क्या मानवता ही धर्म है ?
धर्म सिर्फ मानवता का ही नाम नहीं है अपितु मानवता को उसके सबसे उच्चत शिखर पर पहुँचाने का नाम है,
धर्म सिर्फ मानवता का ही नाम नहीं है अपितु मानवता को उसके सबसे उच्चत शिखर पर पहुँचाने का नाम है,आज एक बड़ी मानव आबादी धर्म और मानवता को देखती है,
क्या मानवता ही धर्म है ?
अब्दुर्रहमान (मानवतवादी)
यह एक ऐसा विषय और शीर्षक है जिसे मात्र एक छोटी से लेख में समेटना सम्भव नहीं है, इसपर लिखने के लिए तो ढेरों पुस्तके भी कम है, लेकिन फिर भी प्रयास करता हूँ, आज मानवता और धर्म विलोम बन चुके हैं, विलोम का अर्थ होता है विपरीत जैसे दिन का विलोम रात है, सर्दी का गर्मी और सच का झूठ होता है, ठीक इसी तरह आज एक बड़ी मानव आबादी धर्म और मानवता को देखती है, यही कारण है कि लोग कहते हैं कि दुनिया में हिंसा और अशान्ति का मूलकारण दीन/धर्म ही है, और फिर इस तरह वह नास्तकिता की तरफ बढ़ जाते हैं।
हमारे धार्मिक विद्वानों की सोच भी इनसे कुछ अलग नहीं है, वह जब लोगों को आपसी भाईचारे और सदभावना का पाठ पढ़ाते हैं तो बड़े बड़े स्टेज सजाकर भाषण देते हैं कि धर्म से ऊपर उठकर मानवता यानि इंसानियत की बात करों, अब अगर इनसे प्रश्न किया जाए कि धर्म से ऊपर कैसे उठा जाता है तो क्या जवाब होगा इनका ?
आज लोग दूसरों के अधिकारों का हनन करके, उनका हक़ डकार करके, ऐसे उपदेश बांटते फिरते हैं, कोई भी इंसान दीन अथवा धर्म से ऊपर उठने के चक्कर में दुनिया से तो उठ जायेगा लेकिन धर्म से ऊपर नहीं उठ सकता।
हम सबका बनाने वाला, पैदा करने वाला पालने वाला एक अल्लाह/परमेश्वर है, हम इस संसार में शुख शान्ति से जीवन व्यतीत करें उसके लिए उसने कुछ नियम बनाये इन्ही नियम और कानून का नाम दीन है, जिसमें मुख्यता बस दो नियम है।
1- अल्लाह/परमेश्वर के हक़ एव अधिकार
2- इंसानों के परस्पर आपसी अधिकार
जिसे अरबी में हुक़ूक़-उल-इबाद और हुक़ूक़-उल-अल्लाह कहते हैं, बस इन्ही दो बातों पर सारे दीनी नियम हैं, जिसने इन्हे पहचानकर अपना जीवन व्यतीत किया उसकी सफलता की गारंटी स्वयं पालनहार ने ली है, कि मरणोपरांत उसे ऐसा उपहार मिलेगा जिसकी कल्पना भी वह इस जीवन में नहीं कर सकता।
किसी भी चीज़ का बनाने वाला ही उस चीज़ को कैसे उपयोग किया जाये बता सकता है इसी कारण हर प्रोडक्कट निर्माता अपने प्रोडक्ट के साथ गाइडबुक देता है, यह गाइड बुक उस प्रोडक्ट का धर्म होती है, अब अगर कोई कहे कि मैं इस प्रोडक्ट को इस किताब में लिखी बातों और नियम से ऊपर उठकर चलाऊगाँ तो निस्सन्देह उस प्रोडक्ट का सत्यानास होना निश्चित है, गाड़ी पैट्रोल से चलेगी तो ऊपर उठकर क्या तुम देशी घी डालकर चलाओगे ?
