आखिर कबतक? हम परिवार के महत्व को अनदेखा करेगे।

भारत ही नही पूरे विश्व के लोग शांत, सुरक्षित,और स्वास्थ्यवर्धक जीवन जीना चाहते हैं और यही उदेश्य मनुष्य जीवन का मूल हैं।

स्वार्थ में हम इस तरह स्वयं में सिमट गए है कि,खुद से ऊपर कुछ देखना ही नही चाहते परिवार के लोगों की सलाह या जिम्मेदारी हमें कुछ भी अच्छा नही लगता?
अब प्रश्न आखिर कबतक ??

आलेख-
आखिर कबतक? हम परिवार के महत्व को अनदेखा करेगे।

लेखिका – सुनीता कुमारी
पूर्णियां बिहार

कुटुंब अथवा परिवार समाज की सबसे छोटी इकाई है,और इस इकाई में रक्तसम्बनध से जुड़े लोग शांतिपूर्वक रहकर तरक्की करना चाहते हैं ,जीवन में आगे बढ़ना चाहते हैं,सफल और सम्पूर्ण जीवन जीते हुए मोक्ष प्राप्त करना चाहते हैं।
भारत ही नही पूरे विश्व के लोग शांत, सुरक्षित,और स्वास्थ्यवर्धक जीवन जीना चाहते हैं और यही उदेश्य मनुष्य जीवन का मूल हैं।
इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए मनुष्य ने जंगल से घर तक का सफर तय किया ,कच्चे भोजन से पके हुए भोजन तक का सफर तय किया,अच्छा और सच्चा जीवन जीने के लिए अज्ञान से ज्ञान होने तक का सफर तय किया एवं अन्तर्मन को शांति प्रदान करने के लिए धर्म की स्थापना की ताकि, परिवार में न्याय और अनुशासन का
वास हो।
हमारा प्यारा देश भारत हमेशा से “वसुधैवकुटुम्बकम”की अवधारणा में विश्वास करता हैं पुरे विश्व को एक परिवार की तरह देखता हैं और परिवार की मजबूती पर बल देता हैं।भारत ही नही लगभग सभी देश अपने दायरे में शांति और सुरक्षा कायम रखना चाहता है ,फिर संसार में इतना विवाद क्यों?
विश्व के देशरूपी परिवार से लेकर सामाज की पहली इकाई परिवार भी टूट रहा है और अब तो आलम यह है कि, परिवार का प्रत्येक व्यक्ति टूट रहा है,परिवार का महत्त्व कम और व्यक्तिविशेष का महत्व बढ़ता जा रहा हैं?
एक परिवार की जरूरतों ने प्रतिएक “व्यक्ति की जरूरत ने जगह ले लिया हैं??
प्रत्येक व्यक्ति पर सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, नैतिक बोझ सैकड़ो गुणा बढ़ हैं जबकि ये जिम्मेदारी परिवार के मुखिया उठाया करते थे एवं उनकी छत्रछाया में पंद्रह बीस लोगो का परिवार सुरक्षित रहता था और अब परिवार के सारे लोग अकेले और असुरक्षित हैं फिर भी परिवार के महत्व को समझने को तैयार नही हों?
अकेलापन अवसाद, आत्महत्या के बढते मामले ,बढ़ता अपराध सब के पीछे परिवार का कमजोर होना शामिल हैं? हम आमलोग ‘शांत’ परिवार में न ढूंढकर एकांत में ढूंढने लगे और इस एकांत की आदत ने हमें स्वार्थी बना रहा है
स्वार्थ में हम इस तरह स्वयं में सिमट गए है कि,खुद से ऊपर कुछ देखना ही नही चाहते परिवार के लोगों की सलाह या जिम्मेदारी हमें कुछ भी अच्छा नही लगता?
अब प्रश्न आखिर कबतक ??
आखिर कबतक?कबतक हम इस तरह का व्यवहार कर समाज को तोड़ेगे?परिवार को तोड़ेगे। हमारे जीवन में जो सबसे ज्यादा जरूरी है उसे ही कमजोर कर रहे है,यदि हम नही सभलेगे तो हमें नुकसान उठाना पड़ सकता है ।
अवश्य विचार करे अन्यथा नुकसान हम सबो को उठाना पड़ेगा।
वसुधैव कुटुंबकम की पारंपरिक भावना को फिर से याद दिलाना होगा , सार्वभौमिक भाईचारे और सभी प्राणियों के परस्पर जुड़ाव के सार को फिर से जागृत करना होगा । शिक्षा व्यवस्था में नैतिकता की शिक्षा को बढ़ाना होगा।परिवार समाज देश के महत्व को समझना होगा।तब कही जाकर समाज और परिवार में सुधार होगा।

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