े बुजुर्ग उस दौर में अपने बच्चों को डांटते थे। और उस समय मैन देखा है, हिन्दू मुसलमानों को एक मंच पर शायरी और कविता का पाठ करते, तबभी संघ के कट्टरपंथी नफरत का माहौल बनाते ही रहे, जबकि संघ में सभी कट्टरपंथी नहीं हैं बहुत से लोग केवल अपने सनातनी पहचान को स्थापित रखने के लिये संघ के साथ जुड़े हुये हैं, तो बहुत से वैसे लोग शाखा से जुड़े हैं जो कट्टरपंथी विचारधारा के तहत मोहल्ले में कस्बे में अपना वर्चस्व स्थापित रखने के लिये संघ के नाम पर उल्टी सीधी हरकते करते रहते हैं। उस समय डिजिटल युग नहीं था, मोबाइल नहीं था कम्प्यूटर नहीं था, ई-मेल जैसी कोई सुविधा नहीं थी, आज तो प्रचार प्रसार की वह सारी सुविधा मौजूद है, आज अपनी बातों को विचारों को, किसी को भी कहीं भी आसानी से पहुंचाई जा सकती है।  
 बहरहाल, यह संघ के संस्थान द्वार यह एक नई खोज है। भारतीय मुस्लिम भक्त कवियों पर यह शोध अपने आप में एक अलग मुकाम रखता है, असल में उनका यह शोध विशेष कर मुस्लिम समुदाय में एक शक को जन्म देता है, संशय पैदा करता है, की आखिर क्या कारण है कि अचानक से मुस्लिम भक्त कवियों वह भी उन कवियों पर शोध होने लगा जिनका अस्तित्व लगभग समाप्त हो चुका है, उन पर अचानक से इतिहास लिखा जाने लगा आज उनकी खोज होने लगी उनके समाधी बनवाने की बात होने लगी। ….. कहीं 2024 चुनाव के मद्देनजर राजनीतिक स्तर पर उनका इस्तेमाल मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए तो नहीं किया जा रहा है? 
आज उन भारतीय मुस्लिम कवियों को इसलिये शोध का विषय बनाया जा रहा कि अपने एजेंडे में यह दिखाया जा सके कि हम मुसलमानों से नफरत नहीं करते हैं , …… देखिये — उन मुसलमानों को अपना पूर्वज समझ कर उन्हें याद कर रहे हैं!,,,, जिन्हों ने अपने आपको सनातनी हिंदुओं देवी देवताओं के प्रति उनके आदर सम्मान में भक्ति समर्पण की भावनापूर्ण उस युग में भी कविता लिखी, और अपने देश के प्रति समर्पण भावना से कृष्ण भक्ति और श्रीराम भक्ति में लीन रहे। संघ समर्थित भाजपा को हर हाल में 2024 चुनाव जीतना है। इसके लिये साम – दाम – दंड – भेद, की हर नीति अपनायेगी।
 यह शोध का विषय इतना आसान नहीं है, इसमे करोड़ो रूपये का खर्च है, शोधकर्ताओं की एक बड़ी टीम को लगाना पड़ेगा, जो भाजपा करेगी, और जहां तक मेरा मानना है कि इस शोध में अधिकतर ब्राह्मणों, बनिया और कायेस्तों को ही शोध की ज़िम्मेदारी दी जायेगी, नाम के लिये दो-चार वैसे मुसलमानों को टीम के दूसरे हिस्से में रखा जाएगा जो गइयो हैं और बेलौ हाँ, करने वाले हैं। संघ ने यह संगोष्ठी कर यह साबित तो कर दिया कि भारतीय मुसलमान भारत के हिंदुओं की आस्था में भी आस्था रखते हैं, यहां के मुसलमानों में भी श्रीकृष्ण और श्रीराम के प्रति आदर और सम्मान है।