मृत्य शैय्या पर कराहती उर्दू में साहित्य अकादमी ने की जान फूंकने की कोशिश – देश भर से आमंत्रित उर्दू साहित्यकारों को अकादमी ने सम्मानित किया

साहित्य कदामी ने उर्दू के योगदान को याद किया - दो दिनों तक उर्दू के नाम क़सीदे पढ़े गए।

भारत सरकार और राज्य सरकारें अपने अपने महकमें से उर्दू को धीरे धीरे समाप्त कर दिया है। जिन राज्यों में उर्दू को दुसरीं ज़बान अर्थात दृत्य भाषा का दर्जा दिया गया था वहां की सरकारें भी अपने विभाग से जो एक पद उर्दू अनुवादक का था उसे भी समाप्त कर दिया।

साहित्य कदामी ने दो दिनों तक उर्दू साहित्यकारों के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान पर चर्च करवाया – 

एस. ज़ेड. मलिक   

पिछले दिनों साहित्य अकादमी ने हिंदुस्तान के विभिन्न राज्यों से उर्दू साहित्यकारों को आमंत्रित कर “स्वतंत्रता संग्राम में उर्दू साहित्य का योगदान” विषय वस्तु पर दो दिवसीय साहित्यिक चर्चा करा कर देश भर के उर्दू साहित्यकारों में एक नई ऊर्जा प्रदान कि है।  जिससे उर्दू साहित्यकार को अब उर्दू में भविष्य दिखाई देने लगा है। इस गोष्ठी के बाद उर्दू साहित्यकार अब आशावान दिखाई दे रहे हैं। जबकि भारत सरकार और राज्य सरकारें अपने अपने महकमें से उर्दू को धीरे धीरे समाप्त कर रहे हैं। ऐसा इसलिये लिखना पड़ रहा है, क्योंकि  जिन राज्यों में उर्दू को दुसरीं ज़बान अर्थात दृत्य भाषा का दर्जा दिया गया था, वहां की सरकारें भी अपने विभाग से जो एक पद उर्दू अनुवादक का था उसे भी समाप्त कर दिया। इसलिये की सरकार को उर्दू अनुवादक ही नहीं मिल रहे थे, और सरकार मदरसे वालों को तो अपने यहां जगह तो देने से रही। सरकार का बाहुल वोटबैंक तो नन उर्दू वर्गों का है, और तो और दिखावे के लिये स्कूलों में उर्दू विषय तो है परंतु उसका पढ़ाने वाले कोई नहीं, इसलिये की सरकार का मानना है कि उर्दू टीचर बहाली निकलती है पर उर्दू के शिक्षक नहीं आते🤔🤔🤔 और तो और दूरदर्शन और आकाशवाणी जैसे ब्रॉडकाष्ट महकमें से समाचार का एक विभाग छोड़ कर उर्दू ब्रोडकाशटिंग के सारे कार्यक्रम समाप्त कर दिये, यह उर्दू वालों का दुर्भगय कहें या देश के सरकारों की विडम्बना? फिर भी उन संस्थाओं का धन्यवाद जो उर्दू के अर्धात्मा होने के  बावजूद उर्दू पर किसी न किसी बहाने उर्दू साहित्यकारों और कवियों को याद करतीं हैं जैसे पिछले दिनों सितंबर में आरएसएस की साहित्यिक शोध संस्थान, ने इंडिया इस्लामिक कल्चर सेंटर में “मुस्लिम कृष्ण भक्त कवियों का स्वातंत्रता से पहले किरदार” पर एक कार्यक्रम करा कर उर्दू शुभचिंतकों को असमंजस में डाल दिया था पर उनका मकसद चाहे जो भी हो उर्दू कवियों को याद तो किया और  अभी हाल में 5 और 6 अक्टूबर में भारत सरकार की एक स्वायत्त संस्थान साहित्य अकादमी “स्वतंत्रता संग्राम में उर्दू साहित्य का योगदान” शीर्षक से एक संगोष्ठी का आयोजन कर देश भर से उर्दू के चुनिंदा विद्वानों को बुला कर उनसे स्वतंत्रता संग्राम में उर्दू साहित्य के योगदान पर उर्दू के उन साहित्यकारों और उर्दू कवियों को याद किया जिन्हों ने भारत को स्वतंत्र कराने में अपने लेखन द्वारा महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए शहीद कर दिए गए थे या उन्हें जेल में डाल कर दुर्गम यातनाएं दि गई थी।  अंग्रेज़ी हुकूमत सत्ता पर क़ाबिज़ होते ही उर्दू को मारना शुरू कर दिया था और साहित्यकारों को मारते मारते ऐसा अधमरा कर दिया की उन्हें उर्दू और फारसी की जगह अंग्रेज़ी याद रह गयी और स्वतंत्रता के बाद अंग्रेज़ी भाषा मे ही रोजगार ढूंढने लगे और उर्दू को क्षतविक्षत कर दिया। 
