एशिया के सब से बड़े लिटरेचर फेस्टिवल में बिहार के क़ासिम खुर्शीद का प्रभावशाली प्रतिनिधित्व
साहित्य अकादमी भाजपा शासनकाल में उर्दू पर अधिक आकर्षित है।
जबकि साहित्य अकादमी में उर्दू प्रसिद्ध शायर एवं उर्दू साहित्यकार गोपी चंद नारंग साहब के बाद उर्दू साहित्यकार एवं शायर जनाब चंद्रभान ख्याल साहब को ङ्कि जगह मिली तो लेकिन उर्दू सम्पादक शायेद साहित्य अकादमी को अबतक नहीं मिला?
एशिया के सब से बड़े लिटरेचर फेस्टिवल में बिहार के क़ासिम खुर्शीद का प्रभावशाली प्रतिनिधित्व
एमपीएनएन डेस्क न्यूज़
नई दिल्ली – हर वर्ष की भांति साहित्य अकादमी दिल्ली द्वारा इस वर्ष भी 7 से 12 मार्च 2025 तक एशिया में बोली जाने वाली अधिकांश भाषाओं के साहित्यकारों रंग कर्मियों चिंतकों संकृति कर्मियों और दूसरे पक्षों के चयनित विशेषज्ञों पर आधारित एशिया के सब से बड़े लिटरेचर फेस्टिवल का आयोजन दिल्ली के रवीन्द्र भवन परिसर में भव्यता के साथ किया गया, जिस में बिहार से अंतरराष्ट्रीय साहित्यकार शायर शिक्षा विद और एस सी ई आर टी के पूर्व भाषाध्यक्ष तथा शैक्षिक दूरदर्शन बिहार के प्रभारी निदेशक डा क़ासिम खुरशीद को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया और उन्होंने सर्व भाषा कवि सम्मेलन में बहुत ही प्रभावशाली ढंग से अपने विभिन्न कलाम पेश किए जिसकी बेहद प्रशंसा की गई बड़ी बात ये थी कि परिसर के अलावा पूरी दुनिया ने उनके कलाम को सुना और रचना और प्रस्तुति की विशेषता ये रही कि जिन का सम्बन्ध इस भाषा से नही भी था उन्हों ने भी भावार्थ की क़ासिम खुर्शीद की अदभुत प्रस्तुति से समझा और खूब प्रशंसा की उन्हें दूसरे दौर में भी विशेष रूप से आमंत्रित कर पुनः सुना गया।
डॉ क़ासिम खुरशीद ने दिल्ली से लौटने के बाद हमारे संवादाता से विस्तार से बात की और ज़ोर देकर कहा कि साहित्य अकादेमी ने एक ऐसा इतिहास रचा है जिस की पहले दुनिया में कोई भी मिसाल नहीं मिलती है। विभिन्न भाषाओं विभिन्न संस्कृति के इतने सारे लोगों को जमा कर ऐसा कामयाब आयोजन भारत जैसे संस्कृति प्रेमी देश में ही संभव हो सकता है।
मैं समस्त टीम के से साथ अदभुत साहित्यकार और अध्यक्ष साहित्य एकेडमी श्री माधव कौशिक बेहतरीन चिंतक साहित्यकार सचिव श्री जी निवास राव के साथ पद्मश्री शीन काफ निज़ाम उम्दा शायर चंद्र भान ख्याल बड़े रचनाकार दिवेश जी और समस्त सदस्यों को दिल की गहराई से मुबारकबाद पेश करता हूं। इस मौक़े पर क़ासिम खुर्शीद ने लेखकों साहित्यकारों को अपना नया हिंदी काव्य संग्रह” दस्तकें ख़ामोश हैं”। और उर्दू ग़ज़ल संग्रह “दिल की किताब” भी पेश किया जिस पर बहुत शानदार प्रतिक्रियाएं प्राप्त हो रही हैं।
क़ासिम खुरशीद ने इस अवसर पर प्रकाशिक लेखकों की डायरेक्टरी में अपने विषय में अत्यंत विस्तृत प्रभाव शाली कवरेज के लिए भी शुक्रिया अदा किया।
एक कड़वी सच्चाई यह भी है कि साहित्य अकादमी भाजपा शासनकाल में उर्दू पर अधिक आकर्षित है। जबकि साहित्य अकादमी में उर्दू प्रसिद्ध शायर एवं उर्दू साहित्यकार गोपी चंद नारंग साहब के बाद उर्दू साहित्यकार एवं शायर जनाब चंद्रभान ख्याल साहब को उनकी जगह मिली तो है लेकिन उर्दू सम्पादक शायद साहित्य अकादमी को अबतक नहीं मिला? चाहे दूरदर्शन हो या आकाशवाणी उर्दू कार्यक्रम सीमित कर हर जगह उर्दू के नाम पर एक खेल ही खेला जा रहा है। और उर्दू वाले खामोशी से अपने दर्द को छुपाये सरकार अनुदान पुरुस्कार ले कर खामोश रहते हैं इसलिये कि भागते बहुत को जो मिल जाये बेहतर है।