हालांकि इस कार्यक्रम के युवा संयोजक गौरव से जानने की कोशिश की की, भारतीय मुसलमान भक्त कवियों का रचनात्मक योगदान पर आखिर आज शोध की ज़रुरत क्यूँ पड़ी ? जब की आज भारतीय समाज में मुसलमानों के विरुद्ध नफरत फैलाने का एक अभियान सा चल गया गया है फिर इस नफरत के माहौल में मुस्लिम भक्त कवियों की खोज क्यों ? इस सवाल को गौरव ने बड़े आसानी से यह कहते हुये टाल गए की मुझे मीडिया के किसी भी सवाल का जवाब देने की ऊपर से अनुमति नहीं है , इसलिए इस कार्यक्रम में किसी भी मीडिया को आमंत्रित नहीं किया गया है। तब इस सवाल का जवाब वहां उपस्थित भारत सरकार का उर्दू भाषा राष्ट्रीय विकास परिषद के निर्देशक जनाब शेख अक़ील अहमद, एलाहाबाद से आमंत्रित उर्दू के प्रसिद्ध विद्वान लेखक जनाब डॉ. अजय मालविया एवं बिहार के पटना से आमंत्रित उर्दू और फ़ारसी के विद्वान प्रो० डॉ० जनाब एस. एस. हसीन से इसी सवाल का जवाब लताशने की कोशिश की लेकिन उन सबहुन ने गोल मोल जवाब दे कर ताल दिया। इनसभी का जवाब हमारे युटुब चैनल    www.youtube.com@ainaindia.m गूगल पर ज़रूर देखिये और सब्स्क्राइब करें।       
बहरहाल इस संगोष्ठी में कौन कौन और किस समुदाय के बुद्धिजीवी शोधकर्ता लोग उपस्थित थे। थोड़ा इस पर ध्यान आकृष्ट कराना चाहूँगा। 
 संगोष्ठी में स्वागत वक्तव्य एवं विषय प्रवर्तन – आचार्य चन्दन कुमार, ने किया और – बीज वक्तव्य – आचार्य त्रिभुवन नाथ शुक्ल ने दिए , तथा अध्यक्षीय उद्बोधन – आचार्य रामेश्वर मिश्र किया – और प्रथम सत्र अध्यक्षता – आचार्य नरेन्द्र मिश्र ने किया।  1. आचार्य सत्यपाल तिवारी 2. आचार्य नवीन नन्दवाना 3. आचार्य अमरेन्द्र त्रिपाठी 4. डीयू के आचार्य शहजाद आलम  – आचार्य पूरनचंद टंडन  1. आचार्य शेख़ अकील अहमद 2. आचार्य रमेश सिंह 3. आचार्य श्यामनंदन 4. आचार्य शत्रुघ्न कुमार मिश्रा ने भारतीय मुसलमान भक्त कवियों का रचनात्मक योगदान पर अपने शोधिक परिपत्र पत्र पढ़ा। 
प्रथम दिवस की अध्यक्षता कर रहे – आचार्य नवीन नन्दवाना 1. आचार्य शीरीन सलीम 2. आचार्य बबली प्रवीन 3. श्री संत कीनाराम त्रिपाठी 4. श्री हेमन्त कुमार 5. श्री विवेक कुमार तिवारी 6. श्री आशुतोष चैबे – आचार्य चन्दन कुमार भविष्य की कार्य योजना पर समूह चर्चा की। 
दूसरे दिन – आचार्य शेख अकील अहमद – निर्देशक एनसीपीयूएल  1. आचार्य शिवप्रसाद शुक्ल 2. आचार्य शकुन्तला मिश्र 3. आचार्य अरुण कुमार  पाण्डेय 4. आचार्य बलजीत कुमार श्रीवास्तव –अध्यक्ष – आचार्य शिवप्रसाद शुक्ल 1. आचार्य मारूफ उर रहमान 2. आचार्य चन्दन कुमार 3. आचार्य राजेश्वर मिश्रा  4. आचार्य आशुतोष कुमार सिंह 5. आचार्य पीयूष कुमार द्विवेदी 6. आचार्य चंद्रकांत सिंह  – अध्यक्ष – आचार्य गिरिराज शरण अग्रवाल 1. आचार्य सैयद हसीन अहमद 2. आचार्य अजय मालवीय 3. आचार्य राजेंद्र प्रसाद पाण्डेय 4. आचार्य आदित्य कुमार मिश्रा  5. श्रीमती शशि पांडे 6. श्री वीरमाराम पटेल और संगोष्ठी प्रतिवेदन – आचार्य सत्यपाल तिवारी ने किया। 
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