 ऐसे साहित्य अकादमी का धयवाद करना आर्निवार्य है की कम से कम साहित्य अकादमी सभी भाषाओं के साथ उर्दू को भी बराबर का सम्मान देते हुए समय समय पर उर्दू पर कोई न कोई कर्यक्रम करा कर उर्दू को सम्मानित करती रही है – जैसे कि पिछले दिनों दो दिनों का कार्यक्रम कर उर्दू विद्वानों को सम्मानित कर उर्दू प्रेमियों को प्रोत्साहित करने का काम किया। जबकि उर्दू को बढ़ावा देने के लिये भारत सरकार का एक विशेष महकमा फ़रोग़ उर्दू ज़बान के नाम से चल रहा परन्तु वहां से भी बहुत अधिक उर्दू कोई बहुत अच्छा काम देखने को नहीं मिल रहा रहा है। वैसे उर्दू को उर्दू वालों ने ही उर्दू को घायल कर दिया है, अब तो इंतज़ार है उर्दू की रूह अर्थात आत्मा निकलने की और जनाज़ा उठाने का है।  
ज्ञात हो कि, पिछले दिनों 5 और 6 अक्टूबर 2023 को नई दिल्ली के मंडी-हाउस स्थित साहित्य अकादमी ने अपने ही सभागार में दो दिवसीय “स्वतंत्रता संग्राम में उर्दू साहित्य का योगदान” विषय वस्तु पर साहित्यिक चर्चा का आयोजन किया। जिसमे देश के विभिन्न राज्यों से उर्दू साहित्यकारों, लेखकों और उर्दू स्कॉलरों, शिक्षकों  और उर्दू शोधकर्ताओं को आमांत्रित कर उन्हें साहित्य अकादमी की ओर से सम्मानित किया। 
 इस अवसर पर स्वागत सत्र में संगोष्ठी उद्घाटन एवं स्वागत वक्तव्य साहित्य अकादमी के सचिव श्रीनिवासन ने अपने आमंत्रित अतिथियों को शॉल देकर सम्मानित किया उसके बाद उन्होंने ने अभीवक्तव्य से संगोष्ठी का आरम्भ किया तथा वहीं मेज़मानी कर रहे साहित्य अकादमी के उर्दू परामर्श मंडल के संयोजक, एवं उर्दू शायर तथा लेखक व उर्दू विद्वान जानाब चंद्रभान ख्याल ने संगोष्ठी परिचय वक्तव्य दे कर सभा को संगोष्ठी का मक़सद समझाया , कार्यक्रम उद्घाटन वक्तव्य – हैदराबाद के मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो0 डॉ0 जानाब सैयद ऐनुल हसन ने दिये, बीज वक्तव्य नागपुर महाराष्ट्र के प्रख्यात उर्दू विद्वान – जी. एस, ख्वाजा नागपुरी ने दिये। तथा संगोष्ठी की अध्यक्षता प्रख्यात उर्दू विद्वान प्रो0 अख्तरुल वासे ने की। 
वहीं इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में आमंत्रित योजना आयोग पूर्व सदस्य एवं प्रख्यात उर्दू विदूषक श्रीमती सैयदा सैयदैन हामिद साहिबा ने अपने आलेख पढ़ कर संगोष्ठी सत्र का शुभारंभ किया।
 उसके बाद अन्य आमंत्रित अतिथिगण जैसे प्रथम सत्र की अध्यक्षता चंडीगढ़ के प्रख्यात उर्दू विद्वान श्री नरेश ने की, इनके अध्यक्षता में मध्यप्रदेश भोपाल से शायर और पत्रकार जानाब महमूद मलिक, दिल्ली की प्रख्यात उर्दू मैगज़ीन “शमा” की सम्पादक उर्दू शिक्षक चश्मा फ़ारूक़ी, उर्दू शायर नौशाद मंज़र ने अपने लेख पढ़ें तथा दृतय सत्र की अध्यक्षता कर्नाटका बेंगलोर कर्नाटका यूनिवर्सिटी के उर्दू प्रो0 डॉ0 माहिर मंसूर साहब ने की , तथा इनकी अध्यक्षता में  बिहार पटना से प्रख्यात उर्दू लेखक क़ासिम खुर्शीद काकवी, अबुल ज़हिर रब्बानी, शहनाज़ रहमान ने अपने आलेख पढ़े।