इंसान ईश्वर द्वारा निर्धारित नियमों से उपर उठना भी चाहे तो नहीं उठ सकता, और ऐसा बयान देने वाला व्यक्ति ईश्वर अल्लाह को अपमानित करने वालों में होगा।
धर्म सिर्फ मानवता का ही नाम नहीं है अपितु मानवता को उसके सबसे उच्चत शिखर पर पहुँचाने का नाम है, अगर कोई इंसान अल्लाह के हक़ को अदा करने में गफलत और आलस्य करता है तो अल्लाह उसे क्षमा कर सकता है लेकिन इंसानों के आपसी हक़ और अधिकारों में कोताही और गफलत क्षमा योग्य नहीं है, किसी ने किसी से कर्ज लिया है तो कर्जदार को कर्ज अदा करना ही होगा अगर वह सक्षम है तो, अगर उसके पास नहीं है तो अलग बात है और इस विषय में उस इंसान के लिए बड़ा ही बदल है जो अपने कर्ज के वसूलने में नरमी बरते उसे अदायगी का समय दें और समय मांगें तो और दें और अगर कर्ज माफ करदें तो यह सबसे उत्तम है।
पड़ोसी के ऐसे अधिकार कि उसकी बिना आज्ञा अपने घर की दीवार भी इतनी ऊँची मत करो कि उसकी हवा और रोशनी रुक जाये, पड़ोसी के भूखा होने पर खाना हराम, मजदूर की मजदूरी उसका पसीना सूखने से पहले देने का आदेश, नौकर के साथ उसके काम में हाथ बटाने का आदेश, जमाखोरी एक गम्भीर अपराध, व्यसाय में धोखाधड़ी अपराध, झूठ बोलना झूठ बोलकर व्यवसाय करना वर्जित, कम नापना कम तोलना अपराध, मिलावटखोरी वर्जित, भ्रूण हत्या जघन्य अपराध, बोझ बन चुके रिश्तों के तलाक का नियम, विधवा पुनरविवाह, बेटी को बेटे से अधिक सम्मान, बेटी को पिता की सम्पति में अधिकार, पत्नी के काम में हाथ बटाना, रिश्ते नाते तोड़ने पर कड़ी फटकार, रिश्ते नाते जोड़ने का आदेश, मेहमान की खातिरदारी उत्तरदायित्व, धरती पर फसाद और फित्ना और बुराई को रोकने का आदेश इसे रोकने के लिए ही बल और शक्ति का उपयोग क्यों कि पुरानी कहावत है कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते।
माता पिता बेटी बेटा बहन भाई पत्नी और रिश्तेदार सबके विशेष अधिकार, यह सब मैने बहुत शोर्ट में और बहुत कम लिखा है वरना अगर क़ुरआन की आयतें और हदीस लिखनी शुरु की तो कई किताबें लिख जायेगी। आज पूरी दुनिया में लागू ह्यूमन राईट्स के कानून क़ुरआन और पैगम्बर साहब सल्लल्लाहो अलैहिवसल्लम की शिक्षाओ से ही लिये गये है, और यह एक दूसरे के हितों की रक्षा करते कानून और नियम अल्लाह ने प्रथम मनुस्य के साथ ही जैसे जैसे आवश्यकता हुई अवतरित करता गया, लेकिन लोग आज नकल करके सम्मान पा रहे है और जिसकी शिक्षायें है उसी को पहचानते नहीं।
एक उदाहरण लीजिये सभी यह मानते हैं की न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत की खोज की थी। तो क्या न्यूटन से पहले गुरुत्वाकर्षण की शक्ति नहीं थी?
थी मगर मनुष्य को उसका ज्ञान नहीं था अर्थात न्यूटन ने केवल अपनी अल्पज्ञता को दूर किया था और इसी क्रिया को आविष्कार कहा जाता है। सत्य यह हैं की जितनी भी भौतिक वैज्ञानिक उन्नति हैं वह अपनी अलपज्ञता को दूर करना है। मनुष्य चाहे कितनी भी उन्नति क्यों न कर ले वह ज्ञान की सीमा को कभी प्राप्त नहीं कर सकता क्योंकि एक तो मनुष्य की शक्तियां सिमित है जबकि ज्ञान की असीमित है दूसरी असीमित ज्ञान का ज्ञाता केवल एक ही है और वो हैं ईश्वर जिनमें न केवल वो ज्ञान भी पूर्ण है जो केवल मानव के लिए है अपितु वह ज्ञान भी है जो मानव से परत केवल ईश्वर के लिए है।
क्या अब कोई कह सकता है कि धर्म अशान्ति और हिंसा की वजह है?
क्या अब भी कोई कह सकता है धर्म से ऊपर उठकर इंसानियत की बात ?
आज मानवीय समाज का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है कि उसने धर्म को स्वार्थ के लिए उपयोग कर लिया, जो धर्म दूसरों की जीविका का ध्यान रखने का आदेश देता था इसने उसी धर्म को अपनी जीविका कमाने का माध्यम बना लिया और अपनी तमाम महत्वाकाक्षाओं को धर्म के आवरण में ढांक कर अपना उल्लू सीधा करने में लग गया, यही कारण है कि आज लोग धर्म से दूरी बना रहे हैं क्यों कि वह समाज में धर्मगुरुओ को ही अशान्ति फैलाते और लग्जरी लाईफ जीते देख रहे हैं, धार्मिक नियम 1% लोगों के जीवन में भी नहीं है, और धार्मिक पुस्तके कोई पढ़ना नहीं चाहता, समय ही नहीं है आज अच्छी सच्ची बात पढ़ने का ।
मैं अपने लेख करीब 200 ग्रुप में डालता हूँ मुझे नहीं लगता सायद 200 लोग भी पढ़ते होगें, लेकिन मेरा जो काम है वह करना मेरी जिम्मेदारी है नतीजा और उसका बदल देना तो अल्लाह के हाथ में हैं।
*Abdul Rehman Humanist..✒️*