 दूसरे दिन का सत्र शहज़ाद अंजुम की अध्यक्षता में आरम्भ हुआ, उनके अध्यक्षता में शहज़ाद अंजुम, साजिद क़ादरी, शाज़िया उमर और अनवारुल हक़ ने अपने लेख पढ़ दूसरे दिन का पहला सत्र समाप्त किया तरह दूसरे सत्र की अध्यक्षता प्रख्यात उर्दू लेखक उर्दू शायर और साहित्य अकादमी के परामर्श मंडल के सदस्य चंद्रभान ख़्याल ने की उनकी अध्यक्षता में इलाहाबाद के प्रख्यात उर्दू लेखक अजय मालविया इलाहाबादी, रज़िया हामिद, शहनवाज़ चौधरी ने “स्वतंत्रता संग्राम में उर्दू साहित्य का योगदान” विषय वस्तु पर अपने आलेख पढ़े।
तथा इस अवसर पर मंच संचालक जिन्हों ने अपने मीठी वाणी में मदहोश कर सभा को बांध कर रखने वाले साहित्य अकादमी के सम्पादक कुमार अनूपम ने भी अपने सभी अतिथियों को धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तूत किया तथा संगोष्ठी की रूपरेखा व संवाद  साहित्य अकादमी उर्दू विभाग के समन्यव्यक मोहम्मद मूसा रज़ा ने तैयार की। 
परन्तु अब सवाल यह है कि – जहां मुग़लिया साम्राज्य से स्वतन्त्र इंडिया में 1980 के दशक तक उर्दू भारत , हिंदुस्तान इंडिया की सरकारी अदालती ज़बान हुआ करती थी, फिर धीरे धीरे उसे अदालत , कचहरी, से हटा दिया गया, और अब जिन जिन राज्यों में उर्दू को दुसरीं ज़बान का दर्जा हांसिल था वहां वहां के कार्यालयों से उर्दू अनुवादक का भी अब पद समाप्त कर दिया गया है, और तो और अब तो सरकार ने हद ही कर दिया कि स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालयों से भी अब उर्दू के शिक्षकों की बहाली भी इतना कम कर दिया कि बस अब यह उम्मीद कि जा रही है,  कि अब शैक्षणिक संस्थानों से भी उर्दू समाप्त कर दिया जायेगा। आकाशवाणी और दूर दर्शन में सिर्फ उर्दू समाचार का एक विभाग मजबूरी में खोल रखा है। ऐसी ओछी और दुराग्रही मानसिकता के बावजूद साहित्य अकादमी जैसी संस्थाओं धन्यवाद करना ज़रूरी है जो गाहे बगाहे जाने अनजाने में उर्दू को किसी न किसी बहाने जीवित रखने की कोशिश कर रही हैं।
इससे पहले आरएसएस की एक शोषध शैक्षणिक संस्थान ने नई दिल्ली के लोधी रोड स्थित आईआइसीसी में मुस्लिम भक्त कवियों का भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी पर एक कार्यक्रम कराया था जिसमे भारत से उन कवियों पर षोधकर्ताओं को आमंत्रित कर उन्हें भी शोध पर्चा पढ़वाया गया था और वैसा ही कार्यक्रम आज भारत सरकार की ही एक ऑटोमोन्स बॉडी नई दिल्ली मंडी हाउस स्थिति साहित्य अकादमी ने भी आज उर्दू के साहित्यकारों को देश के विभिन्न राज्यों आमंत्रित कर “उर्दू साहित्य का भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी पर उनसे उनके शोधिक पर्चे पढ़वाया गया। अब सवाल यह उठता है कि आखिर इन संस्थाओं को अचानक से उर्दू से इतनी हमदर्दी क्यूँ हो गई? उर्दू क्यूं याद आने लगी? साहित्य अकादमी का मक़सद चाहे जो भी हो, पर साहित्य अकादमी शुक्रिया इसलिये भी करना चाहिये क्योंकि साहित्य अकादमी साल में एक दो कार्यक्रम किसी न किसी बहाने उर्दू पर कोई न कोई कार्यक्रम करा ही देती है। और उर्दू विद्वानों को कम से कम सम्मानित करती रहती है जिससे उर्दू शोधकर्ताओं और उर्दू विद्वानों में उर्दू के प्रति एक नई ऊर्जा पैदा होती है और उर्दू साांस लेने लगती है।
परन्तु आरएसएस अपनी संस्थाए द्वारा इन दिनों नफरती माहौल में वह भी उर्दू और मुस्लिम साहित्यकारों और कवियों पर कार्यक्रम करा रही है। यह बात हजम नहीं होती है, इस मे कहीं न कहीं इसके पीछे राजनितिक लाभ ही समझ मे आ रहा है? 
Leave A Reply

Your email address will not be